पढाया गया था-
‘मैन इज ए सोशल एनिमल’
हमने भी रट लिया
औरों की तरह
पर मन नहीं माना
कहाँ पशु और कहाँ हम
पर एक दिन जाना
पक्षी और पशु
दोनों ही बेहतर है
हम जैसे मानव से
क्योंकि
भूख सबको लगती है
पर पक्षी
न घुटने टेकता है
और न हाथ फैलाता है
रोता भी नहीं
गिडगिडाता भी नहीं
हाथ तो मित्र
पशु भी नहीं फैलाते
बल्कि वे…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 28, 2015 at 1:13pm — 9 Comments
हजज मुसम्मन सालिम
1222 1222 1222 1222
तुम्हारी आँख का जादू ज़रा हमराज देखेंगे
भरा कैसा है सम्मोहन यही तो आज देखेंगे
कभी मैंने तुम्हें चाहा अभी तक दर्द है उसका
रहेगी कोशिशें मेरी तेरे सब काज देखेंगे
नहीं आसां मुहब्बत ये कलेजा मुख को आता है
यहाँ पर वश न था मेरा गिरेगी गाज देखेंगे …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 20, 2015 at 1:30pm — 5 Comments
2122 2122 2122 2
फाईलातुन फाईलातुन फाईलातुन फा
हम किसी से मिलने उसके घर नहीं जाते
आप भी है जिद में मेरे दर नहीं आते
बेबसी महबूब की किस भाँति समझाऊँ
आज भी उनको मेरे चश्मेतर नहीं भाते
जिन्दगी बीती है उनकी सूफियाना सी
मस्त तो है रहते साजो पर नहीं गाते
इश्क में हूँ जांबलब मेरा भरोसा क्या
फ़िक्र उनको कब है चारागर नहीं लाते
एक साया उसका बांटी जिन्दगी…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 16, 2015 at 9:30pm — 34 Comments
हजज मुरब्बा सालिम
1222 1222
खुदा से जो भी डरता है
खुदा को याद करता है
समय है जानवर ऐसा
जरा धीरे से चरता है
कृषक की छातियाँ देखो
पसीना नित्य झरता है
बिछे जब राह में काँटे
पथिक पग सोंच धरत़ा है
भला है जानवर उससे
उदर जो आप भरता…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 14, 2015 at 9:00pm — 20 Comments
रमल मुसम्मन सालिम
2122 2122 2122 2122
खो गए जो मीत बचपन के सिकंदर याद आते
ध्यान में आह्लाद के सारे समंदर याद आते
गाँव की भीगी हवा आषाढ़ के वे दृप्त बादल
और पुरवा के उठे मादक बवंडर याद आते
आज वे वातानुकूलित कक्ष में बैठे हुए हैं
किंतु मुझको धूप में रमते कलंदर याद आते
नित्य गोरखधाम में है गूँजती ‘आदित्य’ वाणी
देश को…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 11, 2015 at 11:00am — 19 Comments
रमल मुरब्बा सालिम
2122 2122
क्या ज़माने आ गये हैं ?
बेशरम शर्मा गये हैं I
था भरोसा बहुत उनका
वे मगर उकता गये हैं I
पोंछ लें आंसू कृषक अब
स्वर्ण वे बरसा गये हैं I
देखकर अंदाज तेरे
हौसले मुरझा गये है I
लाजिम है हो नशा भी
जाम जब टकरा…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 9, 2015 at 11:34am — 24 Comments
मुतदारिक मुसम्मन सालिम
212 212 212 212
आपकी थी हमें भी बहुत कामना
आज संयोग से हो गया सामना
आँख से आँख अपनी मिली इस तरह
रस्म भर ही रहा हाथ का थामना
मयकशीं जो करूं तो नशा यूँ चढ़े
और आये कभी हाथ में जाम ना
इश्क आँखों में जब से लगा नाचने
हो गयी पूर्ण …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 6, 2015 at 12:30pm — 20 Comments
एक वृक्ष की दो संताने तू गुलाब मैं काँटा
जो तुझको फुसलाता है मैं धर देता हूँ चाँटा
तितली भ्रमर और मधुमक्खी सब मुझसे थर्राते
मेरे डर से पास तुम्हारे आने में भय खाते
वन-कानन का पशु भी कोई परस नहीं कर पाता
मणिधर भी तेरी सुगंध को लेने …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 4, 2015 at 5:30pm — 22 Comments
मैं यहां पर रहूँ या वहां पर रहूँ
ऐ खुदा तू बता मैं कहां पर रहूँ ?
एक साया मुझे आपका जो मिले
फ़िक्र क्या फिर कहाँ किस मकां पर रहूँ I
जिन्दगी आज तो है तिजारत हुयी
फर्क ये है कि मैं किस दुकां पर रहूँ I
हो रहम मालिकों की मयस्सर मुझे
पंचवक्ता तेरी मैं अजां पर रहूँ I
याद तेरी करूं …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 1, 2015 at 11:00am — 24 Comments
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