For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - 51

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 51 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह मशहूर शायर जनाब अब्दुल हामिद 'अदम' मरहूम की एक बहुत ही मकबूल ग़ज़ल से लिया गया है| पेश है मिसरा-ए-तरह

 

"साहिल के आस पास ही तूफ़ान बन गए "

221 2121 1221 212

मफऊलु फाइलातु मफाईलु  फाइलुन  

(बह्रे मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ)

रदीफ़ :- बन गए 
काफिया :- आन (तूफ़ान, पहचान, सामान, नादान आदि )

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 सितम्बर दिन सोमवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 23 सितम्बर दिन मंगलवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है | सदस्य गण ध्यान रखें कि संशोधन एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार ।

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 22 सितम्बर दिन सोमवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 6496

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

मासूम बच्चे घर में डरे सहमे बैठे हैं,

रिश्ते हमारे अपनों के हैवान बन गये

उम्मीद के करीब हवा तेज हो गई

साहिल के आस-पास ही तूफान बन गये..वाह बधाई आपको आदरणीय सूबे जी 

महिमा श्री , जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

आपकी ओर से बधाई स्वीकार है।

मैं धन्यवादी हूँ

 सूबे जी, सभी अशआर बहुत ही अच्छे हुए ,बधाई हो 

मोहन बेगोवाल, जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

आदरणीय सूबे सिंह जी इस ग़ज़ल के लिये आपको बहुत बहुत बधाई

बधाई स्वीकार हैशिज्जू शकूर, जी आपकी मेहरबानियाँ बहुत बहुत शुक्रिया।

बहुत बहुत बधाई हो आदरणीय पूरी ग़ज़ल और खासकर गिरह के शेर के लिए....

भुवन निस्तेज, जी

                             आदरणीय आपका बहुत बहुत धन्यवादी हूँ।


हर एक ऐब छोड़ के सुबहान बन गए
हम बाख़ुलूस इश्क़ के दौरान बन गए

महमान खुद को मान लिया इस ज़मीं पे जब
ये जीस्त के मसाइल आसान बन गए

वुसअत हमें मिली न गुलिस्तान की तरह
तो चार गुल सहेज के गुलदान बन गए

क्या खूब होगी सोचिये उस तिफ़्ल की अदा
रसखान जिसपे लिख रस की खान बन गए

मजदूरों की थकान है बुनियाद में निहाँ
यूँ ही नहीं मकान आलीशान बन गए

थे जीस्त में अज़ाब अज़ल शुक्रिया तेरा
दो गज़ की सल्तनत मिली सुलतान बन गए

गहराइयाँ न मन की किसी से कभी नपी
हर शै की नाप-तोल के मीजान बन गए

वो खार बस उठा रहे हैं छोड़ के गुलाब
जो छोड़ के ईमान बेईमान बन गए

जब से यहाँ से रुखसत वो आशना हुआ
दिल के नगर उजड़ के बियाबान बन गए

धरती पे वो खुदा हमें लाया है किसलिए
ये बात सोच सोच के इंसान बन गए

कश्ती निकाल लाये तलातुम से हम मगर
"साहिल के आस पास ही तूफ़ान बन गए "
--------------------------------------------------------------------

मौलिक एवँ अप्रकाशित

आदरणीय गजेन्द्र भाई , बहुत खूब सूरत ग़ज़ल कही है , सभी आशआर लाजवाब हैं | दिली मुबारकबाद स्वीकार करें |

कुछ मिसरे बहर से भटक गए हैं , इन्हें देख लीजिएगा |

ये जीस्त के मसाइल आसान बन गए

रसखान जिसपे लिख रस की खान बन गए

यूँ ही नहीं मकान आलीशान बन गए

जो छोड़ के ईमान बेईमान बन गए

जब से यहाँ से रुखसत वो आशना हुआ

Aadarnie Gajendra Shrotriya ji ek acchi gazal ke lie bahut bahut badhaiyan.

मजदूरों की थकान है बुनियाद में निहाँ
यूँ ही नहीं मकान आलीशान बन गए......................wwwwaaaahhhh esa such jis pr samanyata log gaur nahi karte.

धरती पे वो खुदा हमें लाया है किसलिए
ये बात सोच सोच के इंसान बन गए..........     bahut khoob

आदरणीय गजेन्द्र भाई , बहुत खूब सूरत ग़ज़ल कही है . हार्दिक बधाई स्वीकारें .

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-98 (विषय: अवसर)
"स्वागतम"
53 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मोल रोटी का उसी को - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आभार। त्रुटिपूर्ण…"
2 hours ago
Dr. Ashok Goyal posted a blog post

ग़ज़ल :-

नए साँचे में ढाला जा रहा है । तुझे मुहरा बनाया जा रहा है ।अभी सदक़ा उतारा जा रहा है । हमें बकरा…See More
6 hours ago
Dr. Ashok Goyal updated their profile
6 hours ago
Dr. Ashok Goyal posted a photo
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मोल रोटी का उसी को - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ लक्ष्मण जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। मतले के ऊला को यूं कर लें अब न काली रातों में ही...... दूसरे शेर…"
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की
"धन्यवाद आ. रचना जी"
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी"
11 hours ago
Rachna Bhatia commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की
"आदरणीय नीलेश नूर जी नमस्कार। बेहतरीन ग़ज़ल हुई है।बधाई स्वीकार करें।"
11 hours ago
Rachna Bhatia commented on Rachna Bhatia's blog post ग़ज़ल - मुझे ग़ैरों में शामिल कर चुका है
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी नमस्कार। भाई हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

मोल रोटी का उसी को - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२/२१२ * अब न काली रातों में ही चूमती फिरती है लब भोर में भी यह  उदासी  चूमती  फिरती है…See More
13 hours ago
Chetan Prakash posted a blog post

है ज़हर आज हवाओं में, दिल दहलते हैं

1212 1122 1212 22है ज़हर आज हवाओं में, दिल दहलते हैं ये मुनाफ़िकों की है बस्ती कि वो टहलते हैंके…See More
17 hours ago

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service