मै कभी नहीं मरता
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आप बच नहीं सकते
उलझने से
ऐसा इंतिज़ाम है मेरा
फैला दिया है मैने मेरा अहंकार हर दिशाओं मे
हर दिशाओं के हर कोणों में
बस मैं हूँ , मैं
कहीं भी जायें, उलझेंगे ज़रूर
जब भी कोई उलझता है , मेरे मैं से
चोटिल करता उसे
तत्काल मुझे ख़बर लग जाती है , और तब
मुझे खड़ा पाओगे तुम उसी क्षण
अपने विरुद्ध
तमाम हथियारों से सुसज्जित
ये भी तय है ,
हरा नहीं पाओगे तुम मुझे
कोई नहीं हरा पाया आज तक
मैं मानता ही नहीं हार
मै मरता भी नहीं
मैं टूटता हूँ , टुकड़ों में , फिर
पिघलता है मेरा अस्तित्व
तरलता आती है , ठोस में
फिर मै वाष्प बन जाता हूँ
फैल जाते हैं मेरे कण कण सारे ब्रम्हांड में
और विलीन हो जाता सारा अहम्
उस परम में , परम के अहम् में
फिर से मुझ जैसे किसी एक में आने के लिये ।
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर बहुत ही शानदार दर्शन से सुसज्जित रचना , हार्दिक बधाई ! सादर
'अहम' पर बहुत सही चिंतन मनन करती रचना. बधाई आदरणीय गिरिराज जी
जीवन चक्र ,आत्मा-परमात्मा -आत्मा |ख्याल में कितनी व्यापकता |आत्मा-स्वरूप होना ,जहाँ सब कुछ एक खेल है और एक स्थाइत्व भी है |अच्छी रचना |
वाह खूब है सर ही वाह ............... हर दिशाओं .............या
हर दिशा
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