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मिले जब कामयाबी लोग मिलकर साथ चलते हैं |

१२२२   १२२२  १२२२ १२२२ 
नज़र  के फेर में कितने  फ़साने रोज  बनते हैं |

कहीं राधा कहीं  मोहन बने   लाचार  जलते हैं |

नज़ारा  और होता है  खिले जब  फूल डाली में  ,

कहीं खुशबू छिपाकर भी  हज़ारों हाथ मलते हैं |

सितारे रोज आते  हैं फलक का शान बढ़ जाता ,

कहीं  चंदा  छिपा  होगा  निगाहें देख चलते हैं |  

कहीं   भौंरे  बने  लाचार   घूमें    बाग़ बानों में ,

तड़प कर  जान दे  देते  फ़साने   रोज बनते हैं | 

कहीं   पे जीत होता  है कहीं   पे  हार  भी  वर्मा  ,

मिले जब कामयाबी लोग मिलकर साथ चलते हैं |  

.

श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 741

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Comment by Shyam Narain Verma on February 21, 2015 at 9:42am
बहुत बहुत आभार आदरणीय
Comment by umesh katara on February 21, 2015 at 9:06am

वाह

Comment by Shyam Narain Verma on February 20, 2015 at 3:37pm
सभी आ. साथियों का बहुत बहुत शुक्रिया, रचना को पढ़कर हौसला अफजाई करने का। सादर ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 20, 2015 at 11:42am

आ० भाई श्यामनारायण जी , इस अच्छी भावात्मक ग़ज़ल के लिए बधाई .शेष प्रबुद्ध जन पहले ही कह चुके हैं . सादर ....

Comment by maharshi tripathi on February 19, 2015 at 8:10pm

शानदार गजल ,,,,मन को छूती रचना ,,,आपको बहुत बहुत बधाई आ.श्याम नारायण वर्मा जी |

Comment by somesh kumar on February 19, 2015 at 7:38pm

अच्छी गज़ल लगी पर विद्वान-साथियों  की सलाह का अनुसरण करके इसे और निखार लें |प्रयास पर शुभकामनाएँ |

Comment by Sushil Sarna on February 19, 2015 at 7:29pm

नज़र के फेर में कितने फ़साने रोज बनते हैं |
कहीं राधा कहीं मोहन बने लाचार जलते हैं |

सुंदर प्रस्तुति है दिलकश प्रस्तुति है किन्तु क्षमा सहित शायद टंकण त्रुटि प्रवाह में बाधक बन रही है। कृपया अन्यथा न लेवें आदरणीय।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 19, 2015 at 1:12pm

वर्मा जी

सुन्दर प्रयास है i सादर i

Comment by Pari M Shlok on February 19, 2015 at 11:58am
नज़ारा और होता है खिले जब फूल डाली में ,




कहीं खुशबू छिपाकर भी हज़ारों हाथ मलते हैं |



कहीं भौंरे बने लाचार घूमें बाग़ बानों में ,




तड़प कर जान दे देते फ़साने रोज बनते हैं |

वाह ...लाजवाब कहेंगे इसे
Comment by khursheed khairadi on February 19, 2015 at 10:10am
सितारे रोज आते  हैं फलक का शान बढ़ जाता ,

कहीं  चंदा  छिपा  होगा  निगाहें देख चलते हैं |  

कहीं   भौंरे  बने  लाचार   घूमें    बाग़ बानों में ,

तड़प कर  जान दे  देते  फ़साने   रोज बनते हैं | 

आदरणीय श्याम जी ,सुन्दर प्रस्तुति है |ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर 

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