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ग़ज़ल: खोह घाटी का सफर ....

२१२२   २१२२  २१२२ २१२२ 
कामयाबी रंग लाये  तब  जमाना पास आये |

रंज  बैरी भूल   जाये  हाथ थामे  रास  आये |

पात ना आये अगर डाली कहीं  सूखी हुई  हो  , 

फूल डाली पर खिले जैसे  नजारा खास आये |

हार कर  मायूस होना ये कहाँ का  हौसला  है ,

चाह मंजिल की अगर हो  जीत खुद ही पास आये | 

जले गा जब  दीप तो होगा  उजाला घर नगर में ,

तोड़ नफ़रत की दिवारें तब  पड़ोसी पास आये | 

राह हो  आसान तो  कोई  गुजर जाये   खुशी से ,

खोह घाटी का सफर वर्मा किसे अब  रास आये |

.

श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on March 3, 2015 at 8:35pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी इस सुन्दर ग़ज़ल पर बधाई आपको ! सादर 

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 3, 2015 at 8:19pm
वाह सर जी वाह ग़ज़ल अच्छी है पर इस मिसरे की तक्तीअ समझ नहीं पाया

जले गा जब दीप तो होगा उजाला घर नगर में ,

कृपया ध्यान दे...

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