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तेरे नज़दीक ही हर वक़्त ....”संतोष”

 

फ़ाइलातुन फ़ईलातुन फ़ईलातुन फ़ेलुन

तेरे नज़दीक ही हर वक़्त भटकता क्यों हूँ
तू बता फूल के जैसा मैं महकता क्यों हूँ

मैं न रातों का हूँ जुगनू न कोई तारा पर
उसकी आँखों में मगर फिर भी चमकता क्यों हूँ

इस पहेली का कोई हल तो बताओ यारो
हिज्र की रातों में आतिश सा दहकता क्यों हूँ

घर बनाया है तेरे दिल में उसी दिन से सनम
सारी दुनिया की निगाहों में खटकता क्यों हूँ

हासिदों को बड़ी तश्वीश है इसकी जानम
बनके धड़कन मैं तेरे दिल में धड़कता क्यों हूँ

जब तुझे मुझ से महब्बत नहीं ये बतला दे
क़तरा क़तरा तेरी आँखों से टपकता क्यों हूँ

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

#संतोष_खिरवड़कर

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Comment by santosh khirwadkar on January 24, 2018 at 3:32pm

धन्यवाद आदरणीय “मुसाफ़िर” जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 24, 2018 at 3:28pm

आ. भाई संतोष जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

दछसरे शेर में पर तथा मगर का प्रयोग एक ही अर्थ के लिए प्रयोग होने सज अटपटा लग रहा है । गौर कीजिएगा ।

Comment by santosh khirwadkar on January 22, 2018 at 10:26pm

धन्यवाद एवं आभार आदरणीय विश्वकर्मा साहब!!

Comment by santosh khirwadkar on January 22, 2018 at 10:25pm

शुक्रिया आदरणीय तस्दीक़ साहब !!!

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on January 22, 2018 at 8:09pm

आदरणीय संतोष खिरवड़कर साहब खूबसूरत ग़ज़ल कहने के लिये बधाई।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 22, 2018 at 5:46pm

जनाब संतोष साहिब , सुन्दर ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

शेर4 में मिसरों में रब्त क़ायम नहीं हो सका , उला मिसरा यूँ करसकते हैं 

यह बता मुझको सनम दिल दिया तूने जब से ।

Comment by santosh khirwadkar on January 21, 2018 at 10:41pm

आदरणीय आरिफ़ साहब तहेदिल से शुक्रिया!!!

Comment by Mohammed Arif on January 21, 2018 at 7:30am

आदरणीय संतोष जी आदाब,

                        बहुत ही बढ़िया अश'आर । हर शे'र ज़ोरदार । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

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