अकेला-एकान्त
असंग आत्म-विश्वास का
गम्भीर भान
अकेला-एकान्त
कभी करी हुई विलीन हुई बातें
अनबूझा विशाद
संसारी गतिविधियों से
परिवर्तित प्रवृत्तियों से
बदले व्यवहार से शब्दों की चोट से
कुछ हुआ अचानक
हमारे बीच का बहता वह सुगम प्रवाह
घनिष्ठ अपनत्व
अमृत-सा सुख
सूख गया
खुशियों का हिस्सा जो लगता था मेरा था
अब मेरा न था
असंवेदनाओं के धरातल पर अकस्मात
काँच-सा फूट गया
खुशियों के टुकड़ों के चूर को बुहारते
विश्लेषण के भी विश्लेषण में तल्लीन
अश्रुपूर्ण है आज अशान्त
अकेला-एकान्त
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विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
बहुत भावपूर्ण रचना... एकांत भाव को प्रस्तुत करती प्रभावी प्रस्तुति के लिये बधाई ...सादर
आ0 निकोर सर जी, ''विश्लेषण के भी विश्लेषण में तल्लीन'' दुनिया ऐसी ही है, अतीव सुंदर कविता. बधाई स्वीकारे. सादर
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई सादर |
खुशियों का हिस्सा जो लगता था मेरा था
अब मेरा न था
असंवेदनाओं के धरातल पर अकस्मात
काँच-सा फूट गया
खुशियों के टुकड़ों के चूर को बुहारते
विश्लेषण के भी विश्लेषण में तल्लीन
अश्रुपूर्ण है आज अशान्त
अकेला-एकान्त ---------- एकांत में विगत में हुई बातों पर बरबस ही ध्यान जाता है और व्यक्ति उन्ही में खो जाता है | इसको कागज़ पर उतारने आपकी सशक्त लेखनी को नमन आदरणीय श्री विजय निकोरे जी
बहुत सुंदर लिखा,सर.
खुशियों के टुकड़ों के चूर को बुहारते
विश्लेषण के भी विश्लेषण में तल्लीन
अश्रुपूर्ण है आज अशान्त
अकेला-एकान्त......... अनेकोनेक विश्लेषण के पश्चात, शायद यही सार है.
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