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स्वप्निल सपने..



कुछ सशब्द,कुछ नि:शब्द सपने,



कुछ व्यक्त ,कुछ अव्यक्त सपने..



कुछ मौन कुछ कोलाहल पूर्ण..



कुछ सुंदर ,कुछ कुरूप सपने..





कुछ मधुर,कुछ कड़वे सपने..



कुछ तृप्त,कुछ अतृप्त सपने..



कुछ सजीव कुछ प्रस्तर खंड..



कुछ माने ,कुछ रूठे सपने..





कुछ शहनाई,कुछ बलि वेदी..



कुछ दुल्हन कुछ अरथी सपने..



कुछ ग्यान पूर्ण,कुछ अग्यानि..



क्च मानव कुछ… Continue

Added by Lata R.Ojha on December 6, 2010 at 12:30pm — 2 Comments

ले चल अपने देस पिया जी ..





ले चल अपने देस पिया जी , ये घर अब ना भाए..



जी चाहे,तेरी सुगंध ऐसे मुझ में बस जाए..



जो भी देखे मुझको ,मुझमें तेरी छाया पाए..





रोम रोम मेरा हर पल बस तेरी महिमा गाए..



मेरे होठों पे जब आएँ शब्द तेरे ही आएँ..





इस भौतिक जीवन में तो अब ना ये मनवा रम पाए..



दुनियादारी सोचने बैठूं, तुझमें सुध खो जाए..





ले चल अपने देस पिया जी ,ये घर अब ना भाए..



हर… Continue

Added by Lata R.Ojha on December 6, 2010 at 12:00pm — 3 Comments

तू है यहीं...



यूँ तो तू चला गया,

किंतु, जाकर भी है यहाँ !

ख्वाबों में,

फर्श पर पड़े कदमों के निशानों में,

है तेरी पायल की छमछम अब भी I

तेरी कोयल सी आवाज़,

आरती के स्वरों में गूँजती है अब भी I

तू नहीं है अब,

किंतु,

तेरी परछाई

चादर की सलवटों में है वहीं I

तू चला गया,

क्यूँ ?

ये राज़ बस तुझे ही पता I

फिर भी तेरे प्यार की कुछ यादें हैं,

जो छूट गईं

यहीं घर पर… Continue

Added by Veerendra Jain on December 6, 2010 at 11:26am — 15 Comments

अश्क

अनकहा बयाँ हैं अश्क तुम्हारे

अनसुनी दास्ताँ हैं अश्क तुम्हारे



आँखों से दिखती है दुनिया बाहर की

अन्दर का जहाँ हैं अश्क तुम्हारे



दर्द हो दिल में तो ही होता दीदार इनका

ऐसा कुछ कहते कहाँ हैं अश्क तुम्हारे



मोका है आज तो जान लो तुम इन्हें

वरना हमेशा रहते कहाँ हैं अश्क तुम्हारे



शायद खुशनुमा हैं मिजाज़ इनका

साथ रहकर दर्द सहते कहाँ हैं अश्क तुम्हारे



ये ठहरी जमीं नहीं जो जीत लोगे तुम इन्हें

बहता आसमां हैं अश्क… Continue

Added by Bhasker Agrawal on December 5, 2010 at 4:06pm — No Comments

कलम,विचार और भाव

मेरी कलम,विचार और भाव साथ काम नहीं करते।
कभी कुछ कलम साथ देती है तो विचारों की परछाईं भर ही ज़ाहिर हो पाती है ।
कभी देखने में आया के हमने बात को इतना कम लिखा, के बात का मतलब ही बदल गया ।
कभी भावनाओं को शब्दों में पुरोया तो भावनाएं नाजायज़ लगने लगीं ।
फिर भी हम लिखते गए उस उम्मीद की खातिर के कभी किसी और को नहीं तो खुद को ही कुछ बता सकें, कुछ समझा सकें ।

Added by Bhasker Agrawal on December 5, 2010 at 8:06am — No Comments

Ghazal

जमाने से चलती हवाओं का रूख मोड़ देंगे,

बदबू साफ़ कर उसमें सिर्फ सुगंध छोड़ देंगे.



मौसम भी अगर दगा दे हमसे रूठ जाता है,

बादल से हम अपने बाग़ को सीधे जोड़ देंगे.



कल तक जो मेरे राहों में कांटें बिछाती थी,

पलकें बिछाकर उसका गुरूर हम तोड़ देंगे.



औरों की मुस्कराहट ही हमारी ईमान होगी.

तुम्हें खुश रखने को, अपना जख्म छोड़ देंगे.



जमाना साथ देने के बजाय टांग खिंचेगी,

प्रेम का रस पिलाने को पत्थर निचोड़ देंगे.



दौड़ रही है जितनी गाड़ी… Continue

Added by Ghulam Kundanam on December 5, 2010 at 1:18am — 1 Comment

तुम ही तो हो

धूप सी खिलती हो तुम
चांदनी तुम ही तो हो !
सप्त तारों कि वो झंकृत
रागिनी तुम ही तो हो !!

नीड़ है तेरा ह्रदय
मैं हूँ पाखी प्रेम का !
धड़कनों में कौंधती सी
दामिनी तुम ही तो हो !!

तुम तो सरिता प्रेम कि हो
प्यार का सागर हो तुम !
आ वाष्पित मन को सघन कर
शालिनी तुम ही तो हो !!

इस ह्रदय की वाटिका में
क्षुब्द मन है शुष्क प्राण !
प्रेम के पौधे को सींचो
maalini तुम ही तो हो !!

Added by RAJESH SHANDILYA on December 5, 2010 at 12:58am — 1 Comment

लघु कथाएँ

पत्थर



वह रोज उसे ठोकर मारता |

आते जाते |

मगर वह टस से मस नहीं हुआ |

एक दिन जोर की ठोकर मारते ही उसके पांव लहू लुहान हो गए |

अब वह उस पत्थर की पूजा करता है |

हाँथ जोड़कर उसी तरह रोज आते जाते |



पानी



बाप ने कहा "बेटा पानी अब सर से ऊपर हो रहा है "

"आप वसीयत कर दे "

"तुम्हारी बहन को भी तो हिस्सा देना होगा "

"शादी में जितना दिया था उसका हिसाब… Continue

Added by Abhinav Arun on December 4, 2010 at 4:55pm — 6 Comments

तरक्की और जनमत की ताकत

लोकतंत्र में वोट की ताकत महत्वपूर्ण मानी जाती है और जब इस ताकत का सही दिशा में इस्तेमाल होता है तो इससे एक ऐसा जनमत तैयार होता है, जिससे नए राजनीतिक हालात अक्सर देखने को मिलते हैं। हाल ही में बिहार के 15 वीं विधानसभा के चुनाव में जो नतीजे आए हैं, वह कुछ ऐसा ही कहते हैं। देश में सबसे पिछड़े माने जाने वाले राज्य बिहार में तरक्की का मुद्दा पूरी तरह हावी रहा और प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार का जादू ऐसा चला, जिसके आगे राजनीतिक गलियारे के बड़े से बड़े धुरंधर टिक नहीं सके और वे चारों खाने मात खा गए।… Continue

Added by rajkumar sahu on December 4, 2010 at 4:21pm — No Comments

कविता _ ठूंठ

कविता :- अखिल विश्व और हम



ठूंठ वृक्ष

सूखे सब पत्ते

कोटर भी पक्षी विहीन

हम कितने एकल |



छोड़ गए सब साथ

हाथ और राह भी छूटी

मील के पत्थर भी उदास

और बेकल बेकल |



संधि काल या महाकाल

क्यों स्याह घनेरा

तुम नित प्यासे

आस भरे आते जाते पल |



दूब पांव की

कोमलता की याद दिलाती

पीछे छूटे गांव छांव सब झुरमुट वाले

हम फिर चलते जैसे चलते आज और कल… Continue

Added by Abhinav Arun on December 4, 2010 at 4:05pm — 2 Comments

रिश्ता-ए-ग़म

रिश्ता-ए-गम

ग़म तो ग़म हैं ग़म का क्या ग़म आते जाते हैं

किसी को देते तन्हाई किसी को रुलाते हैं

'दीपक कुल्लुवी' पत्थर दिल है लोग यह कहते हैं

उसको तो यह ग़म भी अक्सर रास आ जाते हैं

किसने देखा उसको रोते किसने झाँका दिल में

किसने पूछा क्यों कर यह ग़म तुझको भाते हैं

कुछ तो बात होगी इस ग़म में कुछ तो होगा ज़रूर

बेवफा न होते यह साथ साथ ही आते हैं

गम से रिश्ता रखो यारो ताउम्र देंगे साथ

यह आखरी लम्हात तक रिश्ता… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 4, 2010 at 10:00am — No Comments

यादों के पत्ते यूँ बिखरे परे है जमीं पर



यादों के पत्ते यूँ बिखरे परे है जमीं पर ,

अब कोई खरखराहट भी नही है इनमे,

शायद ओस की बूंदों ने उनकी आँखों को

कुछ नम कर दिया हो जैसे ...

बस खामोश से यूँ चुपचाप परे है ,

यादों के ये पत्ते ...



जहन मे जरुर तैरती होगी बीती वो हरयाली,

हवायें जब छु जाती होगी सिहरन भरी ..

पर आज भी है वो इर्द गिर्द उन पेड़ों के ही ,

जिनसे कभी जुरा था यादों का बंधन ..



सन्नाटे मे उनकी ख़ामोशी कह रही हो जैसे,

अब लगाव नही , बस बिखराव है हर पल… Continue

Added by Sujit Kumar Lucky on December 4, 2010 at 1:54am — No Comments

ज़िन्दगी बंदगी वरन क्या ज़िन्दगी - ग़ज़ल

ग़ज़ल

अज़ीज़ बेलगामी



नै फ़क़त खुशनुमा मश्घला ज़िन्दगी

ज़िन्दगी अज्म है हौसला ज़िन्दगी



हालत - ए -ज़हन का आईना ज़िन्दगी

निय्यत - ए -क़ल्ब का तजज़िया ज़िन्दगी



ज़िन्दगी , बंदगी .. वरन क्या ज़िन्दगी

बंदगी ही का एक सिलसिला ज़िन्दगी



ये कभी जोक - ए -सजदा की तकमील है

और कभी यूरिश - ए -कर्बला ज़िन्दगी



खौफ ने जोहर - ए -ज़िन्दगी ले लिया

अज्म ने तो मुझे की अता ज़िन्दगी



तेरी मज्बूरियौं का मुझे इल्म… Continue

Added by Azeez Belgaumi on December 3, 2010 at 12:30pm — No Comments

यह प्यार का समंदर

यह प्यार का समंदर क्यों आंखो मे समाया है
एक ठंडी सी तपिस में क्यों दिल को डुबाया है
मत देखो इस तरह...कि एक तूफ़ान सा उठता है
मन पल में सहमता है क्षण भर में मचलता है
तुम आओ तो सही हम दीवानों की महफ़िल में
इस अंजुमन की रौ में कोई पतंगा जलता है

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on December 3, 2010 at 10:19am — 4 Comments

पहली बार एक ग़ज़ल के साथ हाज़िर हो रहा हूँ : अज़ीज़ बेलगामी

ग़ज़ल

("मोहब्बत" की नज्र)



अज़ीज़ बेलगामी, बैंगलोर





ज़मीं बंजर है, फिर भी बीज बोलो, क्या तमाशा है

तराजू पर, खिरद की, दिल को तोलो, क्या तमाशा है



ज़माने से छुपा रख्खा है हम ने सारे ज़खमौं को

सितम के दाग़-ए-दामां तुम भी धोलो, क्या तमाशा है



अभी चश्मे करम की आरज़ू है सैर-चश्मों को

हो मुमकिन तो हवस के दाग़ धो लो, क्या तमाशा है



नहीं कशकोल बरदारी तुम्हारी, वजह–ए-रुसवाई

मोहब्बत मांगनी है मुह तो खोलो, क्या तमाशा… Continue

Added by Azeez Belgaumi on December 2, 2010 at 11:30am — 8 Comments

ग़ज़ल:-घर से बाहर निकल

ग़ज़ल

घर से बाहर निकल

चाँदनी में टहल |



खौफ गिरने का है

थोडा रुक रुक कर चल |



याद बचपन को कर

और फिर तू मचल |



मौत सा सच नहीं

ज़िंदगी पल दो पल |



फूल था बीज बन

पंखुरी मत बदल |



थोड़ी मोहलत मिले

फैसला जाये टल |



मैं गुनहगार हूँ

सोच मत मुझको छल |



ये घड़ा विष भरा

पी ले शिव बन गरल |



कोई झंडा उठा

कोई कर दे पहल… Continue

Added by Abhinav Arun on December 2, 2010 at 10:14am — 1 Comment

ग़ज़ल : -तुम न मेरे हुए

ग़ज़ल



तुम न मेरे हुए

घुप अँधेरे हुए |



सोन मछली हो तुम

हम मछेरे हुए |



शाम बेमन सी थी

लो सबेरे हुए |



तितली नादान थी

फिर भी फेरे हुए |



निकली बंजर ज़मी

क्यों बसेरे हुए |



याद सावन हुई

हम घनेरे हुए |



दर्द है या धुंआ

मुझको घेरे हुए |



बीन तुमने सूनी

हम सपेरे हुए |



इक बदन चाँदनी

सौ चितेरे हुए… Continue

Added by Abhinav Arun on December 2, 2010 at 9:56am — 3 Comments

ग़ज़ल:-हूरों की तस्वीरें

ग़ज़ल

होटल वाली खीरें अच्छी लगती हैं

हूरों की तस्वीरें अच्छी लगती हैं |



अपने घर के गमले सारे सूखे हैं

औरों की जागीरें अच्छी लगती हैं|



शहरों में है लिपे पुते चेहरों की भींड

गावों वाली हीरें अच्छी लगती हैं |



मुझे बनावट वाले ढेरों रिश्तों से

यादों की जंजीरें अच्छी लगती हैं |



अपनी खुशियों में अब कम खुश होते लोग

पड़ोसियों की पीरें अच्छी लगती हैं… Continue

Added by Abhinav Arun on November 30, 2010 at 3:00pm — 4 Comments

काहे

नसबंदी कैम्प में आये

एक आगन्तुक को देख

डाक्टर साहब झल्लाए

उत्सुकता से चिल्लाये

और उससे पूछने लगे

भैया जहाँ तक मुझे याद है

तुम तो पिछले वर्ष भी कैम्प में आये थे

और हमसे ही अपना नसबंदी आपरेशन करवाए थे

आगन्तुक बोला डाक्टर साहब आपने ठीक फ़रमाया

मैं तो पिछले वर्ष भी आया था

और आपसे ही आपरेशन करवाया था

बदले में प्रोत्साहन राशी १५० रुपये भी पाया था

लेकिन इस बार आप प्रोत्साहन राशि काहे बढ़ाये

१५०… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 30, 2010 at 10:30am — No Comments

आवाम, पुलिस और सरकार

छत्तीसगढ़ ने जिस तरह विकास के दस बरस का सफर तय कर देश में एक अग्रणी राज्य के रूप में खुद को स्थापित किया है और सरकार, विकास को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही है, मगर यह भी चिंता का विषय है कि छत्तीसगढ़िया, सबसे बढ़िया कहे जाने वाले इस प्रदेश में अपराध की गतिविधियों मंे लगातार इजाफा होता जा रहा है। राजधानी रायपुर से लेकर राज्य के बड़े शहरों तथा गांवों में निरंतर जिस तरह से बच्चों समेत लोगों के अपहरण हो रहे हैं तथा सैकड़ों लोग एकाएक लापता हो रहे हैं और पुलिस उनकी खोजबीन करने में नाकामयाब हो रही है, ऐसे में… Continue

Added by rajkumar sahu on November 29, 2010 at 2:14pm — No Comments

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