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उम्मीद की चमक- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल )

२२१/ २१२१/२२२/१२१२


दिखती भला है अब किधर उम्मीद की चमक
खोने  लगी  है  खुद  सहर  उम्मीद की चमक।१।
**
माझी को धोखा दे  गयी पतवार हर कोई
दरिया में जैसे हो लहर उम्मीद की चमक।२।
**
बाँटेगा सबको आ के सच थोड़ी मिले भले
लेकर चला है वो  अगर उम्मीद की चमक।३।
**
कहते  उसे  किसान  हैं  निर्धन  बहुत  भले
झुकने न देगी उसका सर उम्मीद की चमक।४।
**
लूटा गया  है  हर  तरह  उसको  जहान में
आँखों में उसके है मगर उम्मीद की चमक।५।
**
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 16, 2020 at 11:15am

आ. अमिता जी, सादर आभार ।

Comment by amita tiwari on May 16, 2020 at 12:03am

कहते  उसे  किसान  हैं  निर्धन  बहुत  भले
झुकने न देगी उसका सर उम्मीद की चमक

 बहुत सही ,सच्ची  सुंदर रचना मुसाफिर जी  बधाई 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 15, 2020 at 12:52pm

आ. भाई सुरेंन्द्र जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार ।

Comment by नाथ सोनांचली on May 15, 2020 at 9:48am

आद0 लक्ष्मण जी सादर अभिवादन। अच्छी ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार कीजिये।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 14, 2020 at 10:05am

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार ।

Comment by TEJ VEER SINGH on May 14, 2020 at 9:35am

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी। बेहतरीन गज़ल।

लूटा गया  है  हर  तरह  उसको  जहान में
आँखों में उसके है मगर उम्मीद की चमक।५।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 13, 2020 at 6:47pm

आ. भाई समर कबीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार ।

Comment by Samar kabeer on May 13, 2020 at 3:31pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

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