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Aazi Tamaam's Blog (48)

ग़ज़ल ; पतझड़ के जैसा आलम है विरह की सी पुरवाई है

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पतझड़ के जैसा आलम है विरह की सी पुरवाई है

ये कैसा मौसम आया है जिसका रंग ज़ुदाई है

घूमते रहते हैं कई साये दिल के अँधेरे कमरे में

काट रही है पल पल मन को ग़म की रात कसाई है

जंगल जंगल घूम रहा हूँ लेकर अपनी बेचैनी

ख़ामोशी में शोर बपा है ये कैसी तन्हाई है

ना जाने क्या सोच रही है मन ही मन बैठी दुल्हन

आँखों में इक हैरानी है चेहरे पे रानाई है

शादी का अवसर लाया है ग़म के साथ…

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Added by Aazi Tamaam on October 5, 2024 at 10:40am — No Comments

दोहे : बैठ एक की आस में, कब तक रहें उदास

बैठ एक की आस में, कब तक रहें उदास

चल दिल चल के ढूँढ लें, दूजा और निवास

ये जग है मायानगर, कौन करे विश्वास

इस झूठे बाजार में, टूटी सब की आस

पल भर में मेला लगे, पल भर में वनवास

अभी पराया हो गया, अभी हुआ जो खास

रहते थे हम ठाठ से, सब था अपने पास

छोड़ जिसे, आवारगी, हमको आई रास

श्वेत रंग की प्रीत का, उनको क्या एहसास

रंगों के शौकीन तो, बदलें रोज लिबास

(मौलिक व अप्रकाशित) 

Added by Aazi Tamaam on August 6, 2024 at 12:00am — 2 Comments

ग़ज़ल : मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम

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मिज़ाज़-ए-दश्त पता है न नक़्श-ए-पा मालूम

हमारे दर्द-ए-जिगर का भी किसको क्या मालूम

करेगा दर्द से आज़ाद या जिगर छलनी

तुम्हारे तीर-ए-नज़र की किसे रज़ा मालूम

न जाने कैसे थमेगा ये सिलसिला ग़म का

कोई बताये किसी को हो गर ज़रा मालूम

झुकाएं कौन से दर पर ज़बीं ये दीवाने

वफ़ा का कौन सा घर है किसी को क्या मालूम

क़फ़स में क़ैद परिंदे की बेबसी देखो

न हश्र-ए-क़ैद पता है न है ख़ता…

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Added by Aazi Tamaam on July 14, 2024 at 11:30am — 10 Comments

ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी

२१२२ २१२२

ग़मज़दा आँखों का पानी

बोलता है बे-ज़बानी

मार ही डालेगी हमको

आज उनकी सरगिरानी

आपकी हर बात वाजिब

और हमारी लंतरानी

जाने किसकी बद्दुआ है

वक़्त-ए-गर्दिश जाँ-सितानी

दर्द-ओ-ग़म रास आ रहे हैं

बुझ रही है ज़िंदगानी

कौन जाने कब कहाँ से

आये मर्ग-ए-ना-गहानी

ले के फागुन आ गया फिर

फ़स्ल-ए-गुल की छेड़खानी

कैसे मैं समझाऊँ ख़ुद…

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Added by Aazi Tamaam on April 1, 2024 at 5:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल: सही सही बता है क्या

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सही सही बता है क्या

भला है क्या बुरा है क्या

न इश्क़ है न चारागर

तो दर्द की दवा है क्या

लहू सा लाल लाल है

ये आँख में जमा है क्या

बुझे बुझे से लोग हैं

ये ज़िंदगी सज़ा है क्या

अजीब कशमकश सी है

ये दिल तुझे हुआ है क्या

सुकून है न चैन है

यूँ जीने में मज़ा है क्या

जो खाक़ हो रहे हैं हम

किसी कि बद्दुआ है क्या

जला दिया तो…

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Added by Aazi Tamaam on March 6, 2024 at 7:00pm — No Comments

ग़ज़ल: बाद एक हादिसे के जो चुप से रहे हैं हम

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बाद एक हादिसे के जो चुप से रहे हैं हम

अपनी ही सुर्ख़ आँख में चुभते रहे हैं हम

ये और बात है की मुकम्मल न हो सका

इक ख़त किसी के नाम जो लिखते रहे हैं हम

सबसे जरूरी काम में पीछे रहे मगर

बाक़ी हर एक बात में आगे रहे हैं हम

वैसे तो हमसे जीतना मुमकिन न था मगर

अपनी रज़ा से आप से पीछे रहे हैं हम

इक रोज़ तन्हा छोड़ गए आप तो हमें

दर्द उम्र भर ये हिज़्र का सहते रहे हैं…

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Added by Aazi Tamaam on January 26, 2024 at 9:30pm — 2 Comments

ग़ज़ल - ये जो खंडरों सा मकान है

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इसी में तो मेरा जहान है

ये जो खंडरों सा मकान है

यूँ ही बोलने से बचा करें

यूँ कि तुंद-ख़ू ये ज़बान है

नया खून है वो है जोश में

अभी ज़िंदगी में उफान है

न है आसमाँ न है तू ज़मीं

तुझे ख़ुद पे कितना गुमान है

तेरी जाति क्या है बिसात क्या

तेरा ज़िस्म ख़ाक समान है

न क़ुसूर कोई 'तमाम' अब

न बची उमंग न जान है

मौलिक व अप्रकाशित

(आज़ी…

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Added by Aazi Tamaam on January 18, 2024 at 4:30am — 6 Comments

फ़स्ल-ए-गुल है समाँ है मस्ताना

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फ़स्ल-ए-गुल है समाँ है मस्ताना

आज फिर दिल हुआ है दीवाना

यूँ तो हर आँख में नशा लेकिन

उनकी आँखों में पूरा मयखाना

जबसे आये हैं उनको महफ़िल में

भूल बैठे…

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Added by Aazi Tamaam on December 11, 2022 at 9:30pm — 2 Comments

ग़ज़ल: सुरूर है या शबाब है ये

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सुरूर है या शबाब है ये

के जो भी है ला जवाब है ये

फ़क़ीर की है या पीर की है

के चश्म जो आब-ओ-ताब है ये

कज़ा है अगर सरक गया तो

जो चेहरे पे नकाब है ये

अजीब है सफ़ह-ए-ज़िंदगी भी

न पूछो की क्या जनाब है ये

कभी है ख़ुशी तो है कभी ग़म

बस एक ऐसी किताब है ये

हैं अश्क से आज चश्म जो नम

महब्बतों का हिसाब है ये

न जाने कोई है माज़रा क्या

की…

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Added by Aazi Tamaam on May 22, 2022 at 8:00am — 10 Comments

ग़ज़ल: इक ऐसे ग़म से आज मुलाक़ात हो गई

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पाकर जिसे हयात हवालात हो गई

इक ऐसे ग़म से आज मुलाक़ात हो गई

कैसे बताएँ आपके बिन कुछ नहीं हैं हम

कैसे बताएँ आपको क्या बात हो गई

अंजान थी जो आँख मिरी जान अश्क़ से

बाद आपके यूँ रोई की बरसात हो गई

इक पल में खुशनुमा हुई इक पल में रहनुमा

फ़िर एक पल में दर्द की सौग़ात हो गई

कैसी है दास्ताँ ये मिरी जान ज़िंदगी

रौशन हुई कहीं तो कहीं रात हो गई

मौलिक व…

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Added by Aazi Tamaam on February 26, 2022 at 11:30pm — 2 Comments

ग़ज़ल: हर इक दिन इन फ़ज़ाओं में नई अल्बम लगाता है

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हर इक दिन इन फ़ज़ाओं में नई अल्बम लगाता है

कोई तो है हरी सी घास पर शबनम लगाता है

कहीं सुनता नहीं महफ़िल में भी अब दर्द ए दिल कोई

किसे आवाज वीराने में तू हमदम लगाता है

अज़ब है वाक़िया या रब अज़ब साकी मिला दिल को

नमक ज़ख़्मों पे दिल के किस क़दर पैहम लगाता है

धुआँ होकर निकलती हैं ये साँसें दिल के अंदर से

किसी की याद में दिल दम व दम फिर दम लगाता…

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Added by Aazi Tamaam on January 15, 2022 at 3:00pm — No Comments

ग़ज़ल: आख़िरश वो जिसकी खातिर सर गया

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आख़िरश वो जिसकी ख़ातिर सर गया

इश्क़ था सो बे वफ़ाई कर गया

आरज़ू-ए-इश्क़ दिल में रह गई

जुस्तजू-ए-इश्क़ से दिल भर गया

दिल की दुनिया दर्द का बाजार है

दर-ब-दर…

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Added by Aazi Tamaam on January 13, 2022 at 12:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल: किसी कँवल का हंसीं ख़ाब देखने के लिये

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यूँ उम्र भर रहे बेताब देखने के लिये

किसी कँवल का हंसीं ख़ाब देखने के लिये

कहाँ थे देखो सनम हम कहाँ चले आये

वो गुलबदन के वो महताब देखने के लिये

न जाने कब से हक़ीक़त की थी तलब हमको

न जाने कब से थे बेताब देखने के लिये

छुआ तो जाना हर इक ख़्वाब था धुआँ यारो

बचा न कुछ भी याँ नायाब देखने के लिये

क़रीब जा के हर एक चीज खोयी है हमने

लुटे हैं ज़िंदगी शादाब देखने के…

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Added by Aazi Tamaam on October 10, 2021 at 12:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल: ज़ुमुररुद कब किसी मुफ़्लिस के घर चूल्हा जलाता है

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ज़ुमुररुद कब किसी मुफ़्लिस के घर चूल्हा जलाता है

मिरी जाँ ये तो बस शाहों कि पोशाकें सजाता है

रिआया भी तो देखो कितनी दीवानी सी लगती है

उसी को ताज़ कहती है जो इनके घर जलाता है

नगर में नफ़रतों के भी महब्बत कौन समझेगा

ए पागल दिल तू वीराने में क्यों बाजा बजाता है

हमारे हौसले तो कब के आज़ी टूट जाते पर

ये नन्हा सा परिंदा है जो आशाएँ जगाता है

कोई बेचे यहाँ आँसू तो कोई…

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Added by Aazi Tamaam on June 24, 2021 at 6:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल: उठाकर शहंशाह क़लम बोलता है

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उठाकर शहंशह क़लम बोलता है

चढ़ा दो जो सूली पे ग़म बोलता है

ये फरियाद लेकर चला आया है जो

ये काफ़िर बहुत दम ब दम बोलता है

जुबाँ काट दो उसकी हद को बता दो

बड़ा कर जो कद को ख़दम बोलता है

गँवारों की वस्ती है कहता है ज़ालिम

किसे नीच ढा कर सितम बोलता है

बिठाता है सर पर उठाकर उसी को

जो कर दो हर इक सर क़लम बोलता है

बड़ी बेबसी में है जीता वो ख़ादिम

बड़ाकर जो…

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Added by Aazi Tamaam on June 15, 2021 at 4:30pm — 6 Comments

नग़मा: दिल

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अज़ीब इस दिल की बातें हैं अज़ीब इसके तराने हैं

अज़ीब ही दर्द है इसका अज़ीब ही दास्तानें हैं

अज़ीब अंज़ाम है इसका अज़ीब आग़ाज़ करता है

अगर जो टूट भी जाये तो ना आवाज़ करता है

कभी सुरख़ाब करता है कभी बेताब करता है

दिल ए नादाँ............. दिल ए नादाँ...........

दिल ए नादाँ हर इक ख़्वाहिश को ही आदाब करता है

ये करतब कितनी आसानी से यारो दिल ये करता है

कभी ये ज़ख़्म देता है,…

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Added by Aazi Tamaam on June 10, 2021 at 10:23am — 2 Comments

ग़ज़ल: लाओ जंजीर मुझे पहना दो

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लाओ जंजीर मुझे पहना दो 

मेरी तकदीर मुझे पहना दो

तुम ख़ुदा हो तो ये डर कैसा है

मेरी तहरीर मुझे पहना दो

जो भी चाहो वो सज़ा दो मुझको

जुर्म ए तामीर मुझे पहना दो

पहले काटो ये ज़ुबाँ मेरी फिर

कोई तज़्वीर मुझे पहना दो

मुफ़्लिसी ज़ुर्म अगर है मेरा

सारी ताजी़र मुझे पहना दो

आज आया हूँ मैं हक की खातिर

कोई तस्वीर मुझे पहना दो

मौलिक व…

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Added by Aazi Tamaam on June 2, 2021 at 12:30pm — 9 Comments

ग़ज़ल: सुख दुख जीवन के हैं साथी क्यों रोता है तू यार

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कोई करता है उद्धार कोई करता अत्याचार  

इस रंगमंच दुनिया में है सबका अपना किरदार

सुख दुख जीवन के हैं साथी क्यों रोता है तू यार

मिट ही जायेंगे सारे दुख जब छूटेगा संसार

जी भर के जीले हर इक पल ज़िद करना है बेकार

तन्हाई में कितने मौसम गुजरे हैं कितनी बार

कोई तो मिल जाये दिल कस्ती वाला इस पार

बैठे हैं साहिल पर कब से लेकर खाली पतवार

ऐसे भी तो ना घूमा कर लेकर दुख का…

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Added by Aazi Tamaam on May 28, 2021 at 9:00am — 2 Comments

ग़ज़ल: नेकियों का अता नहीं मिलता

2122 1212 22

नेकियों का अता नहीं मिलता

खुल्द से वास्ता नहीं मिलता

क्यों भला दिल दुखाने वालों को

दंड बाद ए ख़ता नहीं मिलता

तुझको मेरा पता नहीं मिलता

मुझको तेरा पता नहीं मिलता

ऐ ख़ुदा है भी तू या फ़िर कि नहीं

तुझसे क्यों राब्ता नहीं मिलता

कौन ऐसा है जो कि मुफ्लिस के

ज़िस्म को नोंचता नहीं मिलता

दिल की मंज़िल भी कोई मंजिल है

आज़ तक रास्ता नहीं…

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Added by Aazi Tamaam on May 19, 2021 at 9:44am — No Comments

नग़मा: माँ की ममता

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माँ की ममता सारी खुशियों से प्यारी होती है

माँ तो माँ है माँ सारे जग से न्यारी होती है

मैंने शीश झुकाया जब चरणों में माँ के जाना

माँ के ही चरणों में तो जन्नत सारी होती है

दुनिया भर की धन दौलत भी काम नहीं आती जब

माँ की एक दुआ तब हर दुख पे भारी होती है

माँ से ही हर चीज के माने माँ से ही जग सारा

माँ ख़ुद इक हस्ती ख़ुद इक ज़िम्मेदारी होती है

और बताऊँ क्या मैं तुमको आज़ी माँ की…

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Added by Aazi Tamaam on May 9, 2021 at 3:29pm — 6 Comments

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