For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है

1 2 2 2      1 2 2 2       1 2 2 2

मेरे किरदार पे वो शक जताता है

बिना ही बात वो तेवर दिखाता है

 

नहीं जो जानता रिश्तों के मतलब भी

मुझे वो प्यार की पट्टी पढ़ाता है

 

बता तो दूँ उसे औकात उसकी पर

मेरा ये दिल उसे अपना बताता है

 

*निवाले फेंककर दो वक़्त के मुझ पर

मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है  

 

मुझे वो मारता है हर घड़ी हर पल

मगर तफ़तीश में जिंदा बताता है

*सशोधित

संजू शाब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

Views: 892

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on December 9, 2013 at 9:20am

आदरणीया संजू जी,खूबसूरत गज़ल क्या कहने बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by sanju shabdita on December 9, 2013 at 9:10am

आदरणीय बागी जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 8, 2013 at 10:20pm

यथा सशोधित

Comment by sanju shabdita on December 8, 2013 at 8:31pm

आदरणीय एडमिन जी आपसे निवेदन है कि प्रस्तुत ग़ज़ल के निम्न शेर में सुधार कर दें ,आपकी महती कृपा होगी।

निवाले फेंककर दो वक़्त की मुझ पर

मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है   

      के स्थान पर

निवाले फेंककर दो वक़्त के मुझ पर

मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है   

Comment by sanju shabdita on December 8, 2013 at 5:00pm

आदरणीय सौरभ जी आपका मेरी ग़ज़ल पर आना हुआ मैं आभारी हूँ ,प्रस्तुत ग़ज़ल पर आपके द्वारा  सकारात्मक अनुमोदन पाकर मुझे अत्यधिक संबल मिला है,मेरा मनोबल बढ़ाने हेतु मैं आपकी हृदय -तल से आभारी हूँ,आपने मेरी रचना-धर्मिता को समझा और सराहा ,मैं अभिभूत हूँ ,आगे भी आपके महत्वपूर्ण मार्गदर्शन की अपेक्षा रहेगी ;

'"एक बात:
निवाला को लेकर आपको सुझाव भी मिल चुके हैं. आपने टिप्पणियों के उत्तर तो दिये लेकिन शेर में आवश्यक सुधार नहीं करवाया. मैं नहीं समझता कोई खासा वज़ह होगी. इस उम्दा शेर को दुरुस्त करवा लें.'"

इस सम्बन्ध में भी मुझे आपके आने का इंतज़ार था,अब सारे भ्रम दूर,सुधार अवश्य ही कर लूँगी ।

                                                         सादर आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 8, 2013 at 12:08am

संजूजी, इस दफ़े आपकी ग़ज़ल कई मायनों में एक अलग सी ग़ज़ल है. यदि आपके ये तेवर आनेवाले समय के लेखन की नुमाइश हैं तो अच्छी बात है और आप एकदम सही राह पर हैं. इस मंच के लिए भी यह एक सुखद बात होगी.

मतले से लेकर आखिरी शेर तक आपने सामाजिक विसंगतियों को व्यक्तिपरक कलेवर दे कर पेश किया है. यह लेखक के तौर पर बढ़ रहे आपके विश्वास का परिचायक है.
बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें, संजूजी.


एक बात:
निवाला को लेकर आपको सुझाव भी मिल चुके हैं. आपने टिप्पणियों के उत्तर तो दिये लेकिन शेर में आवश्यक सुधार नहीं करवाया. मैं नहीं समझता कोई खासा वज़ह होगी.

इस उम्दा शेर को दुरुस्त करवा लें.  
 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 3, 2013 at 11:18am

निवाले फेंककर दो वक़्त की मुझ पर

मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है

 में नारी व्यथा का अच्छा प्रस्तुतीकरण किया है . सादुवाद .

Comment by वीनस केसरी on December 3, 2013 at 2:28am

सुन्दर ग़ज़ल है

ढेरो दाद

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on December 2, 2013 at 4:23pm

बहुत सुन्दर लिखा है आपने आदरणीया लेकिन , निवाले पुल्लिंग होने के चलते 

निवाले फेंककर दो वक़्त की मुझ पर

मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है // इस शेर में आप देख लें---- कि निवाले फेंककर दो वक्त //के// मुझपे ॥ मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 2, 2013 at 3:17pm

क्या बात क्या बात क्या बात .... बहुत ख़ूब ग़ज़ल ...बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service