For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रीत की चली पवन,
जब मिले धरा गगन,
मेघों के गर्जन,
संगीत बन गए,
बज उठे नूपुर,
प्रेम गीत बन गए।

कान्हा की बंसी ने
प्रेम धुन बजाई
होके दीवानी देखो
राधा चली आई
अजनबी थे जो,
मन के मीत बन गए,
बज उठे नूपुर,
प्रेम गीत बन गए।

चंद्रमा के प्रेम में,
चांदनी पिघल रही,
बिन तुम्हारे नेह की,
रागिनी मचल रही,
प्रीत में यही,
जग की रीत बन गए,
बज उठे नूपुर,
प्रेम गीत बन गए।

मन का खुला साँकल है,
ऐसा ये प्यार है,
नैनो ने हामी भरी,
अधरों पे इंकार है,
हार थे जो वो,
अब जीत बन गए,
बज उठे नूपुर,
प्रेम गीत बन गए।

(अनीता मौर्या)

"मौलिक व अप्रकाशित "

Views: 914

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Anita Maurya on January 16, 2014 at 9:42am

Aap sab ka bahut bahut aabhar.. 

Comment by ram shiromani pathak on January 15, 2014 at 6:41pm

सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया। ……।   हार्दिक बधाई आपको 

Comment by विजय मिश्र on January 15, 2014 at 4:25pm
रमणीय रचना ,साधुवाद अनिताजी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2014 at 12:54am

प्रेमगीत के लिए बधाइयाँ.

Comment by Shyam Narain Verma on January 14, 2014 at 5:31pm
सुंदर गीत के लिए बधाई ...
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 13, 2014 at 10:37pm

अति सुंदर गीत , मन को छू जाती पंक्तियाँ बधाई स्वीकारें आदरणीया अनीता जी

Comment by coontee mukerji on January 13, 2014 at 10:15pm

चंद्रमा के प्रेम में,
चांदनी पिघल रही,
बिन तुम्हारे नेह की,
रागिनी मचल रही,.....बहुत सुंदर अबिव्यक्ति. हार्दिक बधाई.

Comment by ajay sharma on January 13, 2014 at 9:37pm

मन का खुला साँकल है, 
ऐसा ये प्यार है, 
नैनो ने हामी भरी, 
अधरों पे इंकार है, 
हार थे जो वो, 
अब जीत बन गए, 
बज उठे नूपुर,...............khoobsurat geet ke liye hridaya tal se badhaii.....sweekar kare

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 13, 2014 at 1:16pm

आदरणीया अनीता जी ..

चंद्रमा के प्रेम में, 
चांदनी पिघल रही, 
बिन तुम्हारे नेह की, 
रागिनी मचल रही, 
प्रीत में यही, 
जग की रीत बन गए, 
बज उठे नूपुर, 
प्रेम गीत बन गए।...दिल को छू लेने वाली इन पंकितियों के लिए तहे दिल बधाई सादर 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 13, 2014 at 12:45pm

वाह वाह क्या लय है,  क्या शब्द है, अनुपम !! हार्दिक बधाई आ० अनीता मौर्य जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service