For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हम हैं कौन, हमारी वास्तविक पहचान क्या है, क्या हम महज हाड़ मांस से बने शरीर मात्र हैं या इससे भी अलग हमारी कोई पहचान है।

ये प्रश्न सृष्टि के प्रारंभ से ही मानव मन को उद्वेलित करते रहे हैं। इन प्रश्नों का उत्तर पाने हेतु मानव अध्यात्म के धरातल पर कदम रखता है।

हम सिर्फ शरीर मात्र ही नहीं हैं वरन शरीर से पृथक ही हमारा वास्तविक अस्तित्व है। हम सभी में उस परम शक्ति का वास है। 'आत्मा' ही हमारा वास्तविक स्वरुप है। हम सभी में असीमित क्षमताएं हैं।

छान्दोग्य उपनिषद् का महावाक्य है 'तत् त्वम् असि' इसका अर्थ है तुम वो हो। आखिर इसका क्या अर्थ हुआ। इसका अर्थ है हम वही हैं जिसकी हमें तलाश है।

हम सभी को पूर्णता की खोज है। हम सभी शक्ति, शांति, ज्ञान की अभिलाषा रखते हैं। हम जिन वस्तुओं को बहार तलाशते हैं वे हमारे भीतर ही विद्यमान है। हम अपने आप में सम्पूर्ण हैं। हम परम शक्ति, शांति एवं ज्ञान के भण्डार हैं।

आवश्यकता स्वयं के भीतर झांकने की हम। हम अपने मन की गहराइयों में जितना अधिक उतरेंगे उतना ही अधिक इस सत्य के निकट होंगे।

'तत् त्वम् असि' अद्वैत के सिद्धांत पर आधारित है। जिसके अनुसार सम्पूर्ण सृष्टि में केवल एक ब्रह्मं तत्व ही विद्यमान है। ब्रह्मं ही एक मात्र सत्य है जो की सभी चल तथा अचल वस्तुओं में समाया है। क्षुद्र कीट से लेकर ब्रह्मज्ञानी सभी के अंतर में वह आत्मा के रूप में स्थित है। माया उसे अज्ञान के आवरण से ढँक देती है और हमारे सामने विविधताओं का संसार प्रस्तुत हो जाता है। हम स्वयं को उस परम शक्ति से पृथक मान कर उसे बाहरी वस्तुओं में खोजने लगते है। जबकि वह हमारे भीतर स्थित है।

जब यह द्वैत का भाव रहता है हम स्वयं को निर्बल समझते हैं। 'तत् त्वम् असि' इस महावाक्य का स्मरण हमें इस द्वैत भाव से मुक्त करने में सहायक होता है। हम अपने भीतर एक असीम शक्ति का अनुभव करते हैं। यह महावाक्य ओजपूर्ण है। विषम से विषम परिस्तिथि में भी यह हमारे भीतर एक उर्जा का संचार करता है। हमें निराश नहीं होने देता है क्योंकि हम जानते हैं की हमारे भीतर वह परम शक्ति विद्यमान है।

स्वयं को असहाय एवं निर्बल न समझें। इस महावाक्य की शक्ति को अपने भीतर महसूस करें। यह उस आत्मविश्वास को जन्म देगा जिसके बल पर आप चुनौतियों के समक्ष स्वयं चुनौती बन कर खड़े होंगे।

Views: 5767

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 21, 2016 at 8:27pm
बिलकुल सही कहा है आपने कि // आवश्यकता स्वयं के भीतर झांकने की । हम अपने मन की गहराइयों में जितना अधिक उतरेंगे उतना ही अधिक इस सत्य के निकट होंगे।// इस आध्यात्मिक ज्ञान सम्प्रेषित करती रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय आशीष कुमार त्रिवेदी जी।
Comment by ram shiromani pathak on April 23, 2013 at 9:30pm

यथार्थ और सत्य से अवगत करता  आपका   यह आलेख/////////////बहुत सुन्दर./////साधुवाद ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 23, 2013 at 8:17pm

आशीष त्रिवेदी जी आपने आत्मविश्वास का मूल मन्त्र देकर इस आलेख को बहुमूल्य बना दिया है बहुत अच्छा लिखा है बहुत- बहुत बधाई आपको |

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 23, 2013 at 6:03pm

आदरणीय आशीष जी सादर, सर्वप्रथम तो क्षमा चाहूँगा आपने मुझे किसी चर्चा में शामिल करना चाहा था किन्तु मैं व्यस्तता के चलते उसमे शामिल न हो सका.

आपका यह आलेख भी बहुत ही उम्दा है स्व को समझने को प्रेरित करता है. बिलकुल सही है तभी हम कहते भी हैं हम भगवान को मंदिर मंदिर खोजते फिरते हैं किन्तु वह तो हमारे अन्दर ही है. बहुत सुन्दर.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 23, 2013 at 9:44am

आदरणीय त्रिवेदी जी,  सादर प्रणाम!   बहुत सुन्दर।  महामना विवेकानन्दजी  के चित्र ने भावों को और भी गंभीरता दिया है।  सादर बधाई स्वीकार करें।

Comment by Abhinav Arun on April 22, 2013 at 2:04pm

आदरणीय त्रिवेदी जी बहुत संबल देते सकारात्मक विचारों का आलेख पढ़ मन आत्मविश्वास से भर गया हार्दिक साधुवाद । ऐसे मार्गदर्शक विचार समय की मांग हैं ! 

Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 22, 2013 at 10:15am

आपके विचारों का स्वागत है। चाहें भौतिक स्तर पर हो या आध्यात्मिक हम में बहुत समानताएं हैं किन्तु इसे न समझ पाना ही परेशानी का कारण है।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 22, 2013 at 5:58am

आदरणीय आशीष कुमार जी, सादर अभिवादन!

इन विषयों में मैं बहुत बड़ा अज्ञानी हूँ. सिर्फ इतना कह सकता हूँ कि अगर सभी जीवों में एक ही आत्मा जो कि परमातम का ही अंश है तो इतना हाहाकार क्यों मचा हुआ है? एक जीव (आत्मा) दूसरे जीव (आत्मा) को समाप्त करने में क्यों लगी है? माया साफ़ दिखलाई देती है आत्मा को किसने देखा है और जिसने देखा है वे आज कहाँ हैं?... बस मेरी यही प्रतिक्रिया है या समझ लें मेरी अज्ञानता ही है... आपक आभार ..इन गंभीर विषयों को प्रस्तुत करने के लिए!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और उम्दा प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Oct 1
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी।"
Sep 30
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी। आपकी सार गर्भित टिप्पणी मेरे लेखन को उत्साहित करती…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"नमस्कार। अधूरे ख़्वाब को एक अहम कोण से लेते हुए समय-चक्र की विडम्बना पिरोती 'टॉफी से सिगरेट तक…"
Sep 29
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"काल चक्र - लघुकथा -  "आइये रमेश बाबू, आज कैसे हमारी दुकान का रास्ता भूल गये? बचपन में तो…"
Sep 29
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"ख़्वाबों के मुकाम (लघुकथा) : "क्यूॅं री सम्मो, तू झाड़ू लगाने में इतना टाइम क्यों लगा देती है?…"
Sep 29
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"स्वागतम"
Sep 29
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"//5वें शेर — हुक्म भी था और इल्तिजा भी थी — इसमें 2122 के बजाय आपने 21222 कर दिया है या…"
Sep 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल है आपकी। इस हेतु बधाई स्वीकार करे। एक शंका है मेरी —…"
Sep 28
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"धन्यवाद आ. चेतन जी"
Sep 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें गुणीजनों की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी"
Sep 28

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service