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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।

इस बार का मिसरा जनाब 'अहमद फ़राज़' साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

मैंने जिस हाथ को चूमा वही ख़ंजर निकला'

फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन/फ़इलुन

2122 1122 1122 22/112

बह्र-ए-रमल मुसम्मन सालिम मख़बून महज़ूफ़

रदीफ़ --निकला

क़ाफ़िया:-(अर की तुक)
समंदर,पत्थर,बाहर,अंदर,दिलबर आदि...

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 24 मई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 मई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

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मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीय यूफ़ोनिक अमित जी नमस्कार। ग़ज़ल तक आने तथा इस्लाह देने के लिए हार्दिक आभार ।आवश्यक सुधार करने के बाद दिखाती हूँ। सादर। 

आदरणीया रचना भाटिया जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद। 

आसमाँ छूने की जल्दी में था हर शख्स मगर 

जब भी निकला वो क़दम रख के ज़मीं पर निकला

वाह बहुत खूब।

आदरणीया रचना जी नमस्कार

अच्छी तरही ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये

अमित जी की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर है जिससे ग़ज़ल और भी निखर जाएगी

सादर

आ. रचना जी सादर नमस्कार । ग़ज़ल के प्रयास हेतु बधाई।

आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी, हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक आभार। 

बधाई स्वीकार करें आ ग़ज़ल अच्छी हुई इस्लाह भी अच्छी हुई

आदरणीय रचना भटिया जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।

आदरणीया रचना जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें। 

2122 1122 1122 22/112


घर से मेले के लिए कौन यूँ सजकर निकला
अपनी चुन्नी में लिए सैकड़ों अख़्तर निकला 1

सादगी से जो बयाँ करता था दिल की बातें
हमको मालूम नहीं था वो सुख़नवर निकला 2

मुफ़्त में दे गए थे गैस का चूल्हा लेकिन
कौन भरवाए बहुत मँहगा सिलेंडर निकला 3

कल अकेले में तुझे सोचने जो बैठे हम
आँख से आँसुओं का एक समंदर निकला 4

दिल के तहखाने में झाँका हुए हैरान बहुत
मेरे दिल में तेरी यादों का ही खण्डर निकला 5

कल जहाँ पैसे जमा करके चले आये हम
देखने फिर जो गए बन्द वो दफ़्तर निकला 6

हम महब्बत से किया करते थे बातें जिससे
बेवफ़ा था वो "रिया" एक सितमगर निकला 7

गिरह-


मुझको अहबाब मेरे देते रहे हैं धोका
'मैंने जिस हाथ को चूमा वही ख़ंजर निकला'


"मौलिक व अप्रकाशित"

आ. रिचा जी, अचछी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

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