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मन को दुर्बल क्यों करें'क्षणिक दीन अवसाद।
आगे देखो है खड़ा'आशा का आह्लाद।।

रिश्ते भी अब हो गये'ज्यों दैनिक अखबार।
आज पढ़ लिया प्रेम से'कल फिर से बेकार।।

ह्रदय प्रेम से भर गया'देखा अनुपम प्यार।
कामदेव दुन्दुभि लिये'आये मेरे द्वार।।

खुद को भी आवाज़ दे,खुद को ज़रा पुकार!
एक रात तू भी कभी,खुद के साथ गुजार।!

आप कहो कुछ मै कहूँ'बातें हो दो चार।
तुम खुश मैं भी खुश रहूँ'बना रहेगा प्यार।।
********************************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by ram shiromani pathak on November 10, 2014 at 2:43pm
भाई जीतेन्द्र जी बहुत आभार आपका।।सादर
Comment by ram shiromani pathak on November 10, 2014 at 2:42pm
आदरणीय अलोक जी बहुत आभार आपका।।सादर
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 10, 2014 at 12:21pm

सुंदर भाव रचित दोहों पर कुछ सुझाव (यदि उचित लगे और आपके भावों के अनुरूप लेगे)

मन को दुर्बल क्यों करें'क्षणिक दीन अवसाद।
आगे देखो है खड़ा'आशा का आह्लाद।।----------आह्लाद इस तरह लिखे से १२ मात्राए गिनी जायेगी | ह के नीचे हलक लागाना होगा 

रिश्ते भी अब हो गये'ज्यों दैनिक अखबार।
आज पढ़ लिया प्रेम से'कल फिर से बेकार।। "आज पढ़ लिया प्रेम से" में लय भंग हो रही है | - पढ़ा आज तो प्रेम से, किया जा सकता है 

ह्रदय प्रेम से भर गया'देखा अनुपम प्यार।---  ह्रदय प्रेम भरता रहे, जब हो अनुपम प्यार 
कामदेव दुन्दुभि लिये'आये मेरे द्वार।।

खुद को भी आवाज़ दे,खुद को ज़रा पुकार!
एक रात तू भी कभी,खुद के साथ गुजार।!-----   सुंदर दोहा 

आप कहो कुछ मै कहूँ'बातें हो दो चार।
तुम खुश मैं भी खुश रहूँ'बना रहेगा प्यार।।  - आपस में हम खुश रहे, बना रहे तब प्यार - देखे कैसा रहेगा 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 10, 2014 at 11:50am

//आप कहो कुछ मै कहूँ'बातें हो दो चार।
तुम खुश मैं भी खुश रहूँ'बना रहेगा प्यार।।//

ऐसा दोहा राम जी, कैसे छोड़े छाप ?
कभी पुकारो "तुम" उसे, कभी बुलायो "आप"

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 10, 2014 at 9:55am

सभी दोहे सुंदर संदेशप्रद लिखे, आपने आदरणीय राम भाई. बधाई

Comment by Alok Mittal on November 9, 2014 at 7:15pm

शानदार दोहे ,.....बहुत बधाई भाई

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