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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-156

विषय : "बचपन-जवानी-बुढापा"

आयोजन अवधि- 14 अक्टूबर 2023, दिन शनिवार से 15 अक्टूबर 2023, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 14 अक्टूबर 2023, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

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ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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बचपन-जवानी-बुढ़ापा

उषा अवस्थी

बचपन-

खाया, खेला, सो गए; सुखी, मस्त, उन्मुक्त

बचपन बीता फ़िक्र बिन,जंजालों से मुक्त

जवानी-

नव उमंग,अठखेलियाँ,मन भर रही उमंग

आशाओं की डोर बाँध कर;उड़ चली पत॔ग

बुढ़ापा-

घुटनों की तक़लीफ़ से,बीती रात कराह

छड़ी सहारे , मुस्करा कर ,करते निर्वाह

मौलिक एवं अप्रकाशित

आ. ऊषा जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।

हार्दिक बधाई आदरणीय ऊषा जी, लाजवाब प्रस्तुति ।

आदरणीया उषा जी, आपने मानवीय वयस-क्रम के तीनों प्रारूपों पर दोहा विधान के अनुसार खूब कलम चलायी है। भाव निखर कर संप्रेषित हुये हैं। इस हेतु विपुल बधाई तो बनती ही है। अलबत्ता, दोहा विधान को यदि आप देखें और तदनुरूप प्रयास करें तो अभिव्यक्ति सरस ही नहीं, वैधानिक भी हो जाएगी। 

मैं आपके साथ इस क्रम में फुटकर अभ्यास करता हूँ -

 

खाया, खेला, सो गए; सुखी, मस्त, उन्मुक्त

बचपन बीता फ़िक्र बिन,जंजालों से मुक्त...

इस दोहा में पदांत अर्थात तुक की समस्या है। तुकांत के नियमों के अनुसार तुकांत के पूर्व समान मांत्रिक वर्ण का होना आवश्यक है। 

 

नव उमंग,अठखेलियाँ, मन में लिये उमंग

आशाओं की डोर धर, उड़ती रही पतंग

 

घुटनों की तक़लीफ़ से, बीती रात कराह

छड़ी सहारे जिंदगी, करती है निर्वाह 

 

यह तो एक अस्फुट प्रयास रहा। आप इन अभिव्यक्तियों को और सशक्त आयाम दे सकती हैं। 

शुभ-शुभ

दोहावली

जन्म हुआ हित काटने, पूर्व जन्म के पाप ।
पूर्व जन्म का... कर्ज है, जिसे उतारें आप ।।

ना जाने कब से हुआ, जीवन.. का आरम्भ ।
धार बँधी है नाव यह, मुड़ती नाविक दम्भ ।।

नाविक मानव जात है, चंचल सदा स्वभाव ।
मन चालित इस नाव से, कैसे हो,, सद्भाव ।।

तीन दशा सरपट बहे, बचपन यौवन मौत ।
बचपन तो निर्दोष है, यौवन ..इसकी सौत ।।

पल पल जीवन जीत है, पल पल.. होती हार ।
जिजीविषा ही जीव की, मुखर रही व्यवहार ।।

मानव के सदकर्म ही, लिखता है इतिहास ।
बुद्धिमान का यश हुआ, मूर्ख का परिहास ।।

यौवन ठगता है अगर, बुढ़ापा दृष्टि-दान ।
सम्बन्धी भी आपके, करते है अवमान ।।

जन्म अकारथ लगे, वृद्धावस्था.......... नाश ।
उद्घाटन सच का हुआ, पहुँचते मृत्यु पाश ।।

सच पूछो माया रही, जीवन.. सदा.. प्रधान ।
चाहा सच जब देखना, पड़ता है व्यवधान ।।

जरा बुढापा मृत्यु सब, जीवन के अध्याय ।
जो आया वो जायगा, अंत सदा परिहार्य ।।

मौलिक व अप्रकाशित

वाह। 

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आप के सार्थक अभ्यास हेतु हार्दिक बधाइयाँ। 

बहुत खूब, बहुत खूब। 

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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