For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत-3 (लक्ष्मण धामी "मुसाफिर")

गीत

*****

उजाला  कर  दिया उसने
चलें उस ओर हम-तुम भी।।
*
तमस के गाँव में रह कर
सदी  बीती  हमारी  भी।
अभी तक ढो रहे हैं बस
वही  थोपी  उधारी  भी।।
*
नहीं  प्रयास  कर  पाये
कभी इससे निकलने का।
बढ़ाया हाथ उस ने जब
लगायें जोर हम तुम भी।।
**
न जाने कौन सी ग्लानी
मिटा उत्साह देती नित।
नहीं  साहस  जुटा पाता
सँभलने का हमारा चित।।
*
सफलता  है  नहीं आयी
भला क्यों पथ हमारे ही।
तनिक मष्तिष्क से सोचें
नहीं हैं ढोर हम- तुम भी।।
**
हमारे हित सदा बोला
हमारे हित लड़ा है वो।
भँवर, मझधार तूफाँ में
हमारे हित खड़ा है वो।।
**
अकेला क्यों  लड़े तम से
चलो अब साथ दें उसका।
मिला स्वर साथ उसके यूँ
मचाएँ शोर  हम - तुम भी।।
**
तरसते कल तलक आये
उजाला  जीत  बन देखो।
हमारे  पथ  चला  है  जो
उजाला रीत बनकर अब।।

**
नहीं  स्वीकार  तम  है  तो
विवश क्यों जी रहे इसको।
जलाया  दीप  है  उस ने
रचें नव भोर हम-तुम भी।।
***


मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

Views: 725

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 9, 2022 at 1:07pm

आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार।
गीत को नया कलेवर दे आपने इसे समृद्ध कर दिया। निश्चित तौर पर गीत की बारीकियों को सीखने में समय लगेगा। विश्वास है आपके मार्गदर्शन में धीरे धीरे गीत लेखन परिपक्व हो जायेगा। आपकी अनुकम्पा बनी रहे यही आकांक्षा है। सादर
प्रत्युत्तर में विलम्ब हुआ । इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 6, 2022 at 10:20pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  एकाकी प्रयास-रत दीप को लेकर आपने जो रचना-कर्म किया है वह वस्तुतः श्लाघनीय है. 

निवेदन है, इस रचना को कृपया अधोलिखित कलेवर में देखें.

यदि उचित प्रतीत हो तो सूचित कीजिएगा.   

उजाला कर दिया उसने

बढ़ें उस ओर हम-तुम भी।।  
*
तमस के गाँव में रह कर
सदी  बीती  हमारी  है ।
अभी तक ढो रहे हैं जो
हमारे सिर उधारी है।।
*
नहीं मन को जगा पाये
कभी इससे निकलने का।

लगन ऐसी दिखी है तो 

लगाएँ जोर हम तुम भी।।
**

न जाने कौन सी उलझन 

निरुत्साही बना देती 

नहीं साहस जुटा पाते

लसरने को मना लेती

*
सफलता क्यों नहीं आयी
अभी तक पथ हमारे ही ?
तनिक सोचें, विचारें मिल
नहीं हैं ढोर हम-तुम भी।।
**
हमारे हित जला करता 

हमारे हित लड़ा है वो।
भँवर, मझधार तूफाँ में
हमारे हित अड़ा है वो।।
**
लड़े तम से अकेला वो 
यही अकसर भला क्यों हो

भरी मुट्ठी लिये किरनें 

उगाएँ भोर हम-तुम भी।।
**
तरसते थे, तरसते हैं 

मगर नभ थाम तो देखें 

गया दिन जो बिसुरता-सा 

किलकती शाम तो देखें ॥ 

**
नहीं स्वीकार है तम जो 
भला क्यों झेलते हैं हम 

उजाला चाहिए, खुल कर..  

मचाएँ शोर हम-तुम भी ॥ 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2022 at 9:02am

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2022 at 9:01am

आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। 

Comment by Samar kabeer on November 5, 2022 at 6:30pm

जनाब  लक्ष्मण धामी जी आदाब , अच्छा  गीत  हुआ है, बधाई स्वीकार  करें I 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2022 at 6:59pm

बहुत सुन्दर और भावप्रण गीत के लिए बधाई आदरणीय धामी जी...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 28, 2022 at 8:28am

आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति, स्नेह, उत्साहवर्धन और सुझाव के लिए आभार।। आप सभी के सहयोग से गीत लेखन में सुधार का प्रयास जारी है। निम्न बदलाव किए हैं मार्गदर्शन कीजिए।
/नहीं  कोशिश  हुई हमसे
कभी इससे निकलने की।
*
/तनिक सोचें गहनता से

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 27, 2022 at 5:14pm

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, सुंदर गीत रचा है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. फिर भी //नहीं प्रयास कर पाये
कभी इससे निकलने का।//... इस पंक्ति में प्रवाह बाधित है. मस्तिष्क. सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 26, 2022 at 6:30am

आ. भाई महेन्द्र जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति उत्साहवर्धन व सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद

//नहीं साहस जुटा पाता
सँभलने का हमारा चित।।// को इस प्रकार देखें

नहीं साहस सँभलने का
जुटाता चित्त संकल्पित।।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 26, 2022 at 6:14am

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गीत की प्रशंसा के लिए आभार।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
42 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
51 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
59 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
14 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
yesterday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
yesterday
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service