यूँ मुझको याद करके
हिय में ना धार उठाओ
शांत-शीतल मन ताल है
छेड़कर,ना भंवरे उठाओ |
स्मृतियाँ आषाढ़ी नदी सी
वेग-दासी हो रही हैं
तुलना प्रस्तुत की पुरा से
मन-उदासी हो रही है |
मुश्किलों से बाँधा है मन
और गाठें मत बढाओ |
यूँ मुझको याद करके
हिय में ना धार उठाओ
जब तक रहता अधूरा
प्रेम की ही पूर्णंता है
वासनारत देव हरदम
भक्त नए ढूंढता है |
मुक्त मधुप मकरंद पा
कब कलि की टोह लेता
वो रसिक स्वार्थलोलुप
संधान नए खोज लेता |
मैं चला बनने पतंगा
अलि मुझको ना बनाओ |
यूँ मुझको याद करके
हिय में ना धार उठाओ |
सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
मुश्किलों से बाँधा है मन
और गाठें मत बढाओ |.....बहुत खूब सोमेश भाई, हार्दिक बधाई !
सुन्दर भावाभिव्यक्ति .... आदरणीय सोमेश भाई इस प्रस्तुति के लिये बधाई
आदरणीय सोमेश भाई इस प्रयास के लिये बधाई
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