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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-36 (विषय: पराजित योद्धा)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-36 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. गोष्ठी के पिछले 35अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, यह वास्तव  में हर्ष का विषय हैI कठिन विषयों पर भी हमारे लघुकथाकारों ने अपनी उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कींI विद्वान् साथिओं ने रचनाओं के साथ साथ उन पर सार्थक चर्चा भी की जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन हुआI इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-36
विषय: "पराजित योद्धा" 
अवधि : 30-03-2018  से 31-03-2018 
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
5. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
6. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
7. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
8. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
9. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
10. गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI    
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

हृदय से आभारी हूँ आदरणीय तेज वीर सिंह जी. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया प्रतिभा मैम. हार्दिक आभार. सादर.

बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय महेन्द्र जी ,बहुत -बहुत बधाई आपको इस रचना के लिए ,सादर 

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया बरखा जी. हृदय से आभारी हूँ. सादर.

अंतिम जंग 

“इसकी आँखे छोटी थी,बीनाई भी कमजोर थी  फिर भी जमीं से फ़लक तक देख लेता था|

छड़ी लेकर चलता थाफिर भी घर, मुहल्ला, गाँव, शहरसे लेकर ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों को लांघता हुआसात समन्दर पार तक की खबर

ले आता था| सियासत के गलियारों में खूब उत्पात मचाया इसने|

सारी दुनिया इसकी इस छोटी सी कलम में समाई हुई थी| हर जंग यह योद्धा इसी हथियार से लड़ता था|

किन्तु आज जिंदगी की जंग हार गया |सब कुछ खामोश है|

देखो इसका अंगूठा और उँगलियाँ झुके हुए हैं एक दूसरे की तरफ, लगता है ये अपने जीवन की अंतिम लड़ाई

को भी लिख कर गया है इस फिजाँ में|

'हाँ' मैं पढ़ सकती हूँ क्योंकि में भी

उसी जंग का एक अदना सिपाही हूँ”

कहते-कहते भव्या ने दो फूल उनके चरणों में समर्पित किये|

पत्रकार  “धन्यवाद” कहकर  आगे बढ़ गया|    

-मौलिक एवं अप्रकाशित   

 

फाइनली हम सभी कलमाकारों/समर्पित पत्रकारों का दर्द इस विषयांतर्गत प्रतीकात्मक बेहतरीन सारगर्भित , उत्कृष्ट व सशक्त  सृजन में बाख़ूबी उभर कर गोष्ठी में चार चांद लगा ही गया। तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरमा राजेश कुमारी साहिबा। 

कुछ एक शब्दों के बीच स्पेस देने में चूक हो गई है।

शीर्षक बहुत ही गंभीर‌ व विचारोत्तेजक और चुनौतीपूर्ण है। 

हालांकि "अंतिम" न कहकर अब  हमें  "निर्णायक जंग" की बात सोचना है।

आद० शेख उस्मानी जी आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत आभारी हूँ .

अच्छी लघुकथा है आ० राजेश कुमारी जी. शायद आपने मोबाइल पर ही इसे लिखा जिस वजह से इसका फॉर्मेट किसी खुली कविता जैसा हो गया जिससे सम्प्रेष्ण प्रभावित हुआ. बहरहाल हार्दिक बधाई स्वीकार करें.  

हम भी मोबाइल पर ही लिखते और उसी में सेव करते हैं। जो साथी किसी कारण ऐसा नहीं कर पाते, वे चाहकर भी गोष्ठी में सक्रीय भागीदारी नहीं निभा पाते। मोबाइल में अतिरिक्त समय भी लग जाता है टिप्पणियों में।

मोबाइल से टिप्पणी तो बिलकुल नहीं हो पाती उस्मानी जी .आयोजन की कुल तीन रचनाएँ ही खुल पाती हैं 

नहीं। मैं तो यह सब औसत एंड्रायड स्मार्टफोन  पर ही कर रहा हूं । अधिक रचनायें देखने के लिए मीनू में ' डेस्क टॉप मोड' पर क्लिक करना चाहिए। सादर।

आद० योगराज जी,आपको लघु कथा पसंद आई दिल से बहुत शुक्रगुजार हूँ .आपने सही पहचाना मोबाइल से ही ली है ये लघु कथा .

सच कहूँ तो अभी हाल ही में कवि केदारनाथ सिंह जी के लिए ये  कविता लिखी थी जो  मोबाइल में सेव थी कहीं पोस्ट नहीं कर पाई थी | लघु कथा का विषय पढ़ते ही मेरे दिमाग में इसी कविता का विषय ध्यान आया कि एक कवि से बड़ा योद्धा कौन हो सकता है .तभी इसको एक गद्य के रूप में ढाल कर लघु कथा का रूप दे दिया आपकी पारखी नजर को सलाम आप से कोई बात नहीं छुप सकती   |:-))))

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