For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-64

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 64 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह उस्ताद शायर जनाब "मंगल नसीम" साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

 
"पाले हुए पंछी के, पर अपने नहीं होते"

221 1222 221 1222

मफ़ऊलु मुफाईलुन मफ़ऊलु मुफाईलुन 

(बह्र: बहरे हज़ज़ मुसम्मन अखरब)
रदीफ़ :- अपने नहीं होते 
काफिया :- अर (गर, घर, पर, दर आदि)
विशेष: इस बहर में ऐब-ए- शिकस्ते नारवा होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है इसलिए इस तरफ विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है| पहले दो रुक्नों के बाद एक अंतराल आता है वहां पर हमें ऐसे लफ्ज़ नहीं रखने हैं जो अगले रुक्न तक चले जाएँ जिससे लय में अटकाव की स्थिति उत्पन्न हो | यहाँ तीन या उससे ज्यादा हर्फी  काफियों से भी यह ऐब पैदा हो रहा है इसलिए केवल दो हर्फी काफिये ही इस्तेमाल में लाये जा सकते हैं |

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 23 अक्टूबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 24 अक्टूबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 23 अक्टूबर दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 12540

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

जनाब Majaz Sultanpuriसाहब, आदाब, बहुत असरदार ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है। बहुत बहुत मुबारकबाद। इन अशआर के लिए दिली दाद कुबूल फरमाईयेगा--
नाकाम हुई होतीं, सब साज़िशें दुश्मन की
सूली पे चढ़ाने को, गर अपने नहीं होते
जिस्मों का तआल्लुक है, अरवाह से कुछ ऐसा
जैसे कि किराए के, घर अपने नहीं होते
सैय्याद ने क़ैंची से, फिर इनको कतर डाला
" पाले हुए पंछी के, पर अपने नहीं होते"
हमने ही बनाया है, डरपोक इन्हें है वरना
सहमे हुए बच्चों में, डर अपने नहीं होते

आदरणीय मजाज साहब , बेमिसाल गज़ल हुई है , गिरह भी खूब जम के लगाई है , दिली मुबारकबाद कुबूल करें ॥

ये सच है हिफाज़त में गर अपने नहीं होते 
दिन रात सुलगते ये घर अपने नहीं होते 

टकरा के कफस में ही उनको है बिखर जाना
"पाले हुए पंछी के, पर अपने नहीं होते"

झुक जाना बहुत आसां जो कहते हैं वो सुन लें 
जो खुद को झुका लें वो सर अपने नहीं होते

हम तुझपे ग़ज़ल कह कर तुझको ही सुनाते, गर 
अशआर ये अश्कों से तर अपने नहीं होते 

अब शेर वही मुझको अच्छे बड़े लगते हैं 
अपने से जो लगते हैं पर अपने नहीं होते

इक कैद परिंदे ने जो मुझसे कहा था सुन 
ज़िन्दां की दीवारों में दर अपने नहीं होते 

मस्नूई ये चेहरे हैं मस्नूई है चश्मे नम
जो दिखते हैं आँखों में डर अपने नहीं होते

मौलिक व अप्रकाशित

आदरणीय राणा सर शानदार ग़ज़ल कही है आपने .... दाद कुबूल फरमाएं .... शेर दर शेर वापिस आता हूँ. सादर 

आदरणीय राणा सर अच्छी ग़ज़ल पर बधाइयाँ
जनाब राणा प्रताप सिंह जी,आदाब,पहली बार आपकी ग़ज़ल से रूबरू हुवा हूँ,वाह वाह वाह,बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें।

मतले से मकते तक बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० राणा  जी ,दिल से दाद कुबूलें 

हम तुझपे ग़ज़ल कह कर तुझको ही सुनाते, गर 
अशआर ये अश्कों से तर अपने नहीं होते ---क्या बात ...बहुत सुन्दर 

इक कैद परिंदे ने जो मुझसे कहा था सुन 
ज़िन्दां की दीवारों में दर अपने नहीं होते ---लाजबाब 

गिरह भी शानदार हुई 

बहुत बहुत बधाई आयोजन में आपकी ग़ज़ल देखकर बहुत अच्छा लगा जैसे किसी टीम लीडर के साथ चलने पर होंसला बढ़ता है |

बहुत खूब सर
बेहतरीन ग़ज़ल
मैं आज सोच ही रहा था कि एक शेर मंच संचालक के लिए भी कह दूँ
जिसमे ये हो के आप इतने कठिन मिसरे देते है एक ग़ज़ल आप भी कहे
इस बीच ही आपकी ग़ज़ल आ गई
बहुत मुबारक
पर
मुझे मतले में ये अलग लग रहा है पता नहीं क्यों
मार्गदर्शन निवेदित है
ये का घर के साथ जुड़ाव शायद रवानी कम कर रहा है
कृपिया मार्गदर्शन करें
सादर
हर एक शेर उम्दा। लाजवाब गिरह। बेहतरीन ग़ज़ल।
दिल से ढेरों दाद व मुबारकबाद आपके लिए आदरणीय राणा साहब। वाह वआह वाह!!!

आदरणीय राणा सर , बहुत दिनों बाद आपकी ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है. आपने शानदार ग़ज़ल कही है .... शेर दर शेर दाद हाज़िर है-

ये सच है हिफाज़त में गर अपने नहीं होते 
दिन रात सुलगते ये घर अपने नहीं होते .................. शानदार मतला हुआ है 

टकरा के कफस में ही उनको है बिखर जाना
"पाले हुए पंछी के, पर अपने नहीं होते"................... बढ़िया गिरह 

झुक जाना बहुत आसां जो कहते हैं वो सुन लें 
जो खुद को झुका लें वो सर अपने नहीं होते............ कमाल का अंदाज़े-बयां ... वाह वाह 

हम तुझपे ग़ज़ल कह कर तुझको ही सुनाते, गर 
अशआर ये अश्कों से तर अपने नहीं होते .................... वाह वाह क्या खूब कहा है !

अब शेर वही मुझको अच्छे बड़े लगते हैं 
अपने से जो लगते हैं पर अपने नहीं होते...................... हासिल-ए-ग़ज़ल शेर ..... वाकई वही शेर सर्वश्रेष्ट है 

इक कैद परिंदे ने जो मुझसे कहा था सुन 
ज़िन्दां की दीवारों में दर अपने नहीं होते ................ वाह वाह वाह बेहतरीन शेर 

मस्नूई ये चेहरे हैं मस्नूई है चश्मे नम
जो दिखते हैं आँखों में डर अपने नहीं होते.............. डर काफिया पर आयोजन में अब तक का  बेहतरीन शेर 

इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर-दर-शेर दाद और मुबारकबाद कुबूल फरमाएं
सादर

आ० भाई राणा जी इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई l

ये सच है हिफाज़त में गर अपने नहीं होते
दिन रात सुलगते ये घर अपने नहीं होते ... बेहतरीन और सच्चा मतला

टकरा के कफस में ही उनको है बिखर जाना
"पाले हुए पंछी के, पर अपने नहीं होते"... शानदार गिरह का शेर ..कामयाब

झुक जाना बहुत आसां जो कहते हैं वो सुन लें
जो खुद को झुका लें वो सर अपने नहीं होते..... क्या बेहतरीन जज़्बा है शेर में... उम्दा

हम तुझपे ग़ज़ल कह कर तुझको ही सुनाते, गर
अशआर ये अश्कों से तर अपने नहीं होते ... बहुत ही प्यारा और दिलकश अंदाज़ .. ग़ज़ल का शेर

अब शेर वही मुझको अच्छे बड़े लगते हैं
अपने से जो लगते हैं पर अपने नहीं होते... ये एक अच्छे शाइर की पहचान है और दिल वाले शाइर की भी :)

इक कैद परिंदे ने जो मुझसे कहा था सुन
ज़िन्दां की दीवारों में दर अपने नहीं होते ... वाह्ह्ह्ह्ह... हक़ीक़ी शेर हुआ है..

मस्नूई ये चेहरे हैं मस्नूई है चश्मे नम
जो दिखते हैं आँखों में डर अपने नहीं होते.. आय हाय... क्या कहने... शानदार


वाह्ह्ह वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह ... अव्वल ता आखिर एक एक शेर बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ में सलीके से कहा गया है... शानदार और उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत सी दिली मुबारकबादें पेश करता हूँ जनाब .. क़ुबूल फरमाइए..

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"हा हा हा.. कमाल-कमाल कर जवाब दिये हैं आप, आदरणीय नीलेश भाई.  //व्यावहारिक रूप में तो चाँद…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तमन्नाओं को फिर रोका गया है
"धन्यवाद आ. रवि जी ..बस दो -ढाई साल का विलम्ब रहा आप की टिप्पणी तक आने में .क्षमा सहित..आभार "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"आ. अजय जी इस बहर में लय में अटकाव (चाहे वो शब्दों के संयोजन के कारण हो) खल जाता है.जब टूट चुका…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. सौरभ सर .ग़ज़ल तक आने और उत्साहवर्धन करने का आभार ...//जैसे, समुन्दर को लेकर छोटी-मोटी जगह…"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।  अब हम पर तो पोस्ट…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service