For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sanju shabdita's Blog (18)

ग़ज़ल - मेरी तक़दीर लिख रहा है वो

2122       1212       22

जबसे मुझसे बिछड़ गया है वो

सबमें मुझको ही ढूढ़ता है वो

मैंने मांगा था उससे हक़ अपना

बस इसी बात पर खफ़ा है वो

मेरी  तदवीर को किनारे रख

मेरी तक़दीर लिख रहा है वो

पत्थरों के शहर में जिंदा है

लोग कहते हैं आइना है वो

उसकी वो ख़ामोशी बताती है

मेरे दुश्मन से जा मिला है वो

 

संजू शब्दिता

मौलिक व अप्रकाशित

Added by sanju shabdita on September 25, 2014 at 5:00pm — 26 Comments

ग़ज़ल- कि दरिया पार होकर भी किनारे छूट जाते हैं

१२२२       १२२२          १२२२         १२२२

ज़रा सी बात पर अनबन, भरोसे टूट जाते हैं

कि साथी सात जन्मों के पलों में छूट जाते हैं

ये दिल का मामला प्यारे नहीं दरकार पत्थर की

ज़रा सी बेरुखी से ही ये शीशे फूट जाते हैं

ये ऐसा दौर है साहिब कि आँखें खोल हम सोये

मगर हद है लुटेरे सामने ही लूट जाते हैं

ये माना बेखुदी में हो मगर कुछ होश भी रखना

बहुत जल्दी ही  ख्वाबों के घरौंदे टूट जाते हैं

खुदी में दम…

Continue

Added by sanju shabdita on July 6, 2014 at 9:26pm — 30 Comments

ग़ज़ल -कि साज़िश के निशाने पर ही हमने दिन गुजारे हैं

 १२२२      १२२२     १२२२       १२२२

हमें माझी की आदत है उसी के ही सहारे हैं

डुबो दे बीच में चाहे, वो चाहे तो किनारे हैं

मिटाने को हमें अब जा मिला घड़ियाल से माझी

कि साज़िश के निशाने पर ही हमने दिन गुजारे हैं

चमकती चीज ही मिलती रही सौगात में हमको

समझ बैठे ये धोखे से कि किस्मत में सितारे हैं

सियासत जो हमारे घर में ही होने लगी है अब

तभी हर बात में कहने लगे वो  हम तुम्हारे हैं

अदावत घर में ही…

Continue

Added by sanju shabdita on June 18, 2014 at 11:30pm — 34 Comments

ग़ज़ल - हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

१२१२      ११२२      १२१२     ११२  

हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

गुलों की बात छिड़ी और उनको खार लगी

बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर

जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी

कदम कदम पे हिदायत मिली सफर में हमें

कदम कदम पे हमें ज़िंदगी उधार लगी

नहीं थी कद्र कभी मेरी हसरतों की उसे

ये और बात कि अब वो भी बेकरार लगी

मदद का हाथ नहीं एक भी उठा था मगर

अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार…

Continue

Added by sanju shabdita on May 28, 2014 at 7:14pm — 58 Comments

ग़ज़ल - पहले वो कभी आज तक ऐसे मिला नहीं

२२११    २२१२    २२१२    १२

कैसी ये मुलाकात है कोई गिला नहीं

पहले वो कभी आज तक ऐसे मिला नहीं

 

हाँ बात वो कुछ और थी जब साथ हम भी थे

अब सिर्फ इत्तेफ़ाक है, अब सिलसिला नहीं

 

वो…

Continue

Added by sanju shabdita on April 30, 2014 at 6:00pm — 17 Comments

ग़ज़ल -इक वहीँ से मुकद्दर दिला दीजिए

एक पुरानी ग़ज़ल -

२१२२    १२२१   २२१२

बेकली मेरे दिल की मिटा दीजिए

ऐ मेरे चारागर कुछ दवा दीजिए

 

कुछ तो जज्बात मेरे समझिए जरा

कुछ तो मेरी वफ़ा का सिला दीजिए

 

दिल धुआं है मगर…

Continue

Added by sanju shabdita on April 4, 2014 at 8:27pm — 26 Comments

ग़ज़ल -जब चने की झाड़ पर हम भी चढ़े थे

२१२१       २१२२       २१२२   

हम भी अखबारों में जब इक दिन छपे थे

दोसतों की शक्ल पर बारह बजे थे

 

अब सुनो मंजिल तुम्हें हम क्या बताएं

इक तुम्हारे वास्ते क्या-क्या सहे थे…

Continue

Added by sanju shabdita on March 12, 2014 at 12:30pm — 6 Comments

मंगल गीत सुनाओ सखी री

मंगल गीत सुनाओ सखी री…

Continue

Added by sanju shabdita on February 3, 2014 at 8:00pm — 6 Comments

गीत

भ्रष्ट मंत्र है भ्रष्ट तंत्र है

इसे बदलना होगा

अब सत्ता के गलियारों में

हमें पहुंचना होगा

 

वीरों ने हुंकार भरी है

दुश्मन सभी दहल जाओ

भ्रष्टाचारी रिश्वतखोरों…

Continue

Added by sanju shabdita on January 22, 2014 at 7:30pm — 23 Comments

ग़ज़ल - मुझे बेजान सा पुतला बनाना चाहता है

१२२२   १२२२     १२२२    १२२

मुझे बेजान सा पुतला बनाना चाहता है

किसी शोकेस में रखकर सजाना चाहता है

 

मेरे जज्बात सब उसको खिलौने जान पड़ते

जिन्हें वो खुद की चाभी से चलाना चाहता है

 

कुतर डाले मेरे जब हौंसलों के पंख…

Continue

Added by sanju shabdita on January 11, 2014 at 3:00pm — 24 Comments

ग़ज़ल - मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है

1 2 2 2      1 2 2 2       1 2 2 2

मेरे किरदार पे वो शक जताता है

बिना ही बात वो तेवर दिखाता है…

Continue

Added by sanju shabdita on November 30, 2013 at 8:00pm — 28 Comments

गज़ल -साँस लेने में दखल देता है

2 1 2 2  1 1 2 2   2 2

वो मेरी रूह मसल देता है
साँस लेने में दखल देता है

जाने आदत भी लगी क्या उसको
खुद की ही बात बदल देता है

राज़ की बात उसे मत कहना
बाद में राज़ उगल देता है

मैं  उसे रोज़ दुवायें देती
वो मुझे रोज़ अज़ल देता है


उसको मालूम नहीं, गम में भी
वो मुझे रोज़ ग़ज़ल देता है

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

Added by sanju shabdita on October 9, 2013 at 4:59pm — 24 Comments

खयालों में वही पहली नज़र की मस्तियाँ भी थीं





1 2 2 2    1 2 2 2    1 2 2 2    1 2 2 2



हुए रुखसत दिले -नादां  की ही  कुछ सिसकियाँ भी थी

खयालों में वही पहली नज़र की मस्तियाँ भी थीं



लहर तडपी थी हर इक याद पे मचला भी था साहिल

ज़माने की वही रंजिश में डूबी किश्तियाँ  भी थीं



बिखरती वो घड़ी बीती न जाने कितनी मुश्किल से

दबी ही थी जो सीने में क़सक की बिजलियाँ भी थीं



कभी कहते थे वो भी उम्र भर यूँ साथ चलने को

चलीं हैं साथ जो अब तक वही गमगीनियाँ भी थीं



भुलाकर यूँ न जी पायेंगे गुजरे…

Continue

Added by sanju shabdita on October 3, 2013 at 10:26am — 23 Comments

सिर्फ कानों सुना नहीं जाता

2 1 2 2   1 2 1 2   2 2



सिर्फ कानों सुना नहीं जाता

लब से सब कुछ कहा नहीं जाता



दर्द कि इन्तहां हुई यारों

मुझसे अब यूँ सहा नहीं जाता



देश का हाल जो हुआ है अब

चुप तो मुझसे रहा नहीं जाता



चुन के मारो सभी  दरिन्दों को

माफ इनको किया नहीं जाता



वो खता बार- बार करता है

फिर सज़ा क्यूँ दिया नहीं जाता



है भला क्या तेरी परेशानी

बावफ़ा जो हुआ नहीं जाता



कैसे वादा निभाऊ जीने का

तेरे बिन अब…

Continue

Added by sanju shabdita on September 27, 2013 at 9:30am — 18 Comments

हँसते मौसम कभी आते जाते रहे

2 1 2 2   1 2 2 1   2 2 1 2



हँसते मौसम यूँ ही आते जाते रहे

गम के मौसम में हम मुस्कुराते रहे



यादें परछाइयाँ बन गयीं आजकल

हमसफ़र हम उन्हें ही बताते रहे



कल तेरा नाम आया था होंठों पे यूँ

जैसे हम गैर पर हक़ जताते रहे



दिल के ज़ख्मों को वो सिल तो देता मगर

हम ही थे जो उसे आजमाते रहे



तल्ख़ बातें ही अब बन गयीं रहनुमाँ

मीठे किस्से हमें बस रुलाते रहे



चल दिये हैं सफ़र में…

Continue

Added by sanju shabdita on August 24, 2013 at 5:00pm — 25 Comments

कि इश्क सुन तिरे हवाले ताज करते हैं

कि इश्क सुन  तिरे हवाले ताज करते हैं
कि प्यार कल भी था तुझी से आज करते हैं

हुकूमतों का शोख़ रंग यह भी है यारों
कि हम जहाँ नहीं दिलों पे राज करते हैं

बहुत लगाव है हमें वतन की मिटटी से
इसी  पे जान दें इसी पे नाज़ करते हैं

नरम दिली नहीं समझते देश के दुश्मन
चलो कि आज हम गरम मिज़ाज करते 

मिरे वतन के फौज़ियों सलाम है मेरा
 तुझी से मान है तुझी पे नाज़ करते हैं 

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

Added by sanju shabdita on July 3, 2013 at 9:00pm — 24 Comments

शहर की तंग गलियों से

शहर की  तंग  गलियों से निकलना चाहती हूँ,

मैं अपने गाँव के अंचल में  जाना चाहती  हूँ .



वो मौसम आम के ,डालियों से झूलना मेरा,

उन्हीं शाखों पे फिर झूम जाना चाहती हूँ .



बहुत ही याद आती हैं मेरे गांव की सखियाँ,

उन्हीं सखियों के संग खिलखिलाना चाहती हूँ .



बड़ी रफ़्तार वाली है शहर की ज़िन्दगी लेकिन,

मैं फुर्सत के वे लम्हे फिर चुराना चाहती हूँ .



चढ़ती ही जाऊं आस्मां की सीढ़ियाँ लेकिन,

जमीं पे ही अपना घर बसाना चाहती हूँ .…



Continue

Added by sanju shabdita on June 2, 2013 at 11:30am — 13 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
13 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service