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Ravi Shukla
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Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आदरणीय अनीस अरमान जी मुशाइरे मे  इस उम्दा गज़ल के लिए बधाई आपको"
Saturday
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आदरणीय अजय जी गजल का बहुत अच्छा प्रयास किया है आपने मुशायरे में इसके साथ शिरकत करने के लिए हार्दिक बधाई। दिख दिखा दिखता ऐसे शब्द आम बोलचाल के हैं ग़ज़ल में इनके प्रयोग से बचना चाहिए सहीह लफ्ज़  दिखाई है ।  झुंझलते काफीया पर कुछ संशय है…"
May 26
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आदरणीय अजय जी गजल की सराहना के लिए हार्दिक आभार"
May 26
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"हार्दिक आभार आदरणीय नीलेशजी। आदरणीय समर साहब की प्रेरणा से पुनः सक्रिय होने का प्रयास कर रहा हूं कुछ भोपाल उत्सव का भी सक्रियता में सहयोग है"
May 26
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"सज सँवर के वो जब निकलते हैंकितने अरमान हाथ मलते है आपके पास है जवाब इसकाफूल काँटो में कैसे पलते हैं अब न होगी ग़ज़ल तुम्हारे बादहम भी इस बज़्म से निकलते हैं सिर्फ़ मौसम ही क्यूँ हए बदनामलोग भी तो बहुत बदलते हैं आशनाई क़ज़ा से हो जिनकीवो निडर होके जग…"
May 26
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आदरणीय गजेंद्र जी उम्दा मतले के साथ आपने बहुत खूबसूरत गजल पेश की है हालांकि तीसरा शेर बह्र से खारिज है मगर इस उम्दा ग़ज़ल के लिए शेर दर शेर मुबारकबाद कुबूल करें"
May 26
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आदरणीय अशोक गोयल जी उम्दा ग़ज़ल मुशाइरे में पेश की है आपने शेर दर शेर हार्दिक बधाई पेश है। "
May 26
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आदरणीय नीलेश भी उम्दा ग़ज़ल कही आपने तरही मिसरे पर मतला खासतौर से पसंद आया पांचवा शेर का अंदाज ए बयां और भी ज्यादा अच्छा लगा कुल मिलाकर इस ग़ज़ल के लिए शेर दर शेर हार्दिक बधाई "
May 26
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आदरणीय अजय कुमार  जी ग़ज़ल और मुशाइरे में सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई । गिरह अच्छी लगाई आपने"
May 26
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आदरणीय नादिर जी ग़ज़ल और मुशाइरे में सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई "
May 26
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आदरणीय जयनित  जी ग़ज़ल और मुशाइरे में सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई "
May 26
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आदरणीय जैफ जी ग़ज़ल और मुशाइरे में सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें"
May 26
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आदरणीय शिज्जु भाई उम्दा ग़ज़ल के साथ मुशाइरे में सहभागिता के लिए शेर दर शेर मुबारकबाद कुबूल करें ।"
May 26
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आदरणीय लक्ष्मण जी अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें "
May 26
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आदरणीय संजय जी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें , दूसरा शेर खास तौर पर अच्छा लगा"
May 26
Ravi Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी ग़ज़ल के साथ मुशायरे में सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें"
May 26

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तरही ग़ज़ल फ़िराक़ साहब के मिसरे पर

थी यही फूल की किस्मत कि बिखर जाना था,

ये कहाँ तय था कि जुल्फों में ठहर जाना था।

मौज ने चाहा जिधर मोड़ दिया कश्ती को,

"मुझको ये भी न था मालूम किधर जाना था"।

जो थे साहिल पे तमाशाई यही कहते थे,

डूबने वाले को अब तक तो उभर जाना था।

बज़्मे अग्यार में है जलवा नुमाई तेरी ,

इस तग़ाफ़ुल पे तेरे मुझको तो मर जाना था।

गर्द हालात की चहरे पे है,लेकिन तुझको,

आईना बन के मैं आया तो सँवर जाना था।

सुब्ह का भूला…

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Posted on March 1, 2019 at 4:30pm — 8 Comments

गीत दफ्तर पर

सिस्टम से अब और निभाना मुश्किल है,

आँसू पीकर हँसते जाना मुश्किल है।।

लंबे चौड़े दफ्तर हैं पर छोटी सोच लिए।

भाँग कुएँ में मिली हुई है पानी कौन पिए।

कागज के रेगिस्तानों में भटक रहा,

मृग तृष्णा से प्यास बुझाना मुश्किल है।

भावुकता में मैदां छोड़ूँ क्या होगा।

कोई और यहाँ आकर रुसवा होगा।।

अजगर बन कर पड़ा रहूँ कैसे संभव,

जोंकों को भी खून पिलाना मुश्किल है।

लानत और मलामत का है भार बहुत।

न्याय नहीं निर्णय का शिष्टाचार…

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Posted on November 16, 2018 at 9:48pm — 5 Comments

तरही ग़ज़ल : साफ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं

2122  1122  1122  22/112

कोई पूछे तो मेरा हाल बताते भी नहीं,

आशनाई का सबब सबसे छुपाते भी नहीं।

शेर कहते हैं बहुत हुस्न की तारीफ़ में हम

पर कभी अपनी ज़बाँ पर उन्हें लाते भी नहीं।

जब भी देते हैं किसी फूल को हँसने की दुआ,

शाख़ से ओस की बूंदों को गिराते भी नहीं।

ये तुम्हारी है अदा या है कोई मजबूरी,

प्यार भी करते हो और उसको जताते भी नहीं।

सिर्फ़ अल्फ़ाज़ से पहचान…

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Posted on August 29, 2018 at 4:00pm — 17 Comments

गीत : एक भारत श्रेष्ठ भारत

एक भारत श्रेष्ठ भारत आइये मिलकर बनाएं

देश का  सम्मान गौरव लक्ष्य हासिल कर बढ़ाएं

 

शांति के हम पथ प्रदर्शक ध्वज अहिंसा ले चलेंगे

विश्‍व गुरु बन कर पुन: संस्थापना सच की करेंगे

दें नहीं उपदेश अपने आचरण से  कर दिखाएं

 

धर्म पूजा, जाति भाषा, वेश भूषा, बोलियाँ सब

एकता के सूत्र में बंध कर चली है टोलियाँ सब

संगठन में शक्ति है, ऐसी लिखें फिर से कथाएं

 

रेल का हमको दिखाई दे रहा है पथ समांतर

मूल में इसके छिपा है साथ…

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Posted on July 25, 2017 at 11:00am — 8 Comments

Comment Wall (16 comments)

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At 11:59am on October 16, 2020, बसंत कुमार शर्मा said…

सादर प्रणाम स्वीकारें आदरणीय, सादर स्नेह बनाये रखें, अच्छा लगा आपकी मित्रता रिक्वेस्ट देख करमैं भी रेल परिवार से ही हूँ 

वर्तमान में उप मुख्य सतर्कता अधिकारी के पद कार्य कर रहा हूँ. 

जबलपुर पश्चिम मध्य रेल 

At 7:49am on June 29, 2019, dandpani nahak said…
आदरणीय रवि शुक्ला जी आदाब , बहुत शुक्रिया मेरा हौसला बढ़ने के लिए
At 4:12pm on June 27, 2019, dandpani nahak said…
आदरणीय रवि शुक्ल जी आदाब, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करें
At 8:08am on January 27, 2019, dandpani nahak said…
आदरणीय रवि जी
बहुत बहुत शुक्रिया
At 12:59am on October 5, 2018, mirza javed baig said…

मोहतरम जनाब रविरवि शुक्ला जी आदाब 

मुझे अपने फ्रेंड्स लिस्ट में जोड़ने के लिए शुक्रिया 

आपसे बहुत कुछ सीखने का अवसर मिलेगा। 

At 9:25am on September 9, 2018, Ajay Tiwari said…

आदरणीय रवि जी,

आपकी मैत्री हासिल करना किसका सौभाग्य नहीं होगा. और मुझे ख़ुशी है कि ये सौभाग्य अब मुझे भी प्राप्त है. हार्दिक आभार.

At 5:11pm on January 10, 2018, dandpani nahak said…
आदरणीय रवि शुक्ला जी प्रणाम
प्रथम तो मैं देरी से आपका आभार व्यक्त करते हुए शर्मिंदा हूँ और माफ़ी चाहता हूँ अपने मेरी पहली ही ग़ज़ल पढ़ी तथा इस पर अपने विचार व्यक्त किये मैं आपका शुक्रगुज़ार हूँ मेरी पहली ही ग़ज़ल में बहुत ख़ामियां है मुझे भरोषा है की आप जैसे गुणीजनों के सानिध्य में मैं कुछ सीख सकूँगा
आपका बहुत बहुत आभार
At 3:39pm on April 5, 2017, Gurpreet Singh jammu said…

आदरणीय रवि शुक्ला जी आपसे बहुत अच्छी चैटिंग हो रही थी... लेकिन ऐन वक़्त पर मेरे नेट ने धोखा दे दिया ( ये अक्सर मेरे साथ ऐसा ही करता है ) और आप से  बात चीत बीच में ही कट गई ,,, खैर फिर मौका मिला तो बात आगे बढ़ांएंगे,,, संपर्क करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद 

At 11:45pm on July 16, 2016,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

आदरणीय रवि शुक्ल जी.
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी  ग़ज़ल - व्यापार होना चाहिए को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |

आपको प्रसस्ति पत्र यथा शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक 
ओपन बुक्स ऑनलाइन

At 8:23pm on December 17, 2015, Nirdosh Dixit said…
प्रणाम स्वीकारें आदरणीय शुक्ल जी, सादर आभार आपका।
 
 
 

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