For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्पर्श

कभी-कभी तुम्हारे स्पर्श मात्र से

जो सिहरन होती है वो उस

चरम से बड़ी है जो शायद

तुम्हें पूर्ण पाने से मिले |

बीच सागर में ,तपती दोपहरी में

अकेले बेड़े पर भटकते नाविक के लिए

जैसे जीवनदायक है जलद की कुछ बूंदे

वैसे ही अनमोल हैं क्षण-क्षण

जो तुम्हारे साथ बीताता हूँ |

मोल चीजों के होने से नहीं होता अपितु

मोल बढ़ता है ज़रूरत होने से

और ये सच है कि मेरा जीवन

अभी झुलसते मरुस्थल सा है

जहाँ सैकड़ो मृग –मरीचिकाएँ उभरती हैं

और मेरी प्यास हाँफ-हाँफ कर भटकती है

ऐसे में तुम्हारा सामीप्य मरुधान है

अल्प समय का ही सही

तुमसे मेरी समस्या का निदान है

|सोमेश कुमार (२१/०८/०९)

Views: 450

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by somesh kumar on December 28, 2014 at 10:59pm

मिथिलेश भाई जी एवं श्याम नारायन भाई जी हौसलाअफजाई के लिए शुक्रिया |शिज्ज शक्र भाई जी आपको रचना पसंद आई तो लिखना सार्थक हुआ| सौरभ सर का आशीष मिलना और मार्गदर्शन हमेशा अच्छे रचनाकर्म के लिए प्रेरित करता है |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 28, 2014 at 3:06pm

अच्छा प्रयास हुआ है. तथ्य विन्यास पर और ध्यान दें.
शुभकामनाएँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 27, 2014 at 6:01pm

बहुत बढ़िय़ा आदरणीय सोमेश जी बहुत अच्छी पंक्तियाँ हैं, सादर बधाई इस रचना के लिये

Comment by Shyam Narain Verma on December 27, 2014 at 2:22pm

सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2014 at 8:55pm

सुन्दर भावाभिव्यक्ति आदरणीय सोमेश भाई ... बहुत बहुत बधाई ....

क्या पंक्तिया है .... वाह्ह्ह 

और मेरी प्यास हाँफ-हाँफ कर भटकती है

ऐसे में तुम्हारा सामीप्य मरुधान है

अल्प समय का ही सही

तुमसे मेरी समस्या का निदान है

Comment by somesh kumar on December 26, 2014 at 8:10pm

शुक्रिया ,पढ़ने वालों का भी और पढ़ कर अपनी अमूल्य टिप्पणी देने वाले मित्रों एवं आदरणीय अग्रजों का 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 26, 2014 at 4:58pm

........ प्यास हाँफ-हाँफ कर भटकती है,सुन्दर रचना ,बढ़िया प्रयास ,हार्दिक बधाई सोमेश भाई !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 26, 2014 at 11:58am

सोमेश जी

बहुत अच्छी अभिव्यक्ति दी आपने  i

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 26, 2014 at 11:45am
स्पर्श करती है आपकी यह रचना , बहुत बहुत बधाई आदरणीय सोमेश जी, सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
45 minutes ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहा सप्तक. . . . . मित्र जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।कदम -कदम विश्वास का ,होता है…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर,…"
10 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"गीत••••• आया मौसम दोस्ती का ! वसंत ने आह्वान किया तो प्रकृति ने श्रृंगार…"
17 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आया मौसम दोस्ती का होती है ज्यों दिवाली पर  श्री राम जी के आने की खुशी में  घरों की…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली अपने थीम के अनुरूप ही प्रस्तुत हुई है.  हार्दिक बधाई "
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली के लिए हार्दिक धन्यवाद.   यह अवश्य है कि…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी प्रस्तुति आज की एक अत्यंत विषम परिस्थिति को समक्ष ला रही है. प्रयास…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आवारा मदमस्त सी, नभ में उड़े पतंग ।बीच पतंगों के लगे, अद्भुत दम्भी जंग ।।  आदरणीय सुशील…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"दुःख और कातरता से विह्वल मनस की विवश दशा नम-शब्दों की रचना के होने कारण होती है. इसे सुन्दरता से…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढिया भावाभिव्यक्ति, आदरणीय. इस भाव को छांदसिक करें तो प्रस्तुति कहीं अधिक ग्राह्य हो जाएगी.…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service