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बोल देती है बेज़ुबानी भी

2122 1212 22 

बोल देती है बेज़ुबानी भी,

ख़ामशी के कई म'आनी भी,

वो मरासिम बढ़ा के छोड़ गया,

दर्द होता है जाविदानी भी

वक़्त - बेवक़्त ही निकल आये

है अजब आँख का ये पानी भी,

वो सबब है मेरी उदासी का,

उससे है दोस्ती पुरानी भी,

जन्म देकर क़ज़ा तलक लायी,

ज़िन्दगी तेरी मेज़बानी भी,

आज फिर क़ैस को ही मरना पड़ा,

हो गयी ख़त्म ये कहानी भी। .. ...

मौलिक व् अप्रकाशित

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2018 at 10:31pm

बहुत खूब

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 18, 2018 at 10:54pm

बहुतखूब आदरणीया अनीता जी खूबसूरत मापनी पे बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही..सादर

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on February 17, 2018 at 6:17am

आ० अनीता जी  कहने के लिये बधाई।

Comment by Mohammed Arif on February 16, 2018 at 5:37pm

आदरणीया अनीता मौर्य जी आदाब,

                       ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

कृपया ध्यान दे...

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