आज जब सुबह मैं सैर कर रहा था , तब इक आवाज़ मेरे कानों से टकराई ,साहिब जी नमस्कार ।
मैंने खुद को रोका और उस पर नज़र डाली, आज उसने बहुत सुंदर लाल कमीज़,काली ऐनक और सिर पे टोपी पहनी हुई थी ।
धीरे से उस ने अपनी ट्राई साइकिल मेरे पास लाते हुए कहा,"साहिब जी, आज भोले नाथ का जन्मदिन है ,आज कुछ हो जाए,ये मुझे समझ आ गया था ।"क्योंकि वह जब भी मुझे मिलता, उस को उम्मीद होती कि मैं उसे कुछ पैसे दूं।"
"नहीं भाई, आज शिव रात्रि नहीं, भाई आज तो जन्माष्टमी है ।"
"मैंने उस की ट्राईविलर के…
Added by मोहन बेगोवाल on September 1, 2021 at 5:00pm — 2 Comments
नहीं आती हिसाबों में सताती हैं तेरी यादें।
भला ये साथ कैसा जो बताती हैं तेरी यादें।'
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संभालोगे कहां खुद को गिराने आ गये जब वो,
उठाना हाथ रोको जो सुनाती हैं तेरी यादें।
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ऐ इंसाँ अब न इतना भी ज़माने का हो कर रहना,
ज़रा दिल झाँक देखा याद आती हैं तेरी यादें।
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बनाई जिंदगी मेरी कहानी जो सुना देते,
अगर भटके सफ़र में क्यूँ जताती हैं तेरी यादें।
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ये दिल चाहे कहूं कोई ग़ज़ल अब प्यार में तेरे,
मगर अंदर ही फिर क्यूँ ये दबाती…
Added by मोहन बेगोवाल on April 1, 2021 at 2:00pm — No Comments
2122 -1122-1122-22
याद तेरी को ऐसे दिल में लगा रक्खा है ।
ढूंढ पाये तेरा तो जेब पता रक्खा है ।1
रात सो जाये हमें नींद कहाँ आती अब ,
साथ रातों यही रिश्ता जो बना रक्खा है ।2
क्यूँ बता दी कोई अपनी ये कहानी उसको ,
बन रहे फूल जो क्यूँ शूल बता रक्खा है।3
कल मिरा आज बिगाना वो किसी कल होगा
किस लिए यार यूँ ही खुद को जला रक्खा है ।4
था कभी खोजा जिसे ऊँचे पहाड़ों जा कर ,
नेक बंदे…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on November 24, 2020 at 4:30pm — 1 Comment
जब मैं कल रात ड्यूटी से घर आई , तो महाभारत घर में पहले से ही हमेशा की तरह चल रही थी। मुझे समझ नहीं आ रहा कि जब घर वालों ने अपनी मर्जी से मेरी शादी की, मेरी राय तक नहीं पूछी गई l क्यूंकि मेरे जैसी जो पहले ही तीस पार कर चुकी होl उन से भला कौन राय लेता l मैं तो बोझ थी, जिसको निपटाना चाहा l जानलेवा बीमारी ने शादी के कुछ महीनों बाद ही उनको मुझसे जब दूर कर दिया। तब मुझे लगा, अब मुझे उस घर में एक अजनबी की तरह नहीं रहना चाहिए, मैं जल्दी से उनका बोझ कम करना चाहा। उनके जाने के बाद, मैं उस घर में अकेले…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on November 4, 2020 at 9:30pm — 3 Comments
वाहन मुख्य सड़क से उस गांव की सड़क पर आ गया, जिसे सर्वेक्षण के लिए चुना गया था।सारे राज में सरकार द्वारा लोगों को प्रदान की जाने वाली सरकारी सेवाओं के बारे में सर्वेक्षण किया जा रहा था।
सर्वेक्षण फॉर्म में प्रश्न थे, क्या आपके गाँव में इस फॉर्म पर लिखी गई सेवाएँ उपलब्ध हैं? क्या ये सभी सेवाएं लोगों को मिलती हैं या नहीं, यदि नहीं मिलती , तो आपको क्या लगता है कि इन के क्या कारण हो सकते हैं ?
मैं आधिकारिक दौरे पर पहली बार इस गांव में आया था l
गांव की बाहरी सड़क से होते हुए,हमारा…
Added by मोहन बेगोवाल on October 27, 2020 at 5:00pm — 2 Comments
"आंटी जी, अगर उस दिन आप ने शिंदो के सर पर हाथ न रखा होता तो पता नहीं ये कहाँ होती।" रज्जो ने कहा
कीमत तो इसकी पहले ही लग चुकी थी,बस उस दिन तो पैसे देने थे, मालिक को ।
शिंदो को तो इस बारे कुछ पता ही नही था।“भला हो उस के साथ डांस पार्टी में काम करने वाली का”,रज्जो ने बात बढ़ाते हुए कहा।
"उसने बता दिया,वरना पता नहीं कहाँ कहाँ बिक गई चुकी होती, अब तक ।
जब मालिक ने कहा कि कल वह किसी और डांस पार्टी के साथ काम करेगी " तब उसे खनक गई थी,कि इस के आगे़ क्या होने वाला…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on October 10, 2020 at 2:00pm — 2 Comments
शख्स उसको भी तो दीवाना समझ बैठे थे हम l
जो था अच्छा उस को बेचारा समझ बैठे थे हम l
अब न जीतेगा ज़माना भी हमेशा की तरह,
जिस तरह का था उसे वैसा समझ बैठे थे हम l
गीत गाया था बहारों पर सुनाया था कहाँ,
जब ख़िज़ाँ को भी अगर अपना समझ बैठे थे हम l
फूल ये बिखरा तो खुशबू सा शजर बनता मिला,
"इस ज़मीन ओ आसमां को क्या समझ बैठे थे हम l"
ये जहाँ बदला मगर ये जिंदगानी क्यूँ नहीं,
झूठ दुनिया जिस कहे सच्चा समझ बैठे थे हम…
Added by मोहन बेगोवाल on February 25, 2020 at 12:00am — 1 Comment
जब अँधेरा ये मिटाने को सितारा निकला l
चाँद पीछे न रहा बन के हमारा निकला
उसने जब तक न सुनाई थी कहानी हमको
कौन हमको ये बताता वो सहारा निकला
हम तो निकले थे ज़माने को दिखाने उल्फ़त
पर हकीक़त में वही प्यार तुम्हारा निकला
सोच कर बात सुनाई है मगर फिर भी क्यूँ,
राहरौ और ग़लत उनका इशारा निकला
इस यकीं से ही उमीदों को जगाया हम ने
“तुझ से ऐ दिल न मगर काम हमारा निकला”
जिंदगी हमने उधारी न गुज़ारी…
Added by मोहन बेगोवाल on December 29, 2019 at 8:30am — 1 Comment
" वो लोग भी कमाल के होते हैं, जो कमाल की बाते करते हैं ।",उनकी मीटिंग खत्म होने के बाद पास बैठे आदमी ने कहा
"पर इन लोगों ने कभी चुप शांत रहने वाले लोगों के बारे भी सोचा है, वो भी कुछ दायरे संभाल रखें हैं ।" , उसने ख़ुद से पूछा
चुप व शांत रहने वालों की भी उन्हें प्रवाह करनी चाहिए, जब वे लोग आपस में बातें कर रहे होते हैं ।
"पर उनके लिए ये जानना भी ज़रूरी है कि इनकी सोच के दायरे से बड़ा भी कोई किसी का दायरा हो सकता है ।"
वहाँ बैठे आदमी ने फिर पूछ ही लिया, " भाई साहिब, आप जो…
Added by मोहन बेगोवाल on October 3, 2019 at 3:30pm — 2 Comments
विभाग की तरफ से सर्वेक्षण का काम पूरा होने के बाद, जूनियर स्टॉफ सदस्यों को विश्लेषण का काम दिया गया। जो टीम इस काम में लगाई गई, उस में एक पुरुष और महिला को चुना गया। विश्लेषण कर रहे जूनियर स्टॉफ के मन में परिणाम देख कर कुछ सवाल पैदा हो गए थे। जिन के बारे वह वरिष्ठ सदस्यों से पूछना चाहते थे। दो दिन के बाद वरिष्ठ स्टॉफ सदस्यों के सामने जब सर्वेक्षण का परिणाम रखा गया। तब पहला सवाल जो उन्होंने पूछा कि "एक वर्ष से कम उम्र के शिशुओं में पुरुषों की तुलना महिला शिशुओं की संख्या अधिक कैसे हो गई और वह…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on October 1, 2019 at 10:39am — 1 Comment
जहाँ ये कर दिखाना होगाl
हमारे दिल बताना होगा l
करोगे बात जैसी तुम भी ,
सवालों को उठाना होगा l
सुनी जो भीड़ तूने गाती ,
मिरे दिल का फ़साना होगा l
ख़बर जाती कहानी…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on September 30, 2019 at 7:00pm — 2 Comments
है ख़ाक काम किया तूने जिंदगी के लिए।
मुनीर जब किया दीया न रौशनी के लिए।
बताई जो मेरी माँ ने वही तो मैं भी कही,
अ़मल कहाँ हुआ बस बात शायरी के लिए।
फ़िराग कब मिली जब ये है जिंदगी झमेला,
नसीब कब हुआ वो चाँद आशिकी के लिए।
ख्याल ढूँढ रखा जो बता सकूँ मैं तुझे,
रखी ये चीज़ जो है खास आप ही के लिए।
ख़ता कभी न हो ऐसा कहाँ लिखा है बता,
तभी हुई है कहानी ये आदमी के लिए ।
फ़जा तलाश जहाँ में कहीं यहाँ या…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on July 23, 2019 at 12:00pm — 1 Comment
गाड़ी रूकते ही मैं ढाबे की तरफ़़ बढ़ा। कुर्सी पर बैठते हुए छोटू को पास बुलाया।
उस से बात करने लगा, जैसे अक्सर ही मैं ऐसा करता हूँ, ऐसा करना मेरा काम है, किसी को अच्छा या नहीं लगता। ये जानना मेरा काम नहीं ।"
“आप इन से क्या बात करते हो?" दूसरी तरफ बैठे मालिक ने उठ कर बालो से उस पकड़ा अंदर की ओर ले कर जाते हुए कहा
आप को यहाँ काम के लिए रखा है, बातों के लिए नहीं।
"भाई साहिब,कुछ लेना है,आप ने।" उसने मेरी तरफ
देखते हुए कहा
“नहीं,बात करनी है,इस और आप से।"…
Added by मोहन बेगोवाल on June 2, 2019 at 4:30pm — 6 Comments
Added by मोहन बेगोवाल on January 14, 2019 at 4:30pm — 2 Comments
पास रखना है भला जो।
छोड़ देेेेना दिल जला जो।
क्या मनाये वो खुशी को,
खुद मनाने दिल चला जो।
रौशनी हम तब मिली है ,
रात भर दीया जला जो।
आम का बन खास जाना,
कुछ तो अच्छा दिन ढला जो।
रोज़ कहता मुझ बता दे
राज़ उस खोला भला जो।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by मोहन बेगोवाल on January 2, 2019 at 5:00pm — 3 Comments
आठवीं कक्षा तीसरा पीरीयड नैतिक शिक्षा का चल रहा था। जिंदगी अच्छे से कैसे गुजारी जाए के बारे सवाल मैडम से बच्चे पूछ रहे थे। मैडम सोचती है कि ऐसे सवाल तो हम ने भी पूछे थे,मगर हमारी जिंदगी का हिस्सा क्यूँ नहीं बने, वह सोचने लगी।
अब यही सवाल बच्चे उन से पूछ रहे हैं। क्या ऐसे करने से तबदीली आ सकती व्यहार से मैडम ने अपने आप से सवाल पुछाा।
"मगर जब वह जवाब की कौशिश करती है तो वह सोचती है क्यूँ न हम कहने की जगह करने को कहें,मगर ये तो तभी होगा जब हम खुद करेंगे,उस ने अपने सवाल का खुद को…
Added by मोहन बेगोवाल on July 25, 2018 at 2:00pm — 4 Comments
Added by मोहन बेगोवाल on May 12, 2018 at 6:18pm — 5 Comments
शहर के बड़े शिवपुरी में उस कि अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी, इस शिवपुरी में मैं कई बार अंतिम संस्कारों में शामिल हो चूका था| मगर जिस तरह का हजूम आज राजेंद्र मास्टर के साथ आया था, ऐसा मैंने कभी नहीं देखा था| सभी आंखें नम थी और इधर उधर चारों तरफ चीकें सुनाई दे रही थी किसी को उसके इस तरह जाने पे यकीन नहीं हो रहा था|
कोई ये कह रहा था, “क्या ऐसा भी हो सकता है, मगर दुर्घटना कब, कहाँ हो जाए कहाँ पता चलता है इसके बारे कोई कुछ नहीं कह सकता”|
“मगर बचातो जा सकता है, इसके लिए प्रबंध तो…
Added by मोहन बेगोवाल on May 11, 2018 at 3:30pm — 4 Comments
वार्ड के बिस्तर पर वह निढ़ाल पड़ा है, डॉक्टर कह रहे हैं कि ये नीला पड़ गया है, उन्होंने पुलिस को भी बुला लिया है |
“नीला तो पैदा होते समय ही था, अब क्या होगा ?”, किसी पास खड़े ने कहा |
बात निकलती हुई इस पर आ कर रुक गई, सुबह तो नए कपड़े पहन और चौर बाज़ार से खरीदी काली एनक लगा कि गया था
काले चश्में का एक फायदा तो ये था कि आंख का टीर भी नजर नही आता था |
अभी कुछ दिन हुए घर वाली रब को प्यारी हो गई थी |
कुछ…
Added by मोहन बेगोवाल on May 4, 2018 at 10:30pm — 5 Comments
सतवंत पहले से ही मेरे साथ इस के बारे में बात कर चूका था। लेकिन जिस दिन से उसने मुझसे बात की थी, कोई भी पुराना साथी उसके पास नहीं आया और न ही वह किसी को मिलने गया था। मगर उस दिन से घर के लोगों ने उस से बात करना बंद कर दी थी ।
हद तो उस रोज़ हो गई जब इक दिन बाप हाथ में जूती ले कर सतवंत के पीछे दौड़ पड़ा और ये ध्यान भी नहीं किया के लोग क्या कहेंगे, तब सतवंत को लगा था कि इस जिंदगी का क्या फायदा जब बीस को पार कर चुके बच्चे पे माँ बाप को यकीन न रहे , तब कोई और क्या करे ? बड़े भाई से सतवंत ने फोन…
Added by मोहन बेगोवाल on May 2, 2018 at 7:30pm — 7 Comments
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