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'मेरी कविता से मुझे एक नयी पहचान मिले !'

हूँ कवि , मन में मेरे नित यही अरमान पले !
मेरी कविता से मुझे एक नयी पहचान मिले !
...........................................................
कवि हूँ कल्पना को मैं साकार कर देता ,
घुमड़ते उर-गगन में नित सृजन-अम्बुद घने ,
रचूँ कुछ ऐसा यशस्वी 'नूतन' अद्भुत ,
मिले आनंद उसे जो भी इसे पढ़े-सुने ,
कभी नयनों को करे नम कभी मुस्कान खिले !
मेरी कविता से मुझे एक नयी पहचान मिले !
...........................................................
नहीं रच सकता कोई यूँ ही रचना कालजयी ,
कवि की योजना आकार लेती यूँ ही नहीं ,
मिलें जब ज्ञान ,अभ्यास ,कवि का कौशल ,
तभी रच पाती है रचना कोई कल्याणमयी ,
जिसकी हुंकार से है तख़्त दरिंदों के हिले  !
मेरी कविता से मुझे एक नयी पहचान मिले !
............................................................
लिखूं ऐसा कि जगह दिल में बना लूँ सबके ,
मिले ठंडक दिलों को एक बार पढ़-सुन के ,
मेरे पाठक ,मेरे श्रोता मुझे ग़र याद करें ,
मेरी कुछ पंक्तियाँ सज जाएँ लबों पर आ के ,
कवि कब चाहता है ताजमहल-लाल-किले !
मेरी कविता से मुझे एक नयी पहचान मिले !

शिखा कौशिक 'नूतन'

[मौलिक व् अप्रकाशित]

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Comment

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 19, 2014 at 10:59am

वाह, सुन्दर भाव - हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by shalini kaushik on November 18, 2014 at 11:08pm

avshya milegi aapki kavita aapki sambhavnaon ko prabhavi bal deti nazar aa rahi hai .bahut prabhi abhivyakti badhai .

Comment by shikha kaushik on November 18, 2014 at 10:23pm

somesh ji ,hari prakash ji ,rajesh ji  sarthak v prernadayi tippani hetu aabhar .dr.gopal narayan ji truti kee or dhyan aakarshit karne hetu hardik aabhar 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 16, 2014 at 7:13pm

शिखा जी एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी रचना ओबिओ पटल पर आई बहुत अच्छा लगा ,बहुत बढ़िया प्रस्तुति हार्दिक बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 16, 2014 at 12:25pm

शिखा जी

कविता में आपने  अपनी बात ढंग से कहें है i तुकांतता का भी ध्यान रखा है i दरिंदो का हिला  के स्थान पर दरिंदो के हिले होना चाहिए i

आपका भविष्य अच्छा है i

Comment by Hari Prakash Dubey on November 16, 2014 at 10:42am

सुन्दर रचना बधाई !

Comment by somesh kumar on November 16, 2014 at 10:12am

जिस दिए से उजाला होगा 

उसी ने संग्राम संभाला होगा 

ए अंधरे इतना ना इतरा 

सुबह तेरा मुँह काला होगा |

स्वीकृति-अस्वीकृति सब वक्त पे छोड़ ,पढ़ते-लिखते रहें एक दिन अवश्य यश प्राप्त करेंगी वो ना भी मिले तो मन  संतुष्ट रहेगा की आप ने कोई कोशिश नहीं रख छोड़ी 

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