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March 2016 Blog Posts (166)

ग़ज़ल : नाम को गर बेच कर

2122   2122    2122    212

नाम को गर बेच कर व्यापार होना चाहिए

दोस्तों फिर तो हमें अखबार होना चाहिए



आपके भी नाम से अच्छी ग़ज़ल छप जायेगी

सरपरस्ती में बड़ा सालार होना चाहिए



सोचता हूँ मैं अदब का एक सफ़हा खोलकर

रोज़ ही यारो यही इतवार होना चाहिए



क्या कहेंगे शह्र के पाठक हमारे नाम पर

छोड़िये, बस सर्कुलेशन पार होना चाहिए



हम निकट के दूसरे से हर तरह से भिन्न हैं

आंकड़ो का क्या यही मेयार होना चाहिए



नो निगेटिव न्यूज का मुद्दा…

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Added by Ravi Shukla on March 1, 2016 at 5:44pm — 12 Comments

अपशकुनी (लघुकथा)

आज शर्मा जी के घर में बहुत हलचल थी, कई रिश्तेदार भी मिलने आये हुए थे| शर्मा जी रिटायर होने के बाद, अपनी पत्नी के साथ छह महीने की तीर्थयात्रा पर जा रहे थे| उनके दोनों बेटे और बहुएँ भी बहुत खुश थे| बेटे इसलिए कि अपनी कमाई से अपने माता-पिता को तीर्थ करवा रहे हैं और बहुएँ इसलिए कि अगले छह महीने वो घर की रानियाँ बन कर रहेंगी|

 

पूजा-पाठ कर प्रसाद हाथ में लिए दोनों पति-पत्नी ने जैसे ही घर के बाहर कदम रखा, बाहर खड़ी एक बिल्ली उनका रास्ता काट गयी| एक बेटे ने उस बिल्ली को हाथ से भगाते…

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Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on March 1, 2016 at 4:30pm — 6 Comments

धारा-387 :लघुकथा: हरि प्रकाश दुबे

“अंकल, जरा अपना मोबाइल फ़ोन दे दीजिये I"

“पर क्यों बेटा, तुम्हारे फ़ोन को क्या हुआ?”

“घर पर पिताजी बीमार हैं, माँ से बात कर रहा था, तभी फ़ोन की बैटरी डिस्चार्ज हो गयी, और देखिये ना यहाँ पर कोई चार्जिंग की जगह भी नहीं है, प्लीज अंकल, ज्यादा बात नहीं करूंगा, चाहे तो पैसे .. I"

“अरे नहीं, पैसे की कोई बात नहीं है बेटा, ये लो आराम से बात करो I"इतना कहते हुए शर्मा जी ने अपना फ़ोन उस नौजवान को दे दिया, और कुछ ही देर बाद वह लड़का वापस आया और बोला, “आपका…

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Added by Hari Prakash Dubey on March 1, 2016 at 4:30pm — 7 Comments

महज इक हार से जीवन नहीं बुनियाद खो देता -ग़ज़ल

1222    1222    1222    1222

**************************************

न कोई दिन बुरा गुजरे  न कोई रात भारी हो

जुबाँ को  खोलना  ऐसे न कोई बात भारी हो /1



दिखा सुंदर तो करता है हमारा गाँव भी लेकिन

बहुत कच्ची हैं दीवारें  न अब बरसात भारी हो /2



न तो धर्मों का हमला हो  न ही पंथों से हो खतरा

न इस जम्हूरियत पर अब किसी की जात भारी हो /3



पढ़ा विज्ञान  है  सबने  करो  तरकीब  कुछ ऐसी

न तो  हो तेरह का खतरा न साढ़े  सात भारी हो /4



महज इक हार से जीवन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2016 at 11:29am — 12 Comments

हिफ़ाज़त (लघु कथा )

दिन ढलने का वक़्त क़रीब आरहा था कि अचानक रास्ते पर सामने से कारवां की तरफ कोई आदमी भागता हुआ नज़र आया | वह हांफता हुआ पास आकर बोला ,आगे ख़तरा है मेरा क़ाफ़ला लुट  चूका है | सालारे कारवां ने बिना सोचे समझे उसकी बातों पर यक़ीन करके वहीँ पर क़याम करने का हुक्म देदिया ,हामिद ने लाख कहा इस पर यक़ीन मत करो , मुझे इसकी आँखों में फ़रेब नज़र आरहा है | ...... मगर सब बेकार गया | रात को जब क़ाफ़ले वाले बेख़बर सो रहे थे ,हामिद की आँखों से नींद गायब थी | ...... यकबयक उसे घोड़ों के टापों की आवाज़ सुनाई दी…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on March 1, 2016 at 7:30am — 12 Comments

आहत करने से पहले कितना आहत होना पड़ता है

एक आस थी बावरी
बहुत दिन धकिया गयी 
उदास होने ही नहीं दिया  मन
आखिर आज
जब पहुंच ही गए हो
ले के अपने तंज ,दंश
तो आस का क्या
मन का तो बिलकुल ही क्या
मजाल कि बिन झुलसे रह जाए
कोई चूं भी कर जाए
आप तो  बस आप हैं 
सब आप की सौगात है
बहुत बधाई…
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Added by amita tiwari on March 1, 2016 at 1:30am — 2 Comments

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