ग़ज़ल
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(फअल-फऊलन-फेलुन-फेलुन )
सिर्फ़ वो महफ़िल से निकला था |
कब वो मेरे दिल से निकला था |
दिलबर के दीदार का मंज़र
चश्म से मुश्किल से निकला था |
रास्ता मेरी मंज़िल का भी
उनकी ही मंज़िल से निकला था |
जिसने बचाया बद नज़रों से
वो जादू तिल से निकला था |
हरफे निदा जो बना अदावत
ज़ह्ने मुक़ाबिल से निकला था |
आ ही गया वो फिर मक़्तल में
बच के जो क़ातिल से निकला था |
मेरी तरफ तस्दीक़ न देखो
साँप किसी बिल से निकला था |
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
आ. तस्दीक अहमद जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है,मुबारकबाद I
गज़ल बहुत अच्छी लगी। हार्दिक बधाई।
जनाब सत्विन्द्र कुमार साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला
अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय तस्दीक भाई , अच्छी गाल कही है .. बधाइयाँ प्रेषित कर रहा हूँ .. स्वीकार करें ।
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