लाख चाहकर भी मुझे न तुम बुझाओगे
Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 16, 2011 at 12:30pm — 12 Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 16, 2011 at 11:00am — 2 Comments
माहो-अख्तर के बिना आसमां हूँ मैं ,
.यादों की बिखरी हुई कहकशां हूँ मैं |
अपने खूं से लिखी हुई दास्ताँ हूँ मैं |
पढने वालों के लिए इम्तहाँ हूँ मैं |
.
चाहे जिसको लूटना ये ज़हाँ सारा…
ContinueAdded by Nazeel on December 15, 2011 at 12:00pm — 4 Comments
झील हर इक कतरे को झूठ बताएगी
मछली निज आँसू किसको दिखलाएगी
लब पर कुछ झूठी मुस्काने चिपकाकर
कब तक वो अपने दिल को बहलाएगी
उसकी किस्मत में जीवन भर रातें है
वो भी आखिर कितने ख्वाब सजाएगी
हम दोनों को ही कोशिश करनी होगी
किस्मत हमको कभी नही मिलवाएगी
................................,... अरुन श्री !
Added by Arun Sri on December 14, 2011 at 11:30am — 4 Comments
Added by Abhinav Arun on December 14, 2011 at 10:30am — 18 Comments
एक सुबह ना जाने क्या हुआ
ऐसा लगा की सुबह तो रोज़ होती है ,
पर आज अलग कुछ बात है
इन हवाओं में घुली है शरारत,
जैसे इन्होने छोड़ी है शराफ़त
ज़रूर कोई छुपा हुआ राज़ है
निकला जो घर से , तो देखा फूलों को मुस्कुराते हुए…
Added by Rohit Dubey "योद्धा " on December 13, 2011 at 9:30pm — 3 Comments
Added by Vikram Pratap on December 13, 2011 at 11:00am — 2 Comments
Added by satish mapatpuri on December 11, 2011 at 11:05pm — 1 Comment
Added by Abhinav Arun on December 11, 2011 at 2:59pm — 6 Comments
ना कहीं उजला नज़ारा.
Added by AVINASH S BAGDE on December 11, 2011 at 1:00pm — 2 Comments
Added by shambhu nath on December 10, 2011 at 3:16pm — 1 Comment
आस ही सांस है
और सांस ही जीवन है
और जीवन ही संसार है
यानि सांस ही आस है
सांस ही आस है
या आस ही सांस है?
या फिर आस ही सांस है
या फिर सांस ही आस है
गर सांस ही आस है
तो आस ही जीवन है
और आस ही संसार है
Added by sitaram singh on December 10, 2011 at 3:12pm — No Comments
देखा है मेने अपने पिता को, अपने कंधो पर मेरी स्कुल बैग टांगे,
जीवन के बोझ को बड़ी मुस्कराहट के साथ निभाते, ।
हमेशा जिसने अपने दर्द से दुनिया के दर्द को बड़ा माना
लड़ता रहा वो मजबूरो और असाहायों के लिए
सारे ग्रहों की परिभाषाओ को निष्फल होते देखा है
मेने अपने पिता के आगे,
आज मुझ को घमंड है की तुम हो मेरे पिता
हां जिसने मुझको दिया है अपने खून का एक कण
जो आज एक वजूद बनकर खड़ा है इसी दुनिया के लिए कुछ करने को
हां मुझको गर्व है की तुम मेरे पिता…
Added by LOON KARAN CHHAJER on December 9, 2011 at 5:30pm — No Comments
हिंदी रंगमंच की समस्या बहुत है इस पर शोध की ज़रूरत है .मोटे तौर पर देखा जाये तो यह भी कहा जा सकता है की रंगमंच के लिए जो माहोल बनाना चाहिए था वो बना नहीं जो स्तिथि है वोह भी भयकर है .एक तो लोगो की दिलचस्पी फिल्मो से होते हुए टीवी से चिपक गई है . जो लोग इस विधा से जुड़े है उन्हें कोई मदद नहीं …
ContinueAdded by sitaram singh on December 8, 2011 at 1:12pm — No Comments
जब कभी भी आजमाया जायेगा
आदमी औकात पर आ जायेगा
शख्सियत औ कद बड़ा जिस का मिला
वो यकीनन बुत बनाया जायेगा
क़ैद कर मेरी सहर की रोशनी
भोर का तारा दिखाया जायेगा
जिद पे गर बच्चा कोई आ ही गया
चाँद थाली में सजाया जायेगा
गर वो वादों पर यकीं करने लगे
उस से रोज़ी पर न जाया जायेगा
फ़र्ज़दारी का सिला जो दे चुके
कत्लगाहों में बसाया जायेगा
ये जहां तो इक मुसलसल मांग…
ContinueAdded by ASHVANI KUMAR SHARMA on December 8, 2011 at 11:00am — 7 Comments
कभी कभी नाट्य रचनाओ की कमी का उलेख भी किया जाता है. हिंदी में नाट्य लेखन की कमी तो है ,पर इतना नहीं की इससे मंचन पर बहुत असर हो रहा हो .इस दिशा में दिल्ली का साहित्य कला परिषद् ने कुछ अच्छे कदम उठाये है और हर साल कुछ अच्छे नाटक लिखे गए है और प्रकाश में आये भी है कुछ कहानिओ का नाट्य रूपांतर भी हुए है और उसका अच्छा मंचन भी हुआ है इसमें उदय…
Continue
Added by sitaram singh on December 7, 2011 at 1:29pm — No Comments
बाबासाहेब डा.अम्बेडकर ( जन्म दिवस 14 अप्रैल- निवार्ण दिवस 6 दिसंबर)
प्रभात कुमार रॉय
बाबासाहेब डा.अम्बेडकर एक अत्यंत प्रखर देशभक्त और राष्ट्रवादी थे। भारत की राजनीतिक एकता को मूर्तरुप देने का जैसा शानदार कार्य सरदार पटेल ने अंजाम दिया, उसी कोटि का अप्रतिम कार्य राष्ट्र की सामाजिक एकता के लिए डा.अम्बेडकर द्वारा किया गया। अपनी चेतना के उदय से अपनी जिंदगी के…
ContinueAdded by prabhat kumar roy on December 7, 2011 at 12:02pm — 2 Comments
क्यों मिली है कुछ पलों को बागवानी फूल की
उम्र भर कहते रहेंगे हम कहानी फूल की
वो मेरे सीने से लगकर हाले-दिल कहते रहे
फूल सी बातें सुनी हमने जुबानी फूल की
मनचले भवरे चमन के पास मंडराने लगे
चुभ रही है आँख में सबके जवानी फूल की
खौफ-ए-गुलचीन-ओ-खिज़ा के साए में हसती रहे
मैं समझ पाया न तबियत की रवानी फूल की
आज चाँदी की चमक से बागवान अँधा हुआ
पाँव के नीचे कटेगी अब जवानी फूल की
उजड़े हुए बाग-ए-मुहब्बत को हैं…
Added by Arun Sri on December 7, 2011 at 10:32am — No Comments
त्यागपत्र (कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी
अंक ९ पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे
------------- अंक - 10 (अंतिम अंक) --------------
सुबह के तीन बजे रंजन की स्थिति में कुछ -कुछ सुधार होने लगा. ईलाज में लगे डॉक्टरों को थोड़ी सी राहत मिली. बेटे की हालत में सुधार देखकर प्रबल बाबू ने आँखें बंद कर उस ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया,…
ContinueAdded by satish mapatpuri on December 6, 2011 at 8:30pm — 2 Comments
संसद की सब कुर्सियां, पूछ रही ये बात.
Added by AVINASH S BAGDE on December 6, 2011 at 8:00pm — 1 Comment
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