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मालोपमा (उपमा अलंकार का एक भेद )

पुरवा बयार सी

मद भरे ज्वार सी   

फूलो में जवा सी

स्पर्श में हवा सी

महुआ की गंध सी

पाटल सुगंध सी

आमों की बौर सी

करौंदे की झौर सी

नीम की महक सी

पलाश की दहक सी

टूटे मोर पंख सी

पूजागृह के शंख सी

मंदिर के दीप सी

मोती भरी सीप सी

जल भरे डोल सी

विद्युत् कपोल सी

लहराते व्याल सी

दृप्त इंद्रजाल सी

पावस की धार सी

राधा के प्यार सी

पतझड़ के अंत सी

सौरभ बसंत सी

हिम के शृंगार सी

रति के दुलार सी

जीवन में आयी तुम

दृग में समाई तुम

उपमा की माल सी

कैरव की डाल सी  

आह i उन्मादिनी  !

प्रिय मधुवादिनी

स्मृति विशेष हो

अंतस् में शेष हो ---

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 23, 2015 at 8:24pm

प्रिय कृष्णा जी

सादर आभार .

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 23, 2015 at 8:14pm

नीम की महक सी

पलाश की दहक सी

टूटे मोर पंख सी

पूजागृह के शंख सी

आह! लाजव़ाब आदरणीय आपका शब्दसंयोजन हमेशा मनमोहक आश्चर्य में डाल देता है!अभिनन्दन!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 23, 2015 at 12:47pm

आ० मुकेश श्रीवास्तव

बहुत बहुत धन्यवाद .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 23, 2015 at 12:46pm

आ० हरी प्रकाश जी

सादर आभार .

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on March 23, 2015 at 12:05pm

PYAREE AUR MOHAK RACHNA KE LIYE BADHAEE

Comment by Hari Prakash Dubey on March 23, 2015 at 12:49am

आदरणीय डॉक्टर गोपाल नारायण सर , बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है , आपकी इस रचना से एक नया ज्ञान और प्राप्त हो गया , आभार ,इस शानदार रचना पर हार्दिक बधाई, सादर!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 22, 2015 at 10:04am

आ० वंदना जी

धन्यवाद . सादर.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 22, 2015 at 10:04am

आ० कल्पना जी

आभार. सादर.

Comment by vandana on March 22, 2015 at 5:06am

निश्शब्द हूँ ..... आदरणीय सादर नमन 

Comment by kalpna mishra bajpai on March 22, 2015 at 2:00am

अद्भुत 

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