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Ram shiromani pathak's Blog – February 2014 Archive (3)

क्षणिकाएं

1-विवशता

मुश्किल वक्त मैं उसकी मदद नहीं कर पाया

पता है क्यों?

वह डरे व् फसे जानवर की तरह खूँखार हो गया था//

२-लौट आया

मैं वहाँ से लौट तो आया 

लेकिन खुद को अधूरा छोड़कर//

३-विवादित विचार 

 

उनका सम्बन्ध इसलिए टूटा

क्यूंकि वे 

विवादित विचारों तक ही सिमटे रहे//

 

४-अकेलापन

बाज़ार के अकेलेपन से इतना ऊब गया हूँ…

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Added by ram shiromani pathak on February 21, 2014 at 1:00pm — 13 Comments

दोहा-१४(विविधा)

रह जाएगा धन यहीं,जान अरे नादान!

इसकी चंचल चाल पर,मत करिये अभिमान!!

सत्कर्मों से तात तुम,कर लो ह्रदय पवित्र!

उजला उजला ही दिखे,सारा धुँधला चित्र!!

सागर में मोती सदृश,अंधियारे में दीप!

पाना है यदि राम को,जाओ तनिक समीप!!

मन गंगा निर्मल रखें,सत्कर्मों का कोष!

ऐसे नर के हिय सदा,परम शांति संतोष!!

जाग समय से हे मनुज,सींच समय से खेत!

समय फिसलता है सदा,ज्यों हाथों से रेत!!

मन करता फिर से चलूँ,उसी…

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Added by ram shiromani pathak on February 10, 2014 at 10:30pm — 19 Comments

दोहे-१३(प्रेम पियूष)

उनके आते ही यहाँ,खिले ह्रदय में फूल!

कोयल भी गानें लगी,पवन हुआ अनुकूल!!

मंद मंद चलने लगी,देखो प्रेम बयार!

कानों में आ कह रही,कर लो थोड़ा प्यार!!



अधरों के पट खोलकर,की है ऐसी बात !! 

शब्द शब्द में बासुँरी,फिर मधुमय बरसात!!



कह न सका जब मैं उन्हें,तुम हो मन के मीत!

शायद तब से कवि बना,लिख लिख गाता गीत!!



फिर से मै घायल हुआ,पता नहीं वह कौन!

मुझे व्यथित करके सदा,हो जाती है मौन!!



बजा बाँसुरी प्रेम की,डालो…

Continue

Added by ram shiromani pathak on February 9, 2014 at 5:30pm — 24 Comments

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