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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग-1)

साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....

कृपया मुशायरे सम्बंधित अधिक जानकारी एवं मुशायरा भाग 2 में प्रवेश हेतु नीचे दी गयी लिंक क्लिक करें 

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2)

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आद० लक्ष्मण भैया इस सद प्रयास पर दिल से बधाई लीजिये जहाँ गुणीजनों ने इंगित किया निसंदेह आप दुरुस्त कर लेंगे किन्तु आपकी ये कोशिश सराहनीय है दिल से मुबारकबाद 

आ. राजेश दी, सादर अभिवादन । स्नेह और सुझाव के लिए आभार ।

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,आपका प्रयास सराहनीय है,इसके लिए बधाई स्वीकार करें ।

ओ बी ओ पर जमा गया है मुझे
पक्का शायर बना गया है मुझे।१।--अच्छा है ।


नभ  में  तारा  सा  उभार गया
बुलबुला कब कहा गया है मुझे।२।--इस शैर का ऊला यूँ कर लें:-

'नभ का तारा हूँ मैं तो ऐ भाई

बुलबुला क्यों कहा गया है मुझे'


क्या तुझे दी समर ने सीख न पूछ
सब्र करना  तो  आ  गया  है मुझे ।३।--इस शैर का ऊला यूँ करें:-

'क्या 'समर'ने तुझे दी सीख नई'

आईना तो  नहीं  हुआ  हूँ मगर
नस्ब फिर भी करा गया है मुझे।४।--इस शैर के सानी मिसरे में 'करा' की जगह 'किया' कर लें ।


लाख कोशिश उसी ने की है तभी
इल्म थोड़ा सा  आ  गया  है मुझे।५।--इस शैर का ऊला यूँ करें:-सानी में 'तो' की जगह "सा" करें ।

'लाई क़िस्मत जो तेरे दर पर तो'


नब्ज  मेरी  उसी के हाथ रही
तरबियत दे बचा गया है मुझे।६।--इस शैर का सानी यूँ करें:-

'तख़्त पर जो बिठा गया है मुझे'


रस्म हर इक निभा रहा हूँ यहाँ
हीन  थोड़े  कहा  गया  है मुझे।७।--इस शैर का सानी यूँ करें:-

'हीन फिर भी कहा गया है मुझे'

मुक्त मन से पढ़ा सबक वो सभी
शायरी नित सिखा गया है मुझे।८।--इस शैर का ऊला यूँ करें:-

'मुक्त मन से पढ़ा गया वो सबक़'


यत्न कर यश मिलेगा खूब कभी
राज  ये  भी  बता  गया  है मुझे।९।--इस शैर को यूँ करें:-

यत्न कर यश मिलेगा ख़ूब तुझे

राज़ ये वो बता गया है मुझे'

शख्सियत क्यों न उनके जैसी करूँ
ताज  उनका  जो भा  गया  है  मुझे।१०।--इस शैर का ऊला यूँ करें:-

'शख़्सियत उनके जैसी करना है'


ब्याज से बढ़ असल है यार जहाँ
दीन  रख  ये  बता  गया  है मुझे।११।--इस शैर को यूँ करें:-

'ब्याज से बढ के अस्ल होता है

दीन कोई बता गया है मुझे'

           और ये दुमछल्ले

सबसे परिवार में दुलार मिला
मान इतना दिला गया है मुझे ।१२।--इस शैर का ऊला यूँ करें:-और सानी में 'दिला' की जगह "दिया"करें

'सबका अहसान मंद हूँ भाई'


रोज  मैं-मैं  की  रट  से दूर हुआ
हमपे अब नाज आ गया है मुझे।१३।--इस शैर को यूँ करें:-

'रोज़ का ख़त्म हो गया झगड़ा

हर कोई आज पा गया है मुझे'

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति , स्नेह और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद । आपने बेशकीमती सुधार सुझाकर मार्ग प्रशस्त कर दिया है । इसके लिए आभारी हूँ । आपके सुझाव तक पहुँचने से पूर्व गुणींजनों की टिप्पणीयाँ पढ़ कुछ बदलाव का प्रयास किया था । इसपर भी आपका मशविरा चाहूँगा ... सादर

ओज अपना थमा  गया है मुझे
पल में  तारा  बना  गया है मुझे।१।
नत रहूँ क्यों बुतों के आगे फिर
बुतपरस्ती  भुला  गया है मुझे।२।
क्या कहूँ और गम की सुहबत में
सब्र  करना  तो आ  गया है मुझे ।३।
आज  धोका  दुबारा  देकर  यूँ
नस्ल अपनी दिखा गया है मुझे।४।
लाज  अपनी  अपने  हाथों  है
इल्म इतना तो आ गया है मुझे।५।
नम हैं आँखे  खुशी  के मारे यूँ
तख्त पर जो बिठा गया है मुझे।६।
रस्म हर इक निभाई  मैं ने जब
हीन क्योंकर कहा गया है मुझे।७।
यत्न तकदीर  को झुका देगा
राय अच्छी जता गया है मुझे।९।
रोज   देकर   सहारा   पीछे   से
हक में लड़ना सिखा गया है मुझे।१३।

लक्ष्मण भाई,अभी और समय चाहती है ग़ज़ल,विस्तृत टिप्पणी का समय नहीं है ।

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आदरणीय समर कबीर सर की विस्तृत टिप्पणी के बाद मुझे नहीं लगता कि कुछ कहना शेष रह गया है। इस अच्छी ग़ज़ल और इस, "ओपन बुक्स ऑन लाइन तरही मुशायरा शताब्दी समारोह", उम्दा व सार्थक प्रयास की दिल से बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।

आ. भाई महेंद्र जी, स्नेभिब्यक्ति के लिए आभार ।

आदरणीय लक्ष्मण जी, इस सदप्रयास के लिए हार्दिक बधाई

आ. भाई अजय जी, हार्दिक धन्यवाद ।

आ० भाई लक्ष्मण धामी जी, यह ग़ज़ल आपके क़द से मेल नहीं खा रही है. आगे आप ख़ुद ही समझदार है. बहरहाल इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक अभिनन्दन स्वीकार करें. 

ओ प न बु क् स आ न ला इ न त र ही मु शा य रा श ता ब् दी स मा रो ह 

वाह वाह 

आपको भी मुबारक़बाद 

आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब आपके इस सद्प्रयास को नमन करता हूँ, मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं|

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"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
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"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
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"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday

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