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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-150

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 150 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | 

इस बार का मिसरा जनाब डॉ. बशीर बद्र साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

'अजब माँ हूँ कोई बच्चा मेरा ज़िंदा नहीं रहता'

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम

रदीफ़ --नहीं रहता

क़ाफ़िया:-अलिफ़ का (आ स्वर)बच्चा,तन्हा,रिश्ता,अपना,दरया आदि ।

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 28 दिसंबर दिन बुधवार को हो जाएगी और दिनांक 29 दिसंबर दिन गुरुवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

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मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीय अनिल कुमार सिंह जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, ज़र्रा नवाज़ी और त्रुटि पर ध्यान दिलाने के लिए आपका ममनून हूँ, आपने सही फ़रमाया इस बह्र में एक साकिन की छूट लेना ठीक नहीं है, इसलिए 'मजरूह' लफ़्ज़ की जगह 'ज़ख़्मी' पढ़ा जाए। दाद-ओ-तहसीन से नवाज़ने के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया।

 जी शुक्रिया . टायपिंग एरर  स्किन को   कृपया 'साकिन' एवं महर को बहर पढ़ने की ज़हमत करें 

आदरणीय अमीर जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें। 

५ भाव स्पष्ट नहीं हो पाया है। ग़म का साया कहाँ नहीं रहता? सानी का विन्यास भी नज़र ए सानी चाहता है। सुझाव... 

"सितारों से कहूँ ग़म का वहाँ साया नहीं रहता"

७ ऊला में "सूखा" शब्द अपनी वजाहत पूरी तरह नहीं कर पा रहा है। सुझाव... 

"निकल कर अपने घर से मैं फिरा करता हूँ यूँ जैसे"

आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और इस्लाह के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया।

//५ भाव स्पष्ट नहीं हो पाया है। ग़म का साया कहाँ नहीं रहता? सानी का विन्यास भी नज़र ए सानी चाहता है। सुझाव... 

"सितारों से कहूँ ग़म का वहाँ साया नहीं रहता"//

मुहतरम 'सितारों से कहूँगा ग़म, वहाँ साया नहीं रहता' इस मिसरे में 'ग़म' के बाद (,) थोड़ा ठहर कर पढ़ने से भाव भी स्पष्ट होता है और वाक्य-विन्यास भी दुरुस्त मालूम होता है।

'शजर से टूट कर सूखा, उड़ा फिरता हूँ जैसे मैं' 

यहाँ भी 'सूखा' लफ़्ज़ के बाद (,) थोड़ा ठहर जाएँ... वैसे कई बार पूरा शे'र पढ़ने पर ही शब्द अपनी वज़ाहत कर पाता है। सादर। 

जनाब अमीर जी , बेहद उम्दा ग़ज़ल हुई है।

3,4 शे'र काफ़ी पसंद आए। सादर

जनाब ज़ैफ़ साहिब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।

मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर साहिब अच्छी ग़ज़ल हुई है, मुबारकबाद आपको

आदरणीय शिज्जु 'शकूर' जी ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी तह-ए-दिल से शुक्रिया।

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।

आदरणीय दण्डपाणि नाहक़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, ज़र्रा नवाज़ी और भरपूर दाद-ओ-तहसीन से नवाज़ने के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया। 

आदरणीय अमीरुद्दीन जी नमस्कार

बहुत ही ख़ूबब हुई ग़ज़ल मतला, मक़्ता गिरह सभी अशआर ख़ूब कहे आपने बधाई स्वीकार कीजिये

सादर

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