For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मिले जब कामयाबी लोग मिलकर साथ चलते हैं |

१२२२   १२२२  १२२२ १२२२ 
नज़र  के फेर में कितने  फ़साने रोज  बनते हैं |

कहीं राधा कहीं  मोहन बने   लाचार  जलते हैं |

नज़ारा  और होता है  खिले जब  फूल डाली में  ,

कहीं खुशबू छिपाकर भी  हज़ारों हाथ मलते हैं |

सितारे रोज आते  हैं फलक का शान बढ़ जाता ,

कहीं  चंदा  छिपा  होगा  निगाहें देख चलते हैं |  

कहीं   भौंरे  बने  लाचार   घूमें    बाग़ बानों में ,

तड़प कर  जान दे  देते  फ़साने   रोज बनते हैं | 

कहीं   पे जीत होता  है कहीं   पे  हार  भी  वर्मा  ,

मिले जब कामयाबी लोग मिलकर साथ चलते हैं |  

.

श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 738

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Narain Verma on February 21, 2015 at 9:42am
बहुत बहुत आभार आदरणीय
Comment by umesh katara on February 21, 2015 at 9:06am

वाह

Comment by Shyam Narain Verma on February 20, 2015 at 3:37pm
सभी आ. साथियों का बहुत बहुत शुक्रिया, रचना को पढ़कर हौसला अफजाई करने का। सादर ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 20, 2015 at 11:42am

आ० भाई श्यामनारायण जी , इस अच्छी भावात्मक ग़ज़ल के लिए बधाई .शेष प्रबुद्ध जन पहले ही कह चुके हैं . सादर ....

Comment by maharshi tripathi on February 19, 2015 at 8:10pm

शानदार गजल ,,,,मन को छूती रचना ,,,आपको बहुत बहुत बधाई आ.श्याम नारायण वर्मा जी |

Comment by somesh kumar on February 19, 2015 at 7:38pm

अच्छी गज़ल लगी पर विद्वान-साथियों  की सलाह का अनुसरण करके इसे और निखार लें |प्रयास पर शुभकामनाएँ |

Comment by Sushil Sarna on February 19, 2015 at 7:29pm

नज़र के फेर में कितने फ़साने रोज बनते हैं |
कहीं राधा कहीं मोहन बने लाचार जलते हैं |

सुंदर प्रस्तुति है दिलकश प्रस्तुति है किन्तु क्षमा सहित शायद टंकण त्रुटि प्रवाह में बाधक बन रही है। कृपया अन्यथा न लेवें आदरणीय।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 19, 2015 at 1:12pm

वर्मा जी

सुन्दर प्रयास है i सादर i

Comment by Pari M Shlok on February 19, 2015 at 11:58am
नज़ारा और होता है खिले जब फूल डाली में ,




कहीं खुशबू छिपाकर भी हज़ारों हाथ मलते हैं |



कहीं भौंरे बने लाचार घूमें बाग़ बानों में ,




तड़प कर जान दे देते फ़साने रोज बनते हैं |

वाह ...लाजवाब कहेंगे इसे
Comment by khursheed khairadi on February 19, 2015 at 10:10am
सितारे रोज आते  हैं फलक का शान बढ़ जाता ,

कहीं  चंदा  छिपा  होगा  निगाहें देख चलते हैं |  

कहीं   भौंरे  बने  लाचार   घूमें    बाग़ बानों में ,

तड़प कर  जान दे  देते  फ़साने   रोज बनते हैं | 

आदरणीय श्याम जी ,सुन्दर प्रस्तुति है |ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
17 hours ago
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
19 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service