For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इबादत जहाँ की मोहब्बत सिखाएं......

मोहब्बत क आयो दिया हम जलाएँ
ये नफ़रत के सारे अंधेरे मिटाएँ

हो मंदिर कोई एक ऐसा भी आला
हो इंसानियत का जहाँ पे उजाला
दुआ मिलके माँगें सभी सब की खातिर
इबादत जहाँ की मोहब्बत सिखाएं

वो खवाबों की पारियाँ वो चाँद और सितारें
महज़ हैं कहानी के क़िरदार सारे
क़िताबों के पन्नों से बाहर निकल के
चलो हम हक़ीकत की ग़ज़ल गुनगुनाएँ

यही धर्म कहता है मज़हब सिखाता
सबक देती क़ुरान कहती है गीता
हो पैदा ये अहसास हर इक दिल में
जो गिरता हो उसको गले से लगाएँ

तुम्हें भी पता है , हमें भी खबर है
हो मंदिर या मस्ज़िद ये उसका ही घर है
महज़ सोच का फ़र्क़ है , राह इक है
जो भटकें हुएँ हैं , उन्हे ये बताएँ

अजय कुमार शर्मा
मौलिक & अप्रकाशित

Views: 570

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 4, 2015 at 1:39pm

तुम्हें भी पता है , हमें भी खबर है
हो मंदिर या मस्ज़िद ये उसका ही घर है
महज़ सोच का फ़र्क़ है , राह इक है
जो भटकें हुएँ हैं , उन्हे ये बताएँ  ----- सत्य वचन , आदरणीय बधाइयाँ ।

Comment by Samar kabeer on February 3, 2015 at 11:00pm
जनाब अजय शर्मा जी ,आदाब,बहुत अच्छी नज़्म पेश की है भाई,मुबारक हो,दाद क़ुबूल करें |
Comment by Hari Prakash Dubey on February 3, 2015 at 8:51pm

आदरणीय अजय कुमार शर्मा जी, इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ! बाकी सभी आदरणीय अग्रजों और अनुजों ने कह ही दिया है ! सादर 

Comment by Sushil Sarna on February 3, 2015 at 3:40pm

आदरणीय सुंदर रचना और सुंदर भाव   .... टंकण दोष के लिए गुणीजनों के कथन से सहमत , इससे प्रवाह में बाधा होती है। कृपया अन्यथा न लेवें। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 3, 2015 at 3:29pm

आदरणीय अजय शर्मा जी सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई. यहाँ मैं आ. विजय शंकर सर और आ. बागी सर की टिप्पणी के हवाले से कहना चाहता हूँ. पहला टंकण त्रुटी रचना के सौदर्य को खराब कर रही है -

मोहब्बत क आयो दिया हम जलाएँ.............. मोहब्बत के आओ दिए हम जलाएँ
ये नफ़रत के सारे अंधेरे मिटाएँ

हो मंदिर कोई एक ऐसा भी आला
हो इंसानियत का जहाँ पे उजाला 
दुआ मिलके माँगें सभी सब की खातिर
इबादत जहाँ की मोहब्बत सिखाएं

वो खवाबों की पारियाँ वो चाँद और सितारें ....... ख्वाबों की परियाँ 
महज़ हैं कहानी के क़िरदार सारे 
क़िताबों के पन्नों से बाहर निकल के 
चलो हम हक़ीकत की ग़ज़ल गुनगुनाएँ

यही धर्म कहता है मज़हब सिखाता 
सबक देती क़ुरान कहती है गीता .... कुरआन से गेयता निखर रही है 
हो पैदा ये अहसास हर इक दिल में
जो गिरता हो उसको गले से लगाएँ

आदरणीय बागी सर की टिप्पणी की ओर ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा.  निवेदन है कि साथियों की रचनाओं को अपने कीमती मंतव्य से सिंचित करना चाहेंगे


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 3, 2015 at 10:42am

आदरणीय अजय शर्मा जी एक भावयुक्त रचना प्रस्तुत हुई है, इसके लिए बधाई, जैसा कि आदरणीय डॉ विजय शंकर जी का भी इशारा है, टंकण त्रुटियों पर ध्यान आकृष्ट है, साथ ही निवेदन है कि साथियों की रचनाओं को अपने कीमती मंतव्य से सिंचित करना चाहेंगे.

Comment by khursheed khairadi on February 3, 2015 at 10:36am

हो मंदिर कोई एक ऐसा भी आला
हो इंसानियत का जहाँ पे उजाला 
दुआ मिलके माँगें सभी सब की खातिर
इबादत जहाँ की मोहब्बत सिखाएं

आदरणीय अजय शर्मा जी ,सुन्दर रचना हुई है |सादर अभिनन्दन |

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 3, 2015 at 10:18am
एक खूबसूरत प्रस्तुति, बधाई , आदरणीय अजय शर्मा जी।
संभवतः टाइप की चूक सुधारना चाहेंगें। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service