आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय अजय गुप्ता जी।बेहतरीन लघुकथा। संदेश भी बहुत श्रेष्ठ है।यह सर्वथा ही उचित है कि घर की जिम्मेदारी पूर्ण करने के बाद ही अपने निजी शौक पूरे करना ही समझदारी है।लेकिन मेरी व्यक्तिगत सोच है कि यदि लघुकथा के अंत में आप अपने नायक फ़त्ते द्वारा इस पव्वे से सदैव के लिये पीछा छुड़ाने जैसा वाक्य कहलवा देते, तो शायद यह संदेश और प्रभावशाली हो जाता।इसके बावजूद आपकी लघुकथा उत्तम है।एक बात और कहना चाहता हूँ कि आपने लघुकथा के प्रारंभ में जो लिखा है "कल शाम की मुलाकत"।उसे "आज शाम की मुलाकात" लिखा जाय तो आप एक काल खंड दोष के विवाद से बच सकते हैं। विस्तार से तो गुणी जन ही स्पष्ट कर पायेंगे।
शुक्रिया आदरणीय तेजवीर जी
बहुत ही बढ़िया रचना कही है अजय गुप्ता जी। खास तौर पर अंतिम पंक्ति पढ़ते ही रचना का मर्म जैसे ही समझ में आता है, वह सराहनीय है। सादर बधाई स्वीकार करें, इस सृजन हेतु।
शुक्रिया चंद्रेश कुमार छतलानी साहब
जिंदगी में कायदे कानून का पालन जरुरी है चाहे वह जिस तरीके के हों. बढ़िया रचना लिखी है आपने विषय पर, बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए
शुक्रिया भाई विनय कुमार
बहुत उम्दा लघुकथा है बनी है भाई अजय गुप्ता जी, संवाद और रचना की प्रारम्भिक भूमिका //फत्ता और नफे दोनों रिक्शा चलाते हैं। अभी 10 दिन से दोनों की जान पहचान हुई है। और दोनों की ऐसी पटी कि रोज़ शाम को पव्वे का कार्यक्रम साथ ही होता है। कल शाम की मुलाकात: // इस रचना को अलग शैली देने का प्रयास कर रही है. हालांकि इसमें मुझे कालखंड जैसी कोई समस्या नजर नहीं आ रही है, जैसा कि भाई तेज वीर सिंह जी ने कहा. रचना के अंत में किया गया कटाक्ष // इधर नफ़े सोच रहा था कि ये 'पव्वा' किसे कह रहा है// यदि पात्र के मुख से ही कहलवाते तो शायद अधिक उत्तम होता. हार्दिक बधाई इस सुंदर रचना के लिए.
बहुत-बहुत आभार भाई वीरेंद्र वीर मेहता जी
आदरणीय वीर मेहता जी,आपकी राय मुझे स्वीकार है कि काल खंड दोष नहीं हो सकता।लेकिन यह प्रश्न अभी भी जीवित है कि इस वाक्य "कल शाम की मुलाकात" की इस लघुकथा मे क्या हैसियत है। क्या यह किसी पात्र द्वारा बोला गया। क्योंकि घटना एक दिन पुरानी है। यदि यह वाक्य पात्र द्वारा नहीं कहा गया। तो फिर यह लेखकीय प्रवेश है। जो कि लघुकथा में वर्जित है।कृपया मेरी जिज्ञासा शाँत करने की कृपा करें।आप जैसे वरिष्ठ गुणी जनों से ही कुछ सीखने और समझने की उम्मीद रखते हैं।सादर।
आदाब। बढ़िया रचना। टिप्पणियों पर ग़ौर फ़रमाइयेगा।
धन्यवाद आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी
परिवार से बढकर कोई शौक महत्त्वपूर्ण नही होना चाहिये सार्थक कथा के लिये बधाई।
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