आदरणीय साथिओ,
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बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब
आदरणीय विनय कुमार जी, सवेंदनाओं से परिपूर्ण बहुत शानदार लघुकथा बनी है। पाठक पढ़ते हुए बिल्कुल कथा में खो ही जाता है। इस लघुकथा के लिए मेरी तरफ से विशेष बधाई स्वीकार करें।
बहुत बहुत आभार आ विनोद खनगवाल जी
विषय से पूर्णरूपेण न्याय करती इस साकारात्मक कथा के लिए आपको असीम शुभकामनाएं। यथार्थ के नाम पर आवश्यक नहीं है कि नाकारात्मक ही लिखा जाए। कथा जिस प्रवाह, सयंमता व सहजता से अपने अंत की ओर बढ़ रही है वहां इसका साकारात्मक अंत जबरन नहीं बल्िक सहज लगता है। सच पूछे तो मुझेे लगता है कि ऐसी दिशापरक लघुकथाएं लिखने की ओर लघुकथाकारों को ध्यान देना चाहिए। सादर
बहुत बहुत आभार आ रवि प्रभाकर जी, आपकी टिपण्णी से असीम संतुष्टि हुई
रचना ने भारतीय परिवार की विशेषता को बहुत अच्छे से उकेरा है आदणीय विनय जी। मेरी तरफ से हार्दिक बधाई प्रेषित है।
बहुत बहुत आभार आ महेंद्र कुमार जी
वाह वाह विनय जी बहुत सार्थक कथ्य उभारा है आपने अंतिम पंक्ति काफ़ी कुछ कह गई. बधाई आपको
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