२११२२ २११२२ २११२
प्यास में अब. पानी न मिले शबनम ही सही
*****************************************
प्यास में अब. पानी न मिले शबनम ही सही
ख्वाब तो हो, सच्चा न सही मुबहम ही सही
लम्स तेरा जिसमें न मिले वो चीज़ ग़लत
आब हो या महताब हो या ज़म ज़म ही सही
मेरे सहन में आज उजाला , कुछ तो करो
धूप अगर हलकी है उजाला कम ही सही
कुछ तो इधर अब फूल खिले सह्राओं में भी
काँटों लदी हो डाल खिले कम कम ही सही
तेज़ बहुत रफ़्तार लगी खुशियों की उधर
कुछ तो बहे अपनी भी गली , मद्धम ही सही
है तो फिरी दुनिया की नज़र चल मान लिया
मेरी वफ़ा कायम है अगर कायम ही सही
ता कि ये हथकड़ियाँ भी शिकायत कर न सके
जब न कलाई कोई जँची, तो हम ही सही
******************************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय महर्षि भाई , गज़ल की सराहना और कुछ अश आर को पसंद करने के लिये आपका दिली शुक्रिया ॥
आदरणीय विजय भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीय श्याम भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत आभार ॥
कटःइन शब्दों का अर्थ नेचे दे रहा हूँ , और आगे से खयाल भी रखूंगा --
मुबहम-- धुँधला , अस्पष्ट
लम्स -- स्पर्ष , छुवन
सह्राओं -- मरुस्थ्लों
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया आपका ॥
आपने सही कहा है , शे र में तकाबुले रदीफ दोष है , लेकिन आदरनीय वीनस भाई जी ने ज़बानी एक बात कही थी कि अगर दोष हटाने की कोशिश में बात कमज़ोर पड़ रही हो तो छूट ली जा सकती है ! बह्र भी मै कटःइन चुन लिया था और रदीफ भी , इस्लिये दोष सहित शे र को स्वीकार कर लिया हूँ । ये सच है कि दोष है ज़रूर ॥
प्यास में अब. पानी न मिले शबनम ही सही
ख्वाब तो हो, सच्चा न सही मुबहम ही सही
वाह आदरणीय गिरिराज भंडारी जी खूबसूरत आगाज़ की इस खूबसूरत ग़ज़ल की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं।
कुछ तो इधर अब फूल खिले सह्राओं में भी
काँटों लदी हो डाल खिले कम कम ही सही
तेज़ बहुत रफ़्तार लगी खुशियों की उधर
कुछ तो बहे अपनी भी गली , मद्धम ही सही
है तो फिरी दुनिया की नज़र चल मान लिया
मेरी वफ़ा कायम है अगर कायम ही सही
ता कि ये हथकड़ियाँ भी शिकायत कर न सके
जब न कलाई कोई जँची, तो हम ही सही ,,,,,,,,बेहद उम्दा ,,,शानदार ,,आपको बधाई आ. गिरिराज भंडारी सर |
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,
बहुत ही उम्दा व दिल खुश करने वाली गजल . कुछ उर्दू के लब्ज के मायने बताने की कृपा करें . हार्दिक बधाई.
मुबहम,सह्राओं ,लम्स
आ० अनुज
बड़ा गजब का काफिया लिया .पर निबाहा भी खूब . वाह क्या गजल हुयी है . चौथे शेर में उला और सानी क्रमशः भी और सही है , क्या यह सही है ,मुझे बताया गयाहै कि ऐसेमे रदीफैन दोष होता है . शंका मिटाएं मित्र .सादर .
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online