For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता - कौओं के पितृ स्थान

कौए अब अपने पितृ स्थान के लिए
स्कूल के बच्चों के हिस्से में आई
अनुदान राशि को हड़प ले गये ।

और अपनी श्रद्धा प्रकट करने के लिए
राजनीति को यूँ अपनाया
कि विधायक, सरपंच मजबूर हैं
सरकारी सहायता को पितृों तक भेजने के लिए ।

अन्य पक्षियों को छोड़कर
केवल कौओं की वोटो की गिनती
के मायने जियादा हैं ।


शेर भी लाचार हैं
वे अब शिकार नहीं करते
वे शिकार हो जाते हैं ।
शेरों को हमेशा
कौओं ने सरकश में नचवाया ।

कबूतरों ने आँखें बंद कर ली हैं
बंदर और तोते सबकी नकल करना भूल कर
अब केवल कौओं की नकल करते हैं ।

कौओं के पेड़ों पर बैठे बैठे
नीम के पेड़
सफेदों में तब्दील हो गये
जामुन और आम
अपने फलों का स्वाद
बचाने में नाकाम हैं ।

दूब घास की जगह
कांग्रेस घास जबरदस्ती
से उगने लगी है
वह बिना बीज बोए उगती है ।

फ़सलें किसानों पर हँसते हुए कहती हैं
कब तक जिओगे?
बैंकों पर कौओं का कब्जा है
अब मरने के लिये पानी और दवाओं की जरूरत है
जीने के लिए नहीं ।

मौलिक व अप्रकाशित रचना 

Views: 526

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सूबे सिंह सुजान on December 3, 2018 at 9:21pm
सभी सुधी जनों का आभार
Comment by सूबे सिंह सुजान on November 27, 2018 at 6:46pm

सभी विशिष्ट जनों से आग्रह करना चाहता हूँ कि इस कविता की समीक्षा करने की कृपा करें । 

मैं इस कविता को देखना चाहता हूँ कि यह किन किन अर्थों में समझी जा रही है या सकती है ।

Comment by सूबे सिंह सुजान on November 27, 2018 at 6:44pm

लक्ष्मण धामी मुसाफिर साहब, 

आपकी आवश्यक टिप्पणी के लिए आभार ।

कविता की यदि आप समीक्षा कर सकें तो बहुत आभार होगा ।

मैं अपनी कविता को देखना चाहता हूँ कि यह किन किन अर्थों में समझी जा रही है या सकती है ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 27, 2018 at 4:25pm

आ. भाई सूबे सिंह जी, बहुत खूब तंज कसा है । हार्दिक बधाई ।

Comment by सूबे सिंह सुजान on November 27, 2018 at 4:00pm

समर कबीर साहब बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Samar kabeer on November 27, 2018 at 3:40pm

जनाब सूबे सिंह सुजान जी आदाब,उम्दा तंज़ करती उम्दा कविता,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
3 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service