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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन । 

पिछले 78 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :


"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-79 

विषय - "छाँव/छाया"

आयोजन की अवधि- 12 मई 2017, दिन शुक्रवार से 13 मई 2017दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

 
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल

नज़्म

हाइकू

सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु,  एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.    

  • रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  • रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  • सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.


आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 12 मई 2017, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें


मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर 
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल की रचना । बधाई स्वीकार करें ।

छाँव के विभिन्न रूप बहुत अच्छे लगे ,बधाई स्वीकारें |

जनाब लक्ष्मण धामी साहिब, प्रदत्त विषय पर सुंदर ग़ज़ल हुई है , दाद और ,
मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ

वाह वाह वाह, बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है आपने. शेर-दर-शेर दाद-ओ-मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं. सादर 

दोहे

 

अपनेपन की घट रही, गली-गली नित छाँव |

बहुत भुरभुरे हो गए , अब रिश्तों के गाँव ||

 

उन वृक्षों की दुर्दशा , देख ह्रदय सकुचाय |

जिनकी छाया बिन कभी, जीवन सँवर न पाय ||

 

छाँव न देगा उम्रभर, लालच का यह कक्ष |

इसके होते हैं विरल, बहुत विरल सब पक्ष ||

 

नहीं छाँव का धूप से , होता कोई वैर |

मगर धूप सम्मुख नहीं, फैलाती वह पैर ||

 

अमराई में उग रहे , चारों ओर बबूल |

लापरवाही से हुई, सुख की छाया धूल ||

 

मौलिक/अप्रकाशित.

 

पंचों दोहे सुन्दर, सरस तथा विषयानुकूल रचे हैं आ० अशोक कुमार रक्ताले जी, बहुत बहुत बधाई प्रस्तुत हैI 

आदरणीय प्रधान सम्पादक जी सादर प्रणाम, प्रस्तुत दोहे आपको विषयानुकूल लगे मेरी प्रस्तुति सफल हुई . बहुत-बहुत आभार. सादर.

आदरणीय अशोक रक्ताले जी प्रदत्त विषय पर सुन्दर एवं सार्थक दोहों का सृजन हुआ है सादर बधाई निवेदित है 

आदरणीय भाई सत्यनारायण सिंह जी सादर, आपको दोहे प्रदत्त विषय पर सार्थक लगे, मेरी प्रस्तुति सार्थक हुई. सादर आभार.

आदरणीय अशोक भाईजी

सुंदर सार्थक दोहे, हार्दिक बधाई

इसके होते हैं विरल, बहुत विरल सब पक्ष || ...!!??

तीसरा दोहा वाइड बॉल की तरह मेरी पहुँच और समझ से बाहर हो गई, ऐसी गेंद से विकेट कीपर  भी परेशान हो जाएगा, फुर्सत हो तो अवश्य समझाने की कृपा करें।

सादर

आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर नमस्कार, आपको प्रस्तुत दोहे सुन्दर और सार्थक लगे. मेरा रचनाकर्म मान पा गया. सादर आभार. आपने जिस दोहे का जिक्र किया है. उसमें कहा गया है. अपने दिल में लालच का कक्ष या घर न बनाए यह आपको क्षणिक सुख दे सकता है किन्तु लम्बे समय तक नहीं. क्योंकि लालच एक बुराई है और बुराई या लालच के कक्ष की दीवारें कमजोर  होती हैं. चूंकि दीवार का भाव है इसलिए कमजोर को पतली होने से इंगित किया है. मुझे लगता है मैं अपनी बात स्पष्ट कर सका हूँ. सादर.

वाहहहह आ0 अशोक कुमार रक्ताले जी प्रदत्त विषय पर बहुत सुंदर दोहे। हृदय से बधाई प्रेषित है।

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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