For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सात फेरों की रस्में निभाओ मगर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122    1221    2212

**********************
रूह  प्यासी  बहुत  घट ये  आधा न दो
आज ला के निकट कल का वादा न दो


रूख  से  जुल्फें  हटा  चाँदनी  रात में
चाँद को  आह  भरने  का मौका न दो


फिर  दिखा  टूटता नभ  में तारा कोई
भोर  तक  ही  चले  ऐसी आशा न दो


प्यार  के  नाम  पर  खेल कर देह से
रोज  मासूम  सपनों  को धोखा न दो


सात फेरों  की  रस्में  निभाओ  मगर
देह  तक ही  टिके  ऐसा  रिश्ता न दो


चाहिए  अब  समाजों  को  ताजी हवा
तंग नजरों का खिड़की पे ताला न दो


है शिकारी  सी  फितरत  पता है हमें
जाल  फैला  के  थोड़ा सा दाना न दो


याद घर की मुसाफिर को आ जाएगी
वक्त  गौधूलि  के  आज  दीवा न दो


रचना - 10 जनवरी 15
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 528

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2015 at 1:07pm

ग़ज़ल पर उपस्थिति दर्ज कर उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए सभी आ० प्रभुद्ध जानो का हार्दिक आभार   आशा है सहयोग बनाये रखेंगे l


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 25, 2015 at 2:57pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बधाई.

Comment by Hari Prakash Dubey on January 24, 2015 at 7:49pm

आदरणीय लक्षमण धामी जी,

फिर  दिखा  टूटता नभ  में तारा कोई

भोर  तक  ही  चले  ऐसी आशा न दो......... सुन्दर रचना हार्दिक बधाई आपको  !

 

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 24, 2015 at 7:06pm
आदरणीय एक एक शे'र लाजवाब वाह वाह वाह !
पर आदरणीय आप से व अन्य गुनीजनो से अनुरोध है मेरी ये छोटी सी उलझन दूर करने का कष्ट करें!

2122 1221 2212 आपकी इस बहर का क्या नाम है व इस बहर और
212 212 212 212 इस बहर मे क्या अन्तर है? सादर विनती!
Comment by somesh kumar on January 23, 2015 at 11:12pm

सुंदर ,दिलकश गज़ल 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 23, 2015 at 9:38pm

आदरणीय लक्ष्मण जी कमाल की ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 23, 2015 at 8:17pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत बहुत बहुत बेहद उम्दा ग़ज़ल .... एक एक अशआर कमाल .... 

रूह  प्यासी  बहुत  घट ये  आधा न दो
आज ला के निकट कल का वादा न दो............ कमाल का मतला 


रूख  से  जुल्फें  हटा  चाँदनी  रात में
चाँद को  आह  भरने  का मौका न दो.........वाह वाह 


फिर  दिखा  टूटता नभ  में तारा कोई
भोर  तक  ही  चले  ऐसी आशा न दो..... दिल से दाद कुबूल करे 


प्यार  के  नाम  पर  खेल कर देह से
रोज  मासूम  सपनों  को धोखा न दो........ क्या कटाक्ष है सीधा वार करने वाला 


सात फेरों  की  रस्में  निभाओ  मगर
देह  तक ही  टिके  ऐसा  रिश्ता न दो....... ग़ज़ल का सुन्दर मोती


चाहिए  अब  समाजों  को  ताजी हवा
तंग नजरों का खिड़की पे ताला न दो..... आह दिल निकाल लिया इस शेर ने 


है शिकारी  सी  फितरत  पता है हमें
जाल  फैला  के  थोड़ा सा दाना न दो..... वाह वाह वाह 


याद घर की मुसाफिर को आ जाएगी
वक्त  गौधूलि  के  आज  दीवा न दो ... क्या खूब कहा ! आनंद आ गया 

दिल से लाखों बधाइयाँ .... बस कमाल ही कमाल .... दिल में उतर गया एक एक अशआर 

Comment by gumnaam pithoragarhi on January 23, 2015 at 7:09pm

प्यार के नाम पर खेल कर देह से
रोज मासूम सपनों को धोखा न दो

वाह क्या खूब ग़ज़ल हुई है वाह क्या बात है

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 23, 2015 at 6:56pm
बहुत सुन्दर ग़ज़ल……और ये पक्तियां लजवाब.

चाँद को आह भरने का मौका न दो
भोर तक ही चले ऐसी आशा न दो
रोज मासूम सपनों को धोखा न दो
देह तक ही टिके ऐसा रिश्ता न दो
बहुत बहुत बधाइयां , आदरणीय लक्षमण धामी जी, सादर।
Comment by kanta roy on January 23, 2015 at 12:46pm
"देह तक टिके ऐसा रिश्ता ना दो "...चंद पंक्तियों में सम्पूर्ण प्रेम की चाहत को बेहद खूबसूरती से आकार दिया आपने आ. लक्ष्मण धामी जी आपने । बधाई आपको इस बेहतरीन रचना के लिए ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"वक़्त बदला 2122 बिका ईमाँ 12 22 × यहाँ 12 चाहिए  चेतन 22"
58 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ठीक है पर कृपया मुक़द्दमे वाले शे'र का रब्त स्पष्ट करें?"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी  इस दाद और हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत…"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"बहुत बहुत शुक्रिय: आपका"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय "
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय "
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी सादर प्रणाम । बहुत बहुत बधाई आपको अच्छी ग़ज़ल हेतु । कृपया मक्ते में बह्र रदीफ़ की…"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय DINESH KUMAR VISHWAKARMA जी आदाब  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। जो…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय 'अमित' जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी आदाब। इस उम्द: ग़ज़ल के लिए ढेरों शुभकामनाएँ।"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Sanjay Shukla जी आदाब  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास पर बधाई स्वीकार करें। इस जहाँ में मिले हर…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, अभिवादन।  गजल का प्रयास हुआ है सुधार के बाद यह बेहतर हो जायेगी।हार्दिक बधाई।"
5 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service