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दोहा सप्तक. . . . संबंध
पति-पत्नी के मध्य क्यों ,बढ़ने लगे तलाक ।
थोड़े से टकराव में, रिश्ते होते खाक ।।
अहम तोड़ता आजकल , आपस का माधुर्य ।
तार - तार सिन्दूर का, हो जाता सौन्दर्य ।।
खूब तमाशा हो रहा, अदालतों के द्वार ।
आपस के संबंध अब, खूब करें तकरार ।।
अपने-अपने दम्भ की, तोड़े जो प्राचीर ।
उस जोड़े की फिर सदा, सुखमय हो तकदीर ।।
पति-पत्नी के बीच में, बड़ी अहम की होड़ ।
जनम - जनम के साथ को, दिया बीच में छोड़। ।
जरा- जरा सी बात पर,…
ContinuePosted on September 23, 2024 at 3:41pm
दोहा पंचक. . . . . दरिंदगी
चाहे जिसको नोचते, वहशी कामुक लोग ।
फैल वासना का रहा , अजब घृणित यह रोग ।।
बेबस अबला क्या करे, जब कामुक लूटें लाज ।
रोज -रोज इस कृत्य से, घायल हुआ समाज ।।
अबला सबला हो गई, कहने की है बात ।
जाने कितने सह रही, घुट-घुट वो आघात ।।
नजरें नीची लाज की, वहशी करता मौज ।
खुलेआम ही हो रहा, घृणित तमाशा रोज ।।
छलनी सब सपने हुए, छलनी हुआ शरीर ।
कौन सुने संसार में, अबला अंतस पीर ।।
सुशील सरना /…
ContinuePosted on September 20, 2024 at 3:58pm
दोहा पंचक. . . . . . विविध
चढ़ते सूरज को सदा, करते सभी सलाम।
साँझ ढले तो भानु की, बीते तनहा शाम।।
भोर यहाँ बेनाम है, साँझ यहाँ गुमनाम ।
जिस्मों के बाजार में, हमदर्दी नाकाम ।।
छीना झपटी हो रही, किस पर हो विश्वास ।
रहबर ही देने लगे, अपनों को संत्रास ।।
तनहाई के दौर में, यादों का है शोर ।
जुड़ी हुई है ख्वाब से, उसी ख्वाब की डोर ।।
मुझसे ऊँचा क्यों भला, उसका हो प्रासाद ।
यही सोचकर रात -दिन, सदा बढ़े अवसाद ।।
सुशील…
ContinuePosted on September 17, 2024 at 2:46pm
दोहा सप्तक. . . रिश्ते
सौदेबाजी रह गई, अब रिश्तों के बीच ।
सम्बन्धों को खा गई, स्वार्थ भाव की कीच ।।
रिश्तों के माधुर्य में, आने लगी खटास ।
धीरे-धीरे हो रही, क्षीण मिलन की प्यास ।।
मन में गाँठें बैर की, आभासी मुस्कान ।
नाम मात्र की रह गई, रिश्तों में पहचान ।।
आँगन छोटे कर गई, नफरत की दीवार ।
रिश्तों की गरिमा गई, अर्थ रार से हार ।।
रिश्ते रेशम डोर से, रखना जरा सँभाल ।
स्वार्थ बोझ से टूटती, अक्सर इनकी डाल ।।
सच्चे मन से जो…
ContinuePosted on September 11, 2024 at 1:21pm
आदरणीय सुशील सरना जी ,
सादर अभिवादन , आपके नाम और सावन पर लिखे सभी दोहे मन मोह गए । दोनों कविताएं 'मौसम को' व प्रश्न गंभीर भावों को लिए हुए है। साधुवाद ।
आदरणीय सुशील सरना जी.
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी "कविता : कितना अच्छा होता" को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |
आपको प्रसस्ति पत्र यथा शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन
आपका मेल बॉक्स ब्लॉक होने के कारण मेल सेंड नहीं हो रहा है.
आदरणीय सुशील सरना सर, विलम्ब से प्रत्युत्तर हेतु क्षमा. आपको मेल कर दिया है. सादर
आ० सरना भाई जी, सादर प्रणाम!
आपका हार्दिक स्वागत है. मित्रता से भाग्योदय होता है , मैं धन्य हुआ. सादर
आदरणीय सुशील जी ..महीने का सक्रिय सदस्य चुने जाने पर मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
आ० सुशील सरना भाई जी, सादर प्रणाम! आपको "महीने का सक्रिय सदस्य" चुने जाने पर बहुत-बहुत बधाई. सादर
आदरणीय
सुशील सरना जी,
सादर अभिवादन,
यह बताते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में विगत माह आपकी सक्रियता को देखते हुए OBO प्रबंधन ने आपको "महीने का सक्रिय सदस्य" (Active Member of the Month) घोषित किया है, बधाई स्वीकार करें | प्रशस्ति पत्र उपलब्ध कराने हेतु कृपया अपना पता एडमिन ओ बी ओ को उनके इ मेल admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध करा दें | ध्यान रहे मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई है |
हम सभी उम्मीद करते है कि आपका सहयोग इसी तरह से पूरे OBO परिवार को सदैव मिलता रहेगा |
सादर ।
आपका
गणेश जी "बागी"
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन
मोहतरम जनाब सुशील सरना साहिब , यह आप सब की हौसला अफ़ज़ाई का नतीजा है , जिसके लिए आप का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
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