गजल- चल रही है आँंधियॉं...
बह्र-- 2122 2122 2122 212
जिन्दगी है आस्मां हर ओर खालीपन चुभे।
आजकल की दास्तां हर ओर खालीपन चुभे।।
चॉंद, अपनी चॉंदनी रखता नहीं जब पास में,
मेघ-मावस से जहां हर ओर खालीपन चुभे।1
भोर की लाली चहक कर मॉंगती वर खास है,
सॉंझ को लुटती यहां हर ओर खालीपन चुभे।2
प्यार आँंखों में दिलों में दर्द का दरिया बहे,
डूबती कश्ती शमां हर ओर खालीपन चुभे।3
झॉंकते हैं अब झरोखों से सितमगर-हमसफर,
आग से उठता धुआं हर ओर खालीपन चुभें।4
धर्म-'सत्यम' का दिया कब तक जले इस देश में,
चल रही है आँंधियां हर ओर खालीपन चुभे।।5
के0पी0 सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 रामानी'दी जी, आपका हृदयतल से आभार। सादर,
आ0 सुशाील भाईजी आपका हृदयतल से आभार। सादर,
आ0 वेदिका जी , आपका हृदयतल से आभार। सादर,
सत्यम जी
कहाँ थे मित्र ? बहुत दिन बाद दिखे वह भी इस खूबसूरत गजल के साथ i मुबारक हो i
प्यार आँखों में दिलों में दर्द का दरिया बहे,
डूबती कश्ती शमां हर ओर खालीपन चुभे।
बहुत खूब आ० केवल भाई , पूरी ग़ज़ल सुन्दर बानी है हार्दिक बधाई कबूलें .
बहुत सुंदर गज़ल .आपको हार्दिक बधाई.केवल भाई.
सुंदर गजल के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीय केवल प्रसाद जी
जिन्दगी है आस्मां हर ओर खालीपन चुभे।
आजकल की दास्तां हर ओर खालीपन चुभे .... बेहतरीन अभिव्यक्ति … सुंदर अहसासों को जीती सुंदर ग़ज़ल .... हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति हेतु आदरणीय केवल प्रसाद जी
जिन्दगी है आस्मां हर ओर खालीपन चुभे।
आजकल की दास्तां हर ओर खालीपन चुभे।। ..... बढ़िया अभिव्यक्ति
बधाई आ० केवल जी!
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