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रिक्शा वाला -- अतुकांत ( गिरिराज भंडारी )

रिक्शा वाला

************

आपको याद तो होगा

वो रिक्शा वाला

 

गली गली घूमता ,

माइक में चिल्लाता , बताता

आज फलाने टाकीज़ में , फलानी पिक्चर लगी है

पर्चियाँ हवा में उड़ाता

पर्चियों के लिये रिक्शे के पीछे भागते बच्चे

बच्चों को पर्चियाँ छीनते झपटते देख खुश होता

किसी निराश हुये बच्चे को पर्ची कभी अपने हाथों से दे देता

बिना किसी अपेक्षा के , आग्रह के ,

एक जानकारी सब से साझा करता

 

न कोई आग्रह , न अपेक्षा  

और न ही शिकायत

आपके उस टाकीज़ तक न पहुँचने की

 

एक और रिक्शा वाला

पर्चियाँ उड़ाके ये बात साझा करता है

अपेक्षाओं और आग्रहों की ज़मीन में ही

पुष्पित पल्लवित होतीं है,

निराशायें , दुख- तकलीफें  

 

वैसे तो आप स्वतंत्र हैं

अपनी झोली में कुछ भी समेटने के लिये

फूल , कांटे , पत्थर कुछ भी

फिर भी

 

चाहें तो पर्चियाँ सहेजें या चाहें उड़ा दें

रिक्शे वाला फिर आयेगा , दूसरे दिन

उसी उत्साह के साथ

और पर्चियाँ ले के

**********************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 828

Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 30, 2015 at 8:12am

आदरणीय बागी भाई जी , आपकी सराहना रचना को मिली , मन प्रसन्न हो गया । आपकी सलाह का स्वागत है आदरणीय , वैसे मै भी प्रयास करूंगा , अनावश्यक शब्द हटा सकूँ , फिर भी अगर आप सहायता कर दें दो बहुत खुशी होगी । आपका दिली आभार ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 29, 2015 at 9:18pm

बहुत ही सुन्दर भाव युक्त इस अतुकांत कविता पर बधाई देता हूँ आदरणीय गिरिराज भाई साहब साथ ही यह कहना भी चाहता हूँ कि इस रचना से कुछ अनावश्यक शब्दों को हटाकर कविता को कॉम्पैक्ट किया जा सकता है जिससे रचना और निखर सकती है, सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 28, 2015 at 9:45pm

आदरणीया सीमा जी , रचना की केंद्रिय भावना तक पहुँच के प्रतिक्रिया देने और सराहना के लिये आपका आभारी हूँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 28, 2015 at 9:43pm

आदरणीय विजय भाई , रचना पर आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिये आपका बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 28, 2015 at 9:42pm

आदरणीय बड़े भाई , आपका  बहुत बहुत आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 28, 2015 at 9:42pm

आदरणीया राजेश जी , आपकी सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by seema agrawal on January 28, 2015 at 9:26pm

पुरानी ज़मीन के खुशनुमा किस्सों का हिस्सा भोपूं पर ख़बरें बाँटता रिक्शेवाला फिर से  याद  हो आया  मगर इस बार  उसकी अहमियत एक नए  दृष्टि कोण से देखने को मिली ...............

अपेक्षाओं और आग्रहों की ज़मीन में ही

पुष्पित पल्लवित होतीं है,

निराशायें , दुख- तकलीफें  

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 28, 2015 at 9:05pm
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आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,
कहाँ खो गए ? एक लेखक, एक कवि , एक रचनाकार के मनोभावों ( खुशी, उत्साह, वेदनाओं को ) को इतनी सरलता से गा गये.
जो चाहे समेटे ,
न चाहे छोड़ दे,
पर्चियां उड़ाने वाला , फिर आएगा ,
फिर पर्चियां लाएगा, उड़ाएगा,
जो चाहे बीन ले, सहेजे,
रखे या फेंक दे, या देखे भी न.
एक बात और , एक बार जो पर्ची छोड़ दी वह फिर रिक्शेवाले की कहाँ रह गयी. फिर तो नयी पर्चियां ही लानी होगीं।
बधाई,
बाकी प्रतीक्षा में,
सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 28, 2015 at 8:57pm

मित्र

यह जो एक और रिक्शे वाला है  i वही महत्वपूर्ण है और वही रचना को ऊँचाई प्रदान करता है i बधाई i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 28, 2015 at 11:02am

वैसे तो आप स्वतंत्र हैं

अपनी झोली में कुछ भी समेटने के लिये

फूल , कांटे , पत्थर कुछ भी

फिर भी

 

चाहें तो पर्चियाँ सहेजें या चाहें उड़ा दें

रिक्शे वाला फिर आयेगा , दूसरे दिन

उसी उत्साह के साथ

और पर्चियाँ ले के

सही सारगर्भित पंक्तियाँ ....सुन्दर रचना बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

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