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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
प्रस्तुत है.....
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127
विषय : विषय मुक्त
अवधि : 30-10-2025 से 31-10-2025
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, 10-15 शब्द की टिप्पणी को 3-4 पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सकें है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

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Replies to This Discussion

आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक लघुकथाओं का।  हम भी हैं कोशिश में.. 

असमंजस (लघुकथा):
हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव के बाद पारिवारिक दबाव में  'ईमानदारी' ने 'असत्य' से अरेंज्ड मैरिज कर ली। दोनों एक-दूसरे के विशाल व्यक्तित्व और अद्भुत अनुभवों के कारण जिज्ञासावश एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होते चले गए। एक-दूसरे को ख़ुश रखने की कोशिश भी करते थे।
आज  नवेली दुल्हन की तरह सज-धजकर असत्य का हाथ थामे ईमानदारी एक हिट फ़िल्म देखकर लौट रहे थे। बतिया रहे थे।
"मुझे पता होता कि यह फ़िल्म राजनीति पर है, तो मैं कतई नहीं आती इसे देखने!" ईमानदारी ने टेढ़ा सा मुॅंह करके असत्य से कहा।
"तो क्या तुम कोई धार्मिक फ़िल्म देखना चाहती थीं? ... मुझे तो यही फ़िल्म बेहतरीन लगी। आज की हक़ीक़त है इसमें झूठ और बेईमानी का ही डंका बजता है!" असत्य ने सीना तान कर कहा।
" धर्म में भी तो राजनीति घुस जाती है। मुझे जैसी फ़िल्म चाहिए, वैसी बनती ही नहीं!" असत्य को घूरते हुए ईमानदारी ने कहा।
" बन भी नहीं सकती?" व्यंग्यात्मक भाव चेहरे पर बिखेरते हुए असत्य बोला।
"मुझमें और तुममें तो बन सकेगी न.... या नहीं?" निराशा की बिज़ली ऑंखों में तैराकर ईमानदारी बोल पड़ी।
"ज़माने की लहर में तुम मुझ में समा ही जाओगी, तो बनेगी और निभेगी भी!" असत्य ने ईमानदारी की हथेली दबाते हुए कहा। ईमानदारी की हथेली ढीली पड़ कर दबाव से मुक्त हो गई।
(मौलिक व अप्रकाशित)

आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ अमूर्त गुणों ईमानदारी और असत्य को मानवीय संबंधों के माध्यम से जीवंत किया है आपने। आज के संदर्भ में यह कथानक सत्य के साथ टूटे लिव-इन रिलेशनशिप के बाद ईमानदारी की असत्य से अरेंज्ड मैरिज, पारिवारिक और सामाजिक दबाव का प्रतीक है। दोनों के बीच आकर्षण जिज्ञासा और प्रयास से शुरू होता है, लेकिन अंततः उभरती असंगति अवश्यम्भावी है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर 

सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब।  प्रतिक्रिया, समीक्षा और चर्चा से यह गोष्ठी सार्थक हो जाती है और ऊर्जा से भरपूर होती रहती है।

आदरणीय उस्मानी जी

एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है। हार्दिक बधाई। अंत कुछ और प्रभावशाली हो सकता था।

आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।

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