२२२२/२२२२/२२२२/२२२
धरती माता ने सारे दुख हलधर को दे डाले हैं
लेकिन उसने हँसते हँसते पेट अनेकों पाले हैं।१।
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उद्योगों को नीर बहुत है करने को उपयोग मगर
इसकी खेती को जल जीवन तो नदियों में नाले हैं।२।
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इसके हर साधन पर कब्जा औरों की मनमानी का
मौसम के हालातों जैसे हालात स्वयम् के ढाले हैं।३।
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खेती करके भूखा रहता हलधर देखो रोज यहाँ
व्यापारी के श्वानों के मुँह मक्खन भरे निवाले हैं।४।
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सरकारों ने पथ पथरीले जो शूलों के साथ दिये
उनके कारण ही तो इसके पावों में नित छाले हैं।५।
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साहूकार कहो व्यापारी शोषक नौकर हैं सरकारी
जिनकी रक्षा के हित में ये कानून बनाये काले हैं।६।
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इसकी पीड़ा कभी न देखी फन्दा चाहे गले पड़ा
सब सरकारों की आखों में इतने भी क्यों जाले हैं।७।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन लिए आभार ।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी। बेहतरीन गज़ल।
खेती करके भूखा रहता हलधर देखो रोज यहाँ
व्यापारी के श्वानों के मुँह मक्खन भरे निवाले हैं।४।
सरकारों ने पथ पथरीले जो शूलों के साथ दिये
उनके कारण ही तो इसके पावों में नित छाले हैं।५।
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आ. भाई सुरेन्द्र जी , सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और मार्दर्शन के लिए आभार । सुधार के बाद पुनः उपस्थित होता हूँ । सादर ...
आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। किसानों को लेकर बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। शेष आद0 समर कबीर साहिब ने कह दिया है। बधाई स्वीकार कीजिये
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
'इसकी खेती को जल जीवन तो नदियों में नाले हैं'
इस मिसरे को स्पष्ट करने की ज़रूरत है ।
'मौसम के हालातों जैसे हालात स्वयम् के ढाले हैं'
इस मिसरे में 'हालातों' ग़लत है, "हालात" शब्द दुरुस्त है, गेयता की भी कमी है ।
'जिनकी रक्षा के हित में ये कानून बनाये काले हैं'
ये मिसरा 'क़ानून' शब्द के कारण लय में नहीं है, देखियेगा ।
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