For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खालीपन का भारीपन

नहीं मालूम, नहीं मालूम मुझको

मेरा यह अनुभव केवल मेरा ही है

या है यह हर किसी का

कहीं कुछ खो देने की पीड़ा से निवर्त होने  का

अनवरत  प्रारम्भिक  प्रयास

अजीब है न मन का कोना-कोना

उर के आँगन में सूनी-सी सन्धया में

आंतरिक अकेलेपन से उकता कर

कुछ झल्ला कर

मेरा बाहर की भीड़ में चले जाना

और कुछ ही पल में उसी भीड़ में

स्वयं को और भी अकेला पा कर

कुछ और ट्कड़े-टुकड़े हो कर

अपने व्यक्तित्व के कंधे का सहारा लिए

अपने उसी अकेले घर वापस लौट आना

कुछ ही पल में उस "बाहर" में

क्या न देखा मैंने अकल्पित कोलाहल में

व्यथित व्याकुल तीव्रतम संघर्ष

आदर्शहीनता का दबाव

हो जैसे व्यक्तित्व के सूखे रीते खेतों में

आत्मज्ञान का असीम भंयकर अभाव 

हर कोई वहाँ हर किसी के आदर्शों का

कलात्मक मूल्यांकन करते न थकता था

हर कोई हाथ में थामे था मानो

आत्मकेन्द्रिए अहंकार की मदिरा का गलास

हिलता-डुलता चलता मानो मधहोश

अपनी ही गढ़ी प्रधानता के भ्रम में

था व्यस्त वह कब से आत्मविभोर

बुन रहा अविरल एक और

आत्मविनाशी मिथ्या कल्पनाजाल

अच्छा लगता है कितना अब ऐसे में

कुछ बेसुध ही सही

उस भीड़ के दायरे से बाहर

घर लौट आना

और बुद्धि और विवेक की

आनन्दमय मधुरिमा में

अपने घर को अब खाली न पाना

बैठे देखना खिड़की की सलाख़ों से

छन कर आती आस की नई धूप की

हर नवीन किरण-रेखा को

आत्मबोध !

किसी और के दुख पर मरहम बन 

इस नव उन्माद में तन्मय होकर जीना

मेरे लिए बहुत, बहुत कार्य बाकी है अभी

यह अवशेष जीवन है विधाता से उपहार

रूकने का नहीं है मेरे पास अवकाश

 ---------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 372

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on September 25, 2020 at 4:34pm

मेरे प्रिय मित्र सुशील जी, आशीष जी, और भाई समर कबीर जी
बहुत ही लम्बे अरसे के बाद आज ओ बी ओ पर आया हूँ। मुझको दुख है कि आपके स्नेह का मैंने उचित आदर न किया, मैं यहाँ पहले न आया। ओ बी ओ, फ़ेस बुक.. सब जगह कम आ पाया हूँ। कुछ मानसिक, कुछ शारीरिक स्थिति ऐसी रही... क्या जाने, कौन जाने इनमें से किस का प्रभाव पहले किस पर पड़ा।आपने इस रचना को इतना मान दिया, आभारी हूँ। आशा है कि आप मुझको विलम्ब के लिए क्षमा कर देंगे।

आपके सुख की प्रार्थना लिए...
सस्नेह और सादर,

विजय निकोर

Comment by आशीष यादव on August 25, 2020 at 11:40pm

सच में यह पढ़कर आत्मबोध होता है। स्वयं के अंदर झांकना फिर बाहर देखना, उकता जाना, फिर आनंद पाना बहुत कुछ है। बधाई स्वीकार कीजिए।

Comment by Samar kabeer on August 25, 2020 at 3:38pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब, हमेशा की तरह एक बहुत उम्द: रचना हुई है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sushil Sarna on August 24, 2020 at 8:49pm

आत्मबोध !

किसी और के दुख पर मरहम बन

इस नव उन्माद में तन्मय होकर जीना

मेरे लिए बहुत, बहुत कार्य बाकी है अभी

यह अवशेष जीवन है विधाता से उपहार

रूकने का नहीं है मेरे पास अवकाश

वाह आदरणीय विजय निकोर जी वाह जब भी आपकी रचनाओं से साक्षात्कार होता है अन्तस् में एक गहनता का अनुभव होता है। इस अप्रतिम सृजन के लिए दिल से बधाई और सादर नमन।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service