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मिले जब कामयाबी लोग मिलकर साथ चलते हैं |

१२२२   १२२२  १२२२ १२२२ 
नज़र  के फेर में कितने  फ़साने रोज  बनते हैं |

कहीं राधा कहीं  मोहन बने   लाचार  जलते हैं |

नज़ारा  और होता है  खिले जब  फूल डाली में  ,

कहीं खुशबू छिपाकर भी  हज़ारों हाथ मलते हैं |

सितारे रोज आते  हैं फलक का शान बढ़ जाता ,

कहीं  चंदा  छिपा  होगा  निगाहें देख चलते हैं |  

कहीं   भौंरे  बने  लाचार   घूमें    बाग़ बानों में ,

तड़प कर  जान दे  देते  फ़साने   रोज बनते हैं | 

कहीं   पे जीत होता  है कहीं   पे  हार  भी  वर्मा  ,

मिले जब कामयाबी लोग मिलकर साथ चलते हैं |  

.

श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on February 19, 2015 at 8:26am

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 19, 2015 at 12:19am

आदरणीय श्याम जी ग़ज़ल अच्छी हुई है हार्दिक बधाई निवेदित है. आदरणीय समर कबीर जी के साझा किये विचारों को दोहराते हुए ग़ज़ल पर थोड़ा और वक्त की दरकार है. सादर 

Comment by Samar kabeer on February 18, 2015 at 10:42pm
जनाब श्याम नारायण वर्मा जी,आदाब,ग़ज़ल अच्छी है ,लेकिन कुछ मिसरों में अल्फाज़ की बन्दिश चुस्त नहीं है,जैसे:-
(1)"सितारे रोज आते हैं फलक का शान बढ़ जाता"
(2)"कहीं भौंरे बने लाचार घूमें बाग़ बानों में "
(3)"कहीं पे जीत होता है कहीं पे हार भी वर्मा"

हो सकता है कि यह टंकण त्रुटियाँ हों ? फिर भी इन मिसरों पर विचार कर लें तो ग़ज़ल और सुन्दर हो जाऐगी |

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