(यहाँ प्रति दोहे में वृत्यानुप्रास है किन्तु सम्पुर्ण रचना में छेकानुप्रास है अंतर यह है की वृत्यानुप्रास में एक ही वर्ण की पुनरावृत्ति होती है जबकि छेका में अनेक वर्णों की )
गा-गाकर गौरव गिरा गरिमामय गन्धर्व
गीर्वाण गुरु, गीतिमय , गान-ज्ञान गुण गर्व I
भक्त भगवती भारती भूरि भावमय भव्य
भावशवलता, भ्रान्तिता भ्रमित भनिति भवितव्य I
वीणापाणि वरानना वरे विदुष विद्वान
वाणी-वाणी वत्सला वर्ण-वर्ण वरदान I
शुभ्र शारदा शशिप्रभा शोभित शुभ शतपर्ण
शरद-शुक्ल शत शर्वरी शुचि शाश्वत शितिवर्ण I
स्वर साम्राज्ञी सर्वप्रिय सतरंगी सब-साज
सुखदा सदा सरस्वती सम्मुख सुकवि समाज I
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
आ० अनुपमा जी
अनुग्रहीत हुआ. सादर.
आ० मीन जी
आपका आभार . सादर .
बहुत ही सुंदर सृजन , आ0 गोपाल नारायण जी
सादर नमन सर
आ० हरि प्रकाश जी
अनुग्रहीत हुआ .सादर .
आदरणीय अनुज भंडारी
शत शत आभार .
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर, बहुत ही सुन्दर रचना ,अद्भुत ,हार्दिक बधाई ! सादर
शारदा शशिप्रभा शोभित शुभ शतपर्ण
शरद-शुक्ल शत शर्वरी शुचि शाश्वत शितिवर्ण I
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , अनुपम छंद रचना हुई है , पढ़ के मन प्रसन्न हो गया ! आपको बधाइयाँ ।
आ० सौरभ जी
आपका आशीष ही प्रतिफलित है . सादर .
आपने इस प्रस्तुति के दोषपूर्ण चरणों में अपेक्षित सुधार कर मेरे कहे को अनुमोदित किया, आदरणीय गोपाल नारायनजी.
इस हेतु हार्दिक धन्यवाद तथा प्रस्तुति के लए पुनः अंतरतम से असीम शुभकामनाएँ
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