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2122 1212 22/112

तू मुहब्बत न आजमा मेरी

है तेरे वास्ते वफ़ा मेरी

 

यूँ कहे पर न जा ज़माने के

गाह चौखट तलक तो आ मेरी

 

अश्क़ चाहें निकलना आँखों से

रोकती है उन्हें अना मेरी

 

कौन रखता हिसाब ज़ख़्मों का

खुद मैं कातिब हयात का मेरी

 

रेत में दफ़्न हो गया कतरा

जो ज़बीं से अभी गिरा मेरी

 

ज़ख़्म देते हैं वो मुझे पहले

फिर वही करते हैं दवा मेरी

 

हर सफर में उदास राहों पर

साथ मेरे चले सदा मेरी

 

राहे माज़ी में लौटकर देखा

शक्लें बिखरी थीं जा ब जा मेरी

 

(कातिब- लेखक,  जा ब जा- जगह-जगह)

 

-मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2014 at 8:27pm

आदरणीय शिज्जु भाई जी .... आपकी ग़ज़ल कई बार पढ़ी ... बेहतरीन ग़ज़ल हुई है ..... शेर दर शेर बस दाद कुबूल कीजिये 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 28, 2014 at 7:56pm

"आदरणीय शिज्जु  साहब, कमाल है सर , मुझे ग़ज़ल लिखना तो नहीं आता पर आपकी ग़ज़लों से आनंद लेता रहता हूँ , बहुत बधाई आपको !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 28, 2014 at 7:12pm

//राहे माज़ी में लौटकर देखा

शक्लें बिखरी थीं जा ब जा मेरी//

आदरणीय शिज्जू भाई, कोट किया हुआ शेर मुझे अधिक पसंद आया, अच्छी ग़ज़ल हुई है, बहुत बहुत बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 28, 2014 at 6:43pm

आदरनीय शिज्जु भाई , क्या खूब सूरत गज़ल हुई है , वाह !! दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें ।

कौन रखता हिसाब ज़ख़्मों का

खुद मैं कातिब हयात का मेरी

 

ज़ख़्म देते हैं वो मुझे पहले

फिर वही करते हैं दवा मेरी

 

हर सफर में उदास राहों पर

साथ मेरे चले सदा मेरी

 

राहे माज़ी में लौटकर देखा

शक्लें बिखरी थीं जा ब जा मेरी  -- बहुत खूब आदरणीय इन अश आर के लिये खूब बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 28, 2014 at 6:38pm

आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने मेरी रचना को समय दिया स्नेह बनाये रखें
सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 28, 2014 at 6:36pm

आदरणीय रामशिरोमणि भाई ग़ज़ल की सराहना के लिये हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 28, 2014 at 6:36pm

आदरणीय राहुल जी आपका हार्दिक आभार 

Comment by harivallabh sharma on December 28, 2014 at 6:18pm

बहुत शानदार ग़ज़ल हुयी आदरणीय शिज्जू 'शकूर' साहब..

ज़ख़्म देते हैं वो मुझे पहले

फिर वही करते हैं दवा मेरी

 

हर सफर में उदास राहों पर

साथ मेरे चले सदा मेरी

 

राहे माज़ी में लौटकर देखा

शक्लें बिखरी थीं जा ब जा मेरी...क्या कहने सभी शेर गज़ब हैं..बधाई आपको.

Comment by ram shiromani pathak on December 28, 2014 at 5:14pm
ज़ख़्म देते हैं वो मुझे पहले
फिर वही करते हैं दवा मेरी

हर सफर में उदास राहों पर
साथ मेरे चले सदा मेरी

राहे माज़ी में लौटकर देखा
शक्लें बिखरी थीं जा ब जा मेरी।।।।।वाह वाह

ज़ोरदार कहन हार्दिक बधाई आपको।।सादर
Comment by Rahul Dangi Panchal on December 28, 2014 at 4:43pm
सुन्दर गजल आदरणीय!

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