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निभा पाओगे 

लाख चाहकर भी मुझे न तुम बुझाओगे

तुम अंधेरों में रहोगे जो न जलाओगे
मेरी तकदीर में लिखा था जलो सबके लिए
दर्द के किस्से किसी को न तुम सुनाओगे
अपनी खातिर हवाओं से बचाओगे मुझे
बुझ न जाऊं  कहीं अश्क न बहाओगे  
मेरे बुझने का अहसास भी डराता है तुम्हें 
आँसूं तो आएँगे कहीं तन्हा ही बहाओगे
जल जल के कुंदन सी बन गई है मुहब्बत मेरी 
ज़िन्दगी बीत गई भुलाई न गई यादें तेरी 
आज भी जलते हैं रखते हैं ताज़ा हरदम
क्या मेरी  तरह आप भी निभा पाओगे 
दीपक शर्मा कुल्लुवी
9350078399
१६/१२/११.


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Comment by Deepak Sharma Kuluvi on January 6, 2012 at 11:11am

SHUKRIYA SAINI JI

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on January 6, 2012 at 11:10am
यह मेरी खुशनसीबी है नीलम  जी की आप जैसे पारखी ने भी मुझ जैसे अज्ञानी की रचना पसंद की.......... धन्यवाद 
कुल्लुवी  
Comment by Neelam Upadhyaya on January 6, 2012 at 10:16am

दीपक जी, बहुत ही सुंदर कविता है.

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on December 31, 2011 at 12:39pm

DHANYABAD SHASHIPRAKASH JI

Comment by shashiprakash saini on December 31, 2011 at 12:33pm

बहोत बढ़िया कविता है दीपक जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 24, 2011 at 10:40am

इस आह्वान पर आपको साधुवाद .. .

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on December 22, 2011 at 9:55am

प्रभाकर साहब सब तुहाडे जए मित्र बेली मेरे प्रेरणा स्त्रोत ने...

कुल्लुवी 

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 21, 2011 at 8:10pm

वाह वाह वाह दीपक भरा जी, बहुत सुन्दर लिखा है, बधाई स्वीकार करें. 

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on December 21, 2011 at 10:13am

कविता जी शुक्रिया ......मेरा लिख बहुत कम लोगों को पसंद आता है

कुल्लुवी 
Comment by Kavita Verma on December 20, 2011 at 9:15pm
मेरे बुझने का अहसास भी डराता है तुम्हें 
आँसूं तो आएँगे कहीं तन्हा ही बहाओगे bahut sundar...

कृपया ध्यान दे...

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